
सायर मेले की कहानी
सायर मेला लगने के पीछे मान्यता है कि करीब चार सौ साल पहले सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के छोटे भाई बाबा लखमीर दास के साथ हिमाचल के गांवों में आना-जाना हुआ। उन्होंने गांवों-गांवों में सतनाम धर्म का प्रचार किया। संत लखमीर दास किसी के घर नहीं ठहरते थे। अपितु गांव के किसी वट वृक्ष या फिर पीपल के पेड़ के नीचे आसन लगाते थे और वहां सत्संग के साथ लंगर का बंदोबस्त भी करते थे। कहा जाता है कि एक दिन बाबा लखमीर दास लदरौर कस्बे में शिष्यों के साथ पधारे, वह घोड़े पर लदरौर कलां के पास से ही निकल रहे थे तो अचानक बरगद पेड़ की टहनियों से उनकी पगड़ी टकराकर गिर गई। इसे अपमान समझकर उन्होने बरगद के पेड़ को श्राप दे दिया। क्षेत्रवासियों ने देखा के कुछ दिनों के बाद बरगद का पेड़ सूख गया और टहनियां गिरने लगी। जब दोबारा बाबा लखमीर दास इसी क्षेत्र में यात्रा कर रहे थे तो ग्रामीणों ने पेड़ के सूखने की बात उनको बताई तथा बरगद के वृक्ष को दोबारा हरा-भरा करने की प्रार्थना की। इस पर बाबा लखमीर दास ने श्राप को वापस ले लिया। कुछ दिनों के बाद वृक्ष फिर हरा-भरा होने लगा। इस खुशी को लेकर ग्रामीणों ने वहां एक मंदिर का निर्माण कर डाला। आज भी यह सालों पुराना बरगद का वृक्ष हरा-भरा है और क्षेत्र का सबसे पुराना वृक्ष है। बाबा लखमीर दास में मंदिर में टमक की थाप के बाद मेला शुरू होता है। मंदिर को संजाने के लिए बाबा लखमीर दास समिति का गठन किया गया है। कमेटी हर साल दो दिवसीय भंडारे का आयोजन करती है। इसके लिए कमेटी बैठक में मेले के संचालन के लिए निर्णय लेती है। मेला कमेटी के अध्यक्ष बंशी राम ने कहा कि पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।सायर मेले की खासियत
भारत के हिमाचल प्रदेश में शिमला में सायर मेला मनाया जाता है। यह क्षेत्र का एक बेहद लोकप्रिय मेला है और इसके साथ बहुत सारी आजीविका और मौज-मस्ती लाता है। सायर मेले में मुख्य आकर्षणों में से एक पारंपरिक बैल लड़ाई है। यहां आयोजित बैल लड़ाई को पूरी दृढ़ता से दर्शाया जाता है। यह प्रतियोगिता सोलन में अरकी में आयोजित की जाती है। हालांकि हिमाचल प्रदेश और एथेंस में बैल झगड़े काफी समान हैं। एथेंस में, आम लोगों को घटना को देखने की इजाजत नहीं है, जबकि यह हिमाचल प्रदेश में बिल्कुल विपरीत है। यहां बैलों की लड़ाई को आम जनता भी देख सकती है। सायर मेले में होने वाली बैलों लड़ाई न्यूनतम शुल्क देकर कोई भी व्यक्ति देख सकता है। इसका काफी श्रेय हिमाचल प्रदेश के प्रशासन को जाता है जिन्होंने आम जनता के लिए इसे किफायती शुल्क पर उपलब्ध कराया है। प्रसिद्ध बैल लड़ाई के अलावा, सायर मेले के दौरान कई रोचक और मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां लोक नृत्य कार्यक्रम, संगीत प्रदर्शन, और कला के कई अन्य रूपों को प्रदर्शित किया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए दूर-दूर से कलाकार शामिल होते हैं। मेले में हस्तशिल्प, मिट्टी के बरतन, , वस्त्र, आदि सामानों की दुकानें भी लगाई जाती हैं। इस मेले में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक के लिए सामान उपलब्ध होता है। हर वर्ग के व्यक्ति सायर मेले में शामिल होकर इसका लुत्फ उठाते हैं। शिमला के स्थानीय लोग त्यौहार को बेहद खुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं। महिलाओं और बच्चों को खूबसूरत जवाहरात में पहने हुए देखा जा सकता है, जो कि उत्सवों में रंगों का एक स्पेक्ट्रम जोड़ते हैं। मेले और त्यौहार लोगों के करीब आने, प्रियजनों के लिए उपहार खरीदना, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ आनंद लेना, गतिविधियों में भाग लेना, और सांस्कृतिक और पारंपरिक कला रूपों और बहुत कुछ देखना सही अवसर है। हिमाचल प्रदेश के त्यौहार और मेले विशेष रूप से अपनी विशिष्टता और परंपरा विशिष्टताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। सायर मेला एक ऐसा मेला है जो हिमाचल प्रदेश की उत्सव की भावना को आगे बढ़ाता है।To read this Article in English Click here