भारत में देवी-देवताओं से जुड़े अनेकों त्यौहार और उत्सव मनाए जातें हैं। इन्हीं दवी-देवताओं में से एक है माता शीतला। जैसे की नाम से ही प्रतित है कि शीतला मां भक्तो को शांति प्रदान करती हैं, ठंडक देती हैं। शीतला माता को रोगों से मुक्ति दिलाने वाली मां भी कहा जाता है। शीतला अष्टमी पूरे भारत में मनाई जाती है किन्तु राजस्थान में शीतला अष्टमी की काफी धूम-धाम रहती है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाने वाली शीतला अष्टमी हिन्दुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। शीतला अष्टमी होली के ठीक आठेोवें दिन मनाई जाती है। हिंदू व्रतों में ये केवल एक ही ऐसा व्रत हैं जिसमें बासी खाना खाया जाता है। इसलिए इसे बसौड़ा भी कहते हैं जिसका मतलब होता है बासी भोजन। शीतलाष्टमी और माँ शीतला की महत्ता का उल्लेख हिन्दू ग्रन्थ “स्कन्द पुराण” में बताया गया है। यह दिन देवी शीतला को समर्पित है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शीतला माता चेचक, खसरा आदि की देवी के रूप में पूजी जाती है। इन्हें शक्ति के दो स्वरुप, देवी दुर्गा और देवी पार्वती का अवतार माना गया हैं। इनका वाहन है गधा, तथा इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते हैं। मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है। जो भक्तों को गर्मी के तेज प्रकोप से दूर रखती है। शीतला अष्टमी में बासी भोजन ही माता को चढ़ाया जाता है एंव प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद बासी भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

शीतला अष्टमी

शीतला अष्टमी से जुड़ी कथा

शीतला अष्टमी मनाने से जुड़ी कई कहानियां मौजूद है। जानकारों के अनुसार 'बसौड़ा' की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। कहते हैं कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे। माँ को गांववासियों ने गरिष्ठ(गर्म) भोजन प्रसाद स्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति माँ भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वो नाराज हो गईं और उन्होंने कोप दृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। इसमें केवल एक बुढ़िया का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढि़या ने माँ शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर माँ को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया, जिससे माँ ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने माँ से क्षमा मांगी और 'रंग पंचमी' के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर माँ का बसौड़ा पूजन किया। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है।

कैसे मनाई जाती है शीतला अष्टमी

शीतला माता की पूजा के दिन यानी शीतला अष्टमी को चूल्हा नहीं जलाने की परंपरा होती है। शीतला अष्टमी से एक दिन पहले ही खाना बनाकर रख लिया जाता है। सूर्य ढलने के पश्चात तेल और गुड़ में खाने-पीने की वस्तुएं मीठी रोटी, मीठे चावल, गुलगुले, बेसन एवं आलू आदि की नमकीन पूरियां तैयार की जाती हैं। पूजा के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता। इसके बाद सुबह जल्दी उठकर शीतल माता की पूजा करने के बाद बसौड़े के तौर पर मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। कई लोग इस दिन शीतला माता के मंदिर जाकर हल्दी और बाजरे से पूजा भी करते हैं। पूजा के बाद बसौड़ा व्रत कथा कही जाती है। पूजा के बाद परिवार के सभी लोगों को प्रसाद देकर एक दिन पहले बनाया गया बासी भोजन खिलाया जाता है। शीतला माता को अष्टमी के दिन मंदिर में जाकर गाय के कच्चे दूध की लस्सी के साथ सभी चीजों का भोग लगाया जाता है। मीठी रोटी के साथ दही और मक्खन, कच्चा दूध, भिगोए हुए काले चने, मूंग और मोठ आदि प्रसाद रूप में चढ़ाने की भी परंपरा है। शीतला अष्टमी राजस्थान में किसी मेले से कम नहीं होती। इस दिन लोग विभिन्न प्रकार के भोजन रात में हीं बनाकर रख लिए जाते हैं। राजस्थान में इस दिन मेलों का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में आने वाले लोगों को सांस्कृतिक और पांरपरिक राजस्थान की झलकियां मिलती है। स्थानीय बाजारों में इस उत्सव पर स्वदेशी जूते, खाद्य पदार्थ, कृषि उपकरण जैसी कई अनेकों वस्तुओं के भी स्टॉल लगाए जाते हैं ताकि व्यापार को बढ़वा मिल सके। लोग रंग-बिंरगे पारंपरिक परिधान पहन कर माता शीतला की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं ताकि उन्हें हर रोगों से मुक्ति मिल सके।

रोगों को हरने वाली शीतला माता

माता शीतला को रोग हरने वाली माता भी कहा जाता है। शीतला माता के पूजन से चेचक, हैजा इत्यादि के मरीज ठीक हो जाते हैं। इन्हें चेचक की देवी भी कहा जाता है। इस दिन यदि कोई चेचक का मरीज होता है तो उसे मंदिर में ले जाकर उसके वस्त्र उतार दिए जाते हैं। जिसके बाद सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। माता की एक-एक वस्तु का अलग-अलग गुण होता है। यही कारण है कि इस दिन बढ़ीं संख्या में रोगी अपना इलाज माता के आशीर्वाद से कराते हैं।

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