सरस्वती मां, जो कि विद्या और संगीत दोनो की देवी हैं। इनके आशीर्वाद के बिना पढ़ाई और संगीत में आगे बढ़ पाना असंभव है। चाहे जितने बड़े फिल्म स्टूडियो हों या बड़े से बड़ी यूनिवर्सिटी, वहां मां सरस्वती की मूर्ति होती ही है। मां सरस्वती हंस की सवारी करती हैं। उनके एक हाथ में वीणा तो दूसरे हाथ में पुस्तक होती है। नवरात्रि पूजा के सातंवे दिन यानि महासप्तमी को जब शुक्ल पक्ष होता है तो सरस्वती अावाहन किया जाता है। नवरात्रि के आखिरी तीन दिन मां सरस्वती की पूजा होती है। विजयादशमी के दिन विसर्जन किया जाता है।
 

मां सरस्वती की रचना

ब्रह्मा जी ने जब पूरी धरती बना दी, लेकिन कुछ कमी थी। हर जगह नीरसता थी। तब उन्होंने जल लेकर धरती को हरा भरा कर मां सरस्वती का उद्गम किया। ब्रह्माजी ने मां को कहा कि वो वीणा और पुस्तक से इस दुनिया को मार्ग दिखाएं।
 

शक्ति के रूप में भी मां सरस्वती

कई पुराणों और ग्रंथों में मां सरस्वती के बारे में वर्णन किया गया है। धर्मग्रंथों में देवी को सतरूपा, शारदा, वीणापाणि, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी तथा हंसवाहिनी आदि नामों से संबोधित किया गया है.

कुंभकर्ण की नींद के पीछे का कारण

कहा जाता है कि कुंभकर्ण ने भगवान ब्रह्मा की कई सालों तक पूजा की। जब ब्रह्मा खुश होकर वर देने जाने लगे तो अन्य देवताओं ने निवेदन कर कहा कि भगवन, कुंभकर्ण असुर प्रवृति का है और ये शक्तियों का गलत इस्तेमाल करेगा। इस पर ब्रह्मा ने मां सरस्वती को याद किया और फिर सरस्वती जाकर कुंभकर्ण की जीभ पर बैठ गई। जैसे ही ब्रह्मा ने कुंभकर्ण को वर के लिये पूछा तो कुंभकर्ण के मुंह से निकला ”मैं सालों सोता रहूं यही मेंरी इच्छा है”।

सरस्वती आवाहन

हिंदू ग्रंथों के हिसाब से सरस्वती आवाहन “मूल नक्षत्र” के दौरान होता है, पूजा “पूर्व आषाढ़ नक्षत्र” और “बलिदान पूजा” उत्तर आषाढ़ नक्षत्र के दौरान होती है। विसर्जन “श्रावण नक्षत्र” में होता है।


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