शास्त्रों में कहा गया है कि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि के लिए अनेक प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है। इसे उतारना आवश्यक होता है।  

सूर्य की अनंत किरणों में सर्वाधिक प्रमुख किरण का नाम अमा है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से ही सूर्यदेव तीनों लोको को प्रकाशित करते हैं। उसी अमा किरण में तिथि विशेष को चंद्रदेव निवास (वस्य) करते हैं, अतः इस तिथि का नाम अमावस्या है। अमावस्या प्रत्येक पितृ संबंधी कार्यों के लिए अक्षय फल देने वाली बताई गई है। शास्त्रानुसार वैसे तो प्रत्येक अमावस्या पितृ की पुण्य तिथि होती है परंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृओं के लिए परम फलदायी कही गई है। इसे सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा महालया के नाम से जाना जाता है।
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पितृ श्राद्ध पक्ष पूजा विधि

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सामग्री : कुशा,कुशा का आसन, काली तिल, गंगा जल, जनैउ, ताम्बे का बर्तन, जौ, सुपारी, कच्चा दूध |
-सबसे पहले स्वयं को पवित्र करते हैं जिसके लिए खुद पर गंगा जल छिड़कते हैं |
-श्लोक ना आने पर गायत्री मन्त्र का उच्चारण कर विधि संपन्न की जा सकती हैं |
-खुद को पवित्र करने के बाद कुशा को अनामिका (रिंग फिंगर) में बाँधते हैं |
-जनेऊ धारण करे |
-ताम्बे के पात्र में फूल, कच्चा दूध, जल ले |
-अपना आसान पूर्व पश्चिम में रखे | कुशा का मुख पूर्व दिशा में रखे |
-हाथों में चावल एवम सुपारी लेकर भगवान का मनन करे उनका आव्हान करें |
-दक्षिण दिशा में मुख कर पितरो का आव्हान करें |इसके लिए हाथ में काली तिल रखे |
-अपने गोत्र का उच्चारण करें साथ ही जिसके लिए श्राद्ध विधि कर रहे हैं उनके गोत्र एवम नाम का उच्चारण करें और तीन बार तर्पण विधि पूरी करें |
-अगर नाम ज्ञात न हो तो भगवान का नाम लेकर तर्पण विधि करें |
-तर्पण के बाद धूप डालने के लिए कंडा ले, उसमें गुड़ एवम घी डाले |
-बनाये गए भोजन का एक भाग धूप में दे |
-उसके आलावा एक भाग गाय , कुत्ते, कौए, पीपल एवम देवताओं के लिए निकाले |
-इस प्रकार भोजन की आहुति के साथ पितृ श्राद्ध पक्ष विधि पूरी की जाती हैं |


तिथि याद ना होने पर अमावस्या के दिन कर सकते हैं श्राद्ध


हम में से कई लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि या दिन याद नहीं है। दादा-परदादा के तिथियों से हम अनजान होते हैं। जिसके कारण यह समझ नहीं पाते हैं कि श्राद्ध करें तो कब करें. उनके लिए सर्वपितृ अमावस्या से अच्छा दिन कोई और हो ही नहीं सकता। सर्वपितृ अमावस्या के दिन मुख्यतः उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु की तिथि परिजनों को याद नहीं होती। इनके तर्पण एवं उनकी आत्मा की शांति के लिए इस दिन दान-पुण्य करके प्रार्थना की जाती है। आज के व्यस्त समय के कारण लोग अपने पितरों का तर्पण नहीं कर पाते जिसके लिए कम से कम अमावस्या के दिन तो तिल-जल के साथ पितरों के लिए समय निकाल ही लेना चाहिए ताकि उनका आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहें। 

पितृ मोक्ष अमावस्या महत्व

यह श्राद्ध के महीने में आखरी दिन होता हैं, जो कि आश्विन की आमवस्या का दिन होता हैं, इस दिन सभी तर्पण विधि पूरी करते हैं, इस दिन भूले एवम छूटे सभी श्राद्ध किये जाते हैं | इस दिन दान का महत्व होता हैं | इस दिन ब्राह्मणों एवम मान दान लोगो को भोजन कराया जाता हैं| पितृ पक्ष में पितृ मोक्ष अमावस्या का सबसे अधिक महत्व होता हैं | आज के समय में व्यस्त जीवन के कारण मनुष्य तिथिनुसार श्राद्ध विधि करना संभव नहीं होता ऐसे में इस दिन सभी पितरो का श्राद्ध किया जा सकता हैं |
श्राद्ध में दान का बहुत अधिक महत्व होता हैं | इन दिनों ब्राह्मणों को दान दिया जाता हैं जिसमे अनाज, बर्तन, कपड़े आदि अपनी श्रद्धानुसार दान दिया जाता हैं | इन दिनों गरीबो को भोजन भी कराया जाता हैं |
श्राद्ध तीन पीढ़ी तक किया जाना सही माना जाता हैं इसे बंद करने के लिए अंत में सभी पितरो के लिए गया (बिहार), बद्रीनाथ जाकर तर्पण विधि एवम पिंड दान किया जाता हैं | इससे जीवन में पितरो का आशीर्वाद बना रहा हैं एवम जीवन पितृ दोष से मुक्त होता हैं |

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