भारत में हिन्दू देवी देवताओं के धरती पर प्रकट होने की कई कथाएं प्रचलित है। भारतीय शास्त्रों अनुसार देवी के 108 रुप है इन्हीं 108 देवियों में से धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी ने इस धरती पर माता सीता के रुप में जन्म लिया था। माता सीता विष्णु रुपी राम की अर्धांग्नी थी। माता सीता का जन्म बिहार के मिथिला के जनकपुरी के सीतामढ़ी में हुआ था। उनके पिता राजा जनक थे। अपने पिता के नाम के स्वरुप ही उन्हें जानकी भी कहा जाता है। सीता नवमी सीता जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। इसे सीता जयंती भी कहते हैं। देवी लक्ष्मी ने मिथिला साम्राज्य में त्रेता युग में सीता के रूप में वैशाख शुक्ल नवमी को जन्म लिया था। हिंदू पंचाग के मुताबिक यह त्यौहार श्री राम नवमी के ठीक एक महीने बाद पड़ता है। माता सीता के पति श्री राम का जन्म भी चैत्र महीने की नवमी को ही हुआ था। माता सीता ने धरती मां की कोख से जन्म लिया था। वो धरती में प्रकट हुईं थी। जिसे राजा जनक ने पाकर अपना नाम दिया और वो जानकी कहलाईं। माता सीता माता एक पतिव्रता नारी थी। आजीवन उन्होंने अपने पति की आज्ञा का पालन किया। भगवान राम मर्यादा पुरुषोतम कहलाते हैं जिन्होंने स्वंय एक पत्नी व्रत का पालन किया। इसी बात को आदर्श मानकर सुहागन स्त्रियां सीता नवमी के दिन व्रत रख कर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

सीता नवमी

सीता जन्म कथा

माता सीता का जन्म वैशाख शुक्ल नवमी को माना जाता है। उन्हें जानकी भी कहा जाता है क्योंकि उनके पिता राजा जनक बताये जाते हैं। पौराणिक ग्रंथों में माता सीता के प्राक्ट्य की कथा काफी प्रचलित है। त्रेतायुग में मिथिला जो बिहार मे स्थित है वहां में भयंकर अकाल पड़ा उस समय मिथिला के राजा जनक हुआ करते थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा थे, धर्म कर्म के कार्यों में बढ़ चढ़ कर रूचि लेते। लेकिन इस अकाल ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया, अपनी प्रजा को भूखों मरते देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती। उन्होंने ज्ञानी पंडितों को दरबार में बुलवाया और इस समस्या के कुछ उपाय जानने चाहे। सभी ने कहा कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोते तो अकाल दूर हो सकता है। अपनी प्रजा के दुख को देखकर राजा राजा जनक खेत में हल जोतने चले गए। वह दिन था वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का। जहां पर उन्होंने हल चलाया वह स्थान वर्तमान में बिहार के सीतामढी के पुनौरा राम गांव में स्थित है। राजा जनक हल जोतने लगे। हल चलाते-चलाते एक जगह आकर हल अटक गया, उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन हल की नोक ऐसी धंसी हुई थी कि निकले का नाम ही न ले रही थी। तब सैनिकों ने वहां की जमीन खोदकर देखना चाहा कि हल कहां फंसा है। उन्होंने देखा कि हल की फाली की नोक जिसे सीता भी कहते हैं वह बहुत ही सुंदर और बड़ा से कलश में फंसी हुई थी। कलश को जब बाहर निकाला तो देखा उसमें एक नवजात कन्या थी। जिसमें अद्भुद प्रकाश था। धरती मां के आशीर्वाद स्वरूप राजा जनक ने इस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। तभी उसी समय मिथिला में जोर की बारिश हुई और राज्य का अकाल दूर हो हुआ। जब कन्या का नामकरण किया जाने लगा तो चूंकि हल की नोक को सीता कहा जाता है और उसी की बदौलत यह कन्या उनके जीवन में आयी तो उन्होंने इस कन्या का नाम सीता रखा जिसका विवाह आगे चलकर प्रभु श्री राम से हुआ। एक और कहानी के अनुसार सीता वेदवती का पुनर्जन्म है। वेदवती एक खूबसूरत महिला थीं जिसने सभी सांसारिक चीजों को छोड़ दिया, भगवान विष्णु की भक्ति और ध्यान में लगी रहती थी। वो भगवान विष्णु को पति रुप में पाना चाहती थीं। लेकिन एक दिन रावण उन्हें देख लेता है और मर्यादा का उल्लघं करने की चेष्टा करता है जिसे देख वेदवती आग में कूद गईं और मरने से पहले उऩ्होंने रावण को श्राप दिया कि अगले जन्म में मैं तुम्हारी पुत्री बनकर जन्म लूंगी और तुम्हारी मौत का कारण बनूंगी। इसके बाद मंदोदरी और रावण के यहां एक पुत्री ने जन्म लिया। रावण ने क्रुद्ध होकर उसे गहरे समुद्र में फेंक दिया। उस कन्या को देखकर सागर की देवी वरूणी बहुत दुखी हुईं। वरूणी ने उस कन्या को पृथ्वी माता को दे दिया। धरती की देवी ने इस कन्या राजा जनक और उनकी पत्नी सुनैना को दिया। इस प्रकार सीता धरती की गोद से राजा जनक को प्राप्त हुई थीं। जिस प्रकार सीता माता धरती से प्रकट हुईं उसी प्रकार उनका अंत भी धरती में समाहित होकर ही हुआ था।

