शनिदेव का महत्व
शनिदेव का हमारे जीवन पर बहुत महत्व होता है। ज्योतिष विशेषज्ञ इस तथ्य को मानते हैं कि जीवन में एक व्यक्ति की सफलता या विफलता उनकी कुंडली में शनि की स्थिती से पता चलती है। शनि यदि किसी पर कूदृष्टि डाल दें तो व्यक्ति के बनते काम भी बिगढ़ने लगते हैं और वहीं यदि शनि प्रसन्न हो जाएं तो व्यक्ति को मालामाल कर देतें है। कहते हैं कि शनिदेव न्याय के देवता होते हैं। जो अच्छा कर्म करता है, किसी का अनिष्ट नहीं करता शनि उसका कुछ नहीं बिगाढ़ते बल्कि उस पर और कृपा करते हैं। किन्तु पापी, दुष्टों को शनि बख्शते नहीं है उन्हें कड़ी सजा देते हैं। लोग भगवान को प्रसन्न करने के लिए शनि जयंती पर अपनी योग्यता के अनुसार नवग्रह पूजा करते हैं। शनि जयंती के अवसर पर भक्त 'शनि शांति पूजा' का आयोजन करते हैं। शनि बुरी शक्तियों को दूर करते हैं। लोग सभी गलत और काले जादू से बचने के लिए आचार्यो या पुरोहित की उपस्थिति में शनि यज्ञ भी आयोजित किए जाते हैं। काले जादू से बचने के लिए, लोग अपनी उंगलियों में घोड़े की नाल पहनते हैं और अपने घरों में भी लटकाते हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि भगवान शनि के प्रकोप से यदि किसी के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही हो तो भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए, इन उपायों का पालन किया जाता है। शनि को काले वस्त्र अधिक प्रिय होते हैं वो काले वस्त्र ही पहनते हैं। इसलिए शनिवार के दिन काले वस्त्र पहनने से बचना चाहिए।शनि जन्म कथा
शनि जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था। कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानो के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली चली गईं। कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। शनिदेव भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। इन्हें क्रूर ग्रह माना जाता है जो कि इन्हें पत्नी के शाप के कारण मिली है। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण है व ये कौवे की सवारी करते हैं। फलित ज्योतिष के अनुसार शनि को अशुभ माना जाता है व 9 ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक रहते हैं तथा मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है। माना जाता है इसी गुरुत्व बल के कारण हमारे अच्छे और बूरे विचार चुंबकीय शक्ति से शनि के पास पंहुचते हैं जिनका कृत्य अनुसार परिणाम भी जल्द मिलता है। असल में शनिदेव बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं। यदि आप किसी से धोखा-धड़ी नहीं करते, किसी के साथ अन्याय नहीं करते, किसी पर कोई जुल्म अत्याचार नहीं करते, कहने तात्पर्य यदि आप बूरे कामों में संलिप्त नहीं हैं तब आपको शनि से घबराने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि शनिदेव भले जातकों को कोई कष्ट नहीं देते।शनि जयंती पूजा विधि
शनि जयंती के अवसर पर शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा पाठ तथा व्रत किया जाता है। शनि जयंती के दिन किया गया दान पुण्य एवं पूजा-पाठ शनि संबंधि सभी कष्टों दूर कर देने में सहायक होता है। शनिदेव के निमित्त पूजा करने हेतु भक्त को चाहिए कि वह शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर नवग्रहों को नमस्कार करते हुए शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें और उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराएं तथा षोड्शोपचार पूजन करें साथ ही शनि मंत्र का उच्चारण करें ॐ शनिश्चराय नम:।शनि जंयती के दिन शनिदेव की पूजा भी बाकि देवी-देवताओं की पूजा की तरह सामान्य ही होती है। प्रात:काल उठकर शौचादि से निवृत होकर स्नानादि से शुद्ध हों। फिर लकड़ी के एक पाट पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर या फिर एक सुपारी रखकर उसके दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं। शनिदेवता के इस प्रतीक स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें। इसके बाद अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। तत्पश्चात इमरती व तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य अपर्ण करें। इसके बाद श्री फल सहित अन्य फल भी अर्पित करें। पंचोपचार पूजन के बाद शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप भी करना चाहिये। माला जपने के पश्चात शनि चालीसा का पाठ करें व तत्पश्चात शनि महाराज की आरती भी उतारनी चाहिये। इसके बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करें. इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर निराहार रहें व मंत्र का जप करें. शनि की कृपा एवं शांति प्राप्ति हेतु तिल , उड़द, कालीमिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता तथा काले नमक का उपयोग करना चाहिए, शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए. शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपडे, जामुन, काली उडद, काले जूते, तिल, लोहा, तेल, आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान में दे सकते हैं।
शनि जयंती उत्सव
शनि जयंती के दिन प्रमुख शनि मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भारत में स्थित प्रमुख शनि मंदिरों में भक्त शनि देव से संबंधित पूजा पाठ करते हैं तथा शनि पीड़ा से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। शनि देव को काला या कृष्ण वर्ण का बताया जाता है इसलिए इन्हें काला रंग अधिक प्रिय है। शनि देव काले वस्त्रों में सुशोभित हैं। जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे। यह न्याय के देवता हैं, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। भारतीय संस्कृति में इस त्यौहार का अपना बहुत महत्व है। मध्यप्रदेश के लोग दृढ़ता से मानते हैं। भगवान शनि की पूजा करके, किसी के रास्ते में सभी बाधाएं और समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। एक नया उद्यम शुरू करने से पहले शनि दोष से मुक्त होने के लिए इस दिन भक्त पूजा करते हैं। भगवान शनि के आशीर्वाद के साथ, वह हर तरह से सफल हो सकते हैं। भक्त इस दिन तेल का दान कर एंव शनि देव को तेल चढ़ाकर उनसे पापों की क्षमा मांगते हैं एवं शनिदेव का आशीर्वाद ग्रहण करने की प्रार्थना करते हैं। शनि मंदिरों में इस दिन भगवान शनि पर तेल अर्पित किया जाता है। उनका गुणगान, भजन कीर्तिन कर भगवान शनि देव की जयंती मनाई जाती है।To read this Article in English Click here