मंदिर में बजते घंटे, अगरबत्ती की सुगंध, भजन और मंत्रो से गुंजाएमान वातावरण और सबसे पवित्र शहरों मे से एक वाराणसी में 1 जनवरी 1891 को एक स्वतंत्रता सेनानी, एक विदुषी ने जन्म लिया जिन्हें "डॉ. संपूर्णानंद" के नाम से जाना जाता है | एक धार्मिक नगरी होने के कारण इस शहर का धार्मिक असर डॉ. संपूर्णानंद पर पूर्ण रूप से रहा | वें संस्कृत और खगोल विज्ञान, इन दोनों विषयों के विद्वान थे | इन विषयों के अलावा डॉ संपूर्णानंद की रूचि फलित ज्योतिषी में भी थी, साथ ही वह उत्कट स्वतंत्रता सेनानी भी थे| देशभक्ति की भावना उनमे इतनी अधिक थी कि, उन्होनें असहयोग आंदोलन में पूरे भक्तिभाव के साथ हिस्सा लिए था | "मर्यादा" नाम की हिन्दी मासिक पत्रिका के लिए संपादन का कार्य कर चुके संपूर्णानंद जी ने "नॅशनल हेराल्ड" अख़बार में भी अपनी सेवायें दी | इन कार्यों के अलावा 1922 में वह अखिल भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस समिति के साथ जुड़ गये |

डॉ. संपूर्णानंद जयंतीगोविंद बल्लभ पंत के बाद 4मार्च 1947 से लेकर 26फ़रवरी 1948 तक, डॉ संपूर्णानंद भारत के शिक्षा एवम् वित्तमंत्री के रूप में कार्य करते रहे | वित्तमंत्री के तौर पर कार्य करते हुए उन्होनें 1947-1948 और 1948-1949 के बजट भी पेश किया | 1954 में उत्तरप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेकर इन्होनें मुख्यमंत्री के तौर पर 1954 से लेकर 1960 तक कार्यरत रहे |उत्तरप्रदेश के इतिहास में डॉ. संपूर्णानंद ही ऐसे मुख्यमंत्री हुए है, जिन्होनें सबसे अधिक समय के लिए मुख्यमंत्री का राजभर संभाला है | वह 28दिसम्बर 1954 से लेकर 7 दिसम्बर 1960 तक उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहें |

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होनें हिन्दी भाषा को प्रोत्साहन दिया, साथ ही गौहत्या पर रोक लगाने के लिए कसाई घरों पर रोक लगा दी | इन्हीं के शासनकाल में उत्तरप्रदेश सरकार ने कला विभाग और राज्य ललित कला अकादमी की स्थापना 8फ़रवरी 1962 में करी और इसके पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनें | उत्तरप्रदेश में राजनैतिक उथलपुथल के चलते, उन्हें अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, जिसके बाद राजस्थान के गवर्नर के रूप राजस्थान भेज दिए गये | 16अप्रैल 1962 से 16अप्रैल 1967 तक, वह राजस्थान के गवर्नर रहे | एक समाजसूधारक गवर्नर के रूप में उन्होंनें "संगानेर की खुली जेल"  का क्रांतिकारी विचार देश को दिया | उनके अनुसार यह जेल दोषियों के परिवार साथ है, क्योंकि वें लोग भी कार्य करते है और कर चुकाकर देश की अर्थव्यवस्था में हाथ बटाते है | संपूर्णानंद जी कहना था कि दोषियों को दी जाने वाली सज़ा, उन्हें उनके सुधार के रूप में दी जानी चाहियें ना कि बदले की भावना साथ लेकर |

वह आजीवन कारावास के भी विरोध में मत रखते थे | उनके अनुसार अपने परिवार, सगे-संबंधियों और मित्रों से दूर रहना किसी मृत्युदंड से कम नही है| राजस्थान में अपने गवर्नर होने के कार्यकाल में 1963 में उन्होनें प्रयोगात्मक तौर पर एक खुली जेल खुलवाई जिसका नाम "श्री संपूर्णानंद खुला बंदी शिविर" रखा गया|  

हिन्दी साहित्य सम्मलेन ने डा० सम्पूर्णानन्द की साहित्यिक रचनाओं का स्वयं प्रकाशन कराके, उनका साहित्यिक सम्मान किया | डा० सम्पूर्णानन्द को साहित्य सम्मलेन का सभापति भी बनाया गया था। समाजवाद नामक पुस्तक पर प्रसिद्ध मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।हिन्दी के प्रति इन्हें विशेष प्रेम था।अपने जीवन के अंतिम दिनों में ये अपने घर बनारस में ही रहने लगे थे।सन् 1969 ई० इनका स्वर्गवास हुआ।

डा० सम्पूर्णानन्द की प्रसिद्द रचनाएं इस प्रकार हैं-- अंतर्राष्ट्रीय विधान , चीन की राज्य क्रांति , मिश्र की राज्य क्रांति , भारत के देशी राज्य , सम्राट हर्षवर्धन , चेतसिंह और काशी का विद्रोह , महादाजी सिंधिया , महात्मा गांधी , आर्यों का आदि देश , सप्तर्षि मंडल , समाजवाद , चिद्विलास , ब्राह्मण सावधान , भाषा की शक्ति तथा अन्य निबन्ध।

डा० सम्पूर्णानन्द जी एक सफल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ उच्च कोटि साहित्यकार भी थे। इन्होनें हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने में महान योगदान दिया। लेखक के अतिरिक्त वह अच्छे पत्रकार एवं संपादक भी थे। राजनीति में रहते हुए भी डा० सम्पूर्णानन्द जी ने हिन्दी साहित्य की महती सेवा की। भारत सरकार ने 10 जनवरी 1994 में डॉ संपूर्णानंद जी की स्मृति में उनके नाम से 1 रुपय का स्टांप टिकिट निकाला| उनके द्वारा देश, राजनीति, साहित्य और समाज में दिए गये स्वर्णिम योगदान की वजह से हर वर्ष जनवरी की 1 तारीख को डॉ. संपूर्णानंद की जयंती के रूप में मनाई जाती है |

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