सीता नवमी का महत्व

सीता नवमी भगवान राम और देवी सीता के भक्तों के लिए सीता नवमी का जन्म बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि माता सीता देवी लक्ष्मी का अवतार रूप है, उनकी पूजा देवी लक्ष्मी के भक्तों द्वारा भी की जाती है। माता सीता पवित्रता, शुद्धता और उर्वरता का प्रतीक हैं। हिंदू धर्म के लोग उन्हें प्रत्येक जीव की मां मानते हैं। आशीर्वाद के रूप में माता सीता अपने भक्तों को धन, स्वास्थ्य, बुद्धि और समृद्धि प्रदान करती हैं। महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु के लिए माता सीता की पूजा करते हैं। नवविवाहित जोड़े स्वस्थ संतान की प्राप्ति के लिए देवी से प्रार्थना करते हैं। माता सीता की पूजा करने पर भगवान हनुमान सदा आपकी रक्षा करेंगे। सीता नवमी का उत्सव सीता नवमी को बहुत ही भक्ति, प्रेम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन माता सीता के साथ भगवान राम, उनके भाई लक्ष्मण और भगवान हनुमान की भी पूजा की जाती है। उत्तर प्रदेश में अयोध्या, बिहार में सीता समहथ स्थाल, आंध्र प्रदेश के भद्रचलम तथा तमिलनाडु के रामेश्वरम में सीता नवमी को बहुत ही धुमधाम से मनाया जाता है। भगवान राम और माता सीता को समर्पित मंदिरों में आरती तथा महाअभिषेक किया जाता है। इसके अलावा, भगवान राम, माता सीता, भगवान हनुमान और लक्ष्मण की मूर्तियों के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस दिन रामायण का पाठ पढा जाता है। घरों और मंदिरों में सत्संग किये जाते हैं। भजन और कीर्तन भी इसी दिन का हिस्सा हैं।

सीता नवमी की पूजा विधि

सीता नवमी का व्रत करने से स्त्रियों को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है। स्त्रियां अपने सुहाग, अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ इस व्रत को करती हैं। विवाहित महिलाएं भगवान राम और लक्ष्मण के साथ देवी सीता की पूजा करती हैं। जानकी नवमी के व्रत की तैयारी और साज-सज्जा ऐसे की जाती है कि जन्मदिवस जैसा माहौल लगे। इसके लिए 4 स्तंभों का मंडप तैयार किया जाता है। इस मंडप में भगवान राम, माता सीता, राजा जनक, माता सुनयनता, हल, पृथ्वी और कलश की पूजा की प्रतिमाएं विराजी जाती हैं। फिर इनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है। मंगल गीत गाए जाते हैं क्योंकि यह माता का जन्मदिन है। जानकी स्त्रोत का पाठ भी किया जाता हैं। इस दिन सुर्योदय से पहले उठना चाहिए। धरती माता को प्रणाम कर जमीन पर पांव रखना चाहिए। स्नानादि के बाद पूजन करना चाहिए। रोली, अक्षत, कलावा चढ़ाकर भोग लगाना चाहिए। सबसे पहले गणपति की आरती करनी चाहिए फिर माता सीती और भगवान श्री राम की पूजा-आरती करनी चाहिए। भगवान राम और माता सीता को आदर्श जोड़ा माना जाता है। हालांकि उन्हें अपने जीवन में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा था, लेकिन जहां तक उनके रिश्ते का संबंध था, वे बहुत दृढ़ थे। मां सीता अपनी ईमानदारी और शुद्धता के लिए जानी जाता है। इसलिए महिलाएं उन्हें प्रेरणा के रूप में मानती हैं। हैं। उनका मानना है कि उनके विवाहित जीवन शांति- समृद्धि और खुशियां आएंगी। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं तो अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। नवविवाहित जोड़े खुशहाल जीवन के लिए भगवान राम और देवी सीता की पूजा करते हैं। व्रत को सफल रूप से निभाने वालों को देवी समर्पण, बलिदान और विनम्रता जैसे गुणों को प्रदान करती हैं। कुछ महिलाएं शिशु की प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को करती हैं।

सीता नवमी

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