सीताबाड़ी मंदिर की खासियत
सीताबाड़ी का मेला सीताबाड़ी मदिंर के पास लगता है। भक्त माता सीता और भगवान राम के दर्शन करने इस मंदिर में आते हैं। बारां जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर रमणीक यह धार्मिक स्थल लोगों की आस्था का केन्द्र तो है ही, वहीं यहां की प्राकृतिक छटा लोगों के मन को मोह लेती है, बारिश के समय प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को देशी-विदेशी पर्यटक निहारे बिना नहीं रह पाते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और मन को हर्षित करने वाला वनवासी क्षेत्र केलवाड़ा राजस्थान की आदिवासी संस्कृति की छटा तो बिखेरता ही है, वहीं कस्बे के पास स्थित सीताबाड़ी मंदिर त्रेता युग की यादें लोगों के मन में उद्वेलित कर देता है, भक्त मंदिर में दर्शन कर अपने आपको सभी भगवानों की कृपा का पात्र मानते हैं। सीताबाड़ी मंदिर के पास माता सीता और श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के खूबसूरत मंदिर स्थित हैं। यहां सात जलकुंड बने हैं जिनमें बाल्मिकी कुंड, सीता कुंड, लक्ष्मण कुंड, सूरज कुंड, और लव-कुश कुंड प्रमुख जलकुंड हैं। सीताबाड़ी मंदिर के पास घने जंगल में सीता कुटी बनी हुई है। कहा जाता है कि निर्वासन के दौरान माता सीता रात्रि में यहीं विश्राम किया करती थी।सीताबाड़ी मंदिर की पौराणिक कथा
सीताबाड़ी मंदिर को लेकर पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वो स्थल है जहाँ श्री राम की पत्नी देवी सीता ने अपने पुत्रों यानी लव तथा कुश को जन्म दिया था। श्री राम द्वारा उनका त्याग करने के बाद देवी सीता अपने दोनों पुत्रों के साथ यहीं वास करती थीं। सीताजी को उनके देवर लक्ष्मण जी ने उनके निर्वासन की अवधि में सेवा के लिए इसी स्थान पर जंगल में वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ा था। एक किंवदंती हैकि जब सीताजी को प्यास लगी तो सीताजी के लिए पानी लाने के लिए लक्ष्मणजी ने इस स्थान पर धरती में एक तीर मार कर जलधाराउत्पन्न की थी, जिसे 'लक्ष्मण बभुका' कहा जाता है। इस जलधारा से निर्मित कुंड को 'लक्ष्मण कुंड' कहा जाता हैसीताबारी आने वाले पर्यटक यहाँ स्थित और एक मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं जो देवी सीता तथा लक्ष्मण जी को समर्पित है। सीताबाड़ी का वार्षिक मेला बारां जिले की शाहबाद तहसील के केलवाड़ा गांव के पास सीताबाड़ी नामक स्थान पर आयोजित किया जाता है। इस स्थान पर यह 15 दिवसीय विशाल मेला ज्येष्ठ महीने की अमावस्या (बड़ पूजनी अमावस) के आसपास भरता है। 15 दिनों का ये मेला अपने पूर्ण परवान पर अमावस्या के दिन ही चढ़ता है तथा इस दिन ही भारी संख्या में लोग उमड़ते हैं।सीताबाड़ी मेला उत्सव
सीताबाड़ी मेला पूर्वी राजस्थान की 'सहरिया जनजाति' के सबसे बड़े मेले के रूप में जाना जाता है। सहरिया जनजाति के लोग इस मेलेमें उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं। इसे ''सहरिया जनजाति के कुंभ'' के रूप में भी जाना जाता है। इस मेले में सहरिया जनजाति के लोगों कीजीवन शैली का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिलता है। सहरिया जनजाति के लोग अपनी सबसे बड़ी जाति-पंचायतका आयोजन भी वाल्मीकि आश्रम में ही करते हैं। लव-कुश जन्म स्थान होने के कारण सीता बाड़ी को 'लव-कुश नगरी' भी कहा जाता है।जल को बहुत पवित्र माना जाता है। अक्सर भक्त लोग इनमें स्नान करते एवं पवित्र डुबकी लेते देखे जा सकते हैं। इस मेले में भाग लेने आने वाले श्रद्धालु यहाँ स्थित 'वाल्मीकि आश्रम' में भी जाते हैं। लोग यह भी मानते हैं कि रामायण काल में सीताजी के निर्वासन काल में ही प्रभु श्रीराम और सीता के जुड़वां पुत्रों 'लव तथा कुश' का जन्म वाल्मीकि ऋषि के इसी आश्रम में हुआ था। यह दो सीधे पत्थरों को खड़ा करके बनाई गई एक बहुत ही सरल क्षैतिज संरचना है।मेलार्थी यहाँ स्थित कुंडों में अपने शरीर एवं आत्मा की शुद्धि के लिए पवित्र स्नान करते हैं और फिर यहाँ स्थापित विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर और मेले में भक्त यहां रखे विभिन्न देवताओं की छवियों से प्रार्थना करते हैं। सीताबाड़ी मेले में मवेशियों का मेला भी लगता है। यहां विभिन्न किस्मों के पशुओं को बिक्री होती है। दूर-दूर से मवेशी इस मेले में सम्मलित होते हैं। मवेशी प्रजनकों को मवेशियों की विभिन्न नस्लों को बेचते देखा जाता है। बाज़ार भी इस मेले का मुख्य आकर्षण हैं। इस मेले में झालावाड़, अकलेरा, बूंदी, कोटा,भीलवाड़ा और नागौर आदि स्थानों से कई पशुपालक अपने उत्तम नस्ल के पशुओं को बिक्री हेतु लेकर आते हैं। मेले के दौरान सीताबाड़ी में परकोटे के अंदर लगे मनोरंजन के साधन डोलर, झूले, चकरी, मौत का कुआं सहित मनिहारी, चूड़ी, कपड़ा, खिलौनों की दुकानों परभीड़ उमडऩे लगती है। अक्सर इस मेले में प्रतिदिन शाम व रात के समय अधिक रौनक दिखाई देती है।
कुंडो का महत्व
सीताबाड़ी का पूरा शहर हिंदू परंपरा का पवित्र स्थान है यहां कई कुंड है। फिर भी दो लोकप्रिय कुंड हैं जो पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करते हैं। इन कुंडों का पानी बहुत पवित्र माना जाता है और लोग अक्सर स्नान कर पवित्र डुबकी लगाते हैं।* सूरज कुंड: इस कुंड का नाम सूर्य भगवान के नाम पर रखा गया है, और यह सभी तरफ से वरन्दास से घिरा हुआ है। चूंकि इस कुंड के पानी को पवित्र माना जाता है, इसलिए कई भक्त श्मशान के बाद मृत शरीर की राख को इस कुंड में विसर्जित करते हैं। यदि कोई गंगा में विसर्जन करने में असमर्थ होता है तो वो यहां आकर विसर्जन कर सकता हैय़ इस कुंड के पास ही भगवान शिव के लिंग रुप की मूर्ति रखी गई है। जबकि सीता, भारत के दो अन्य कुंड हैं।
* लक्ष्मण कुंड: सीताबरी में कई कुंडों में से, "लक्ष्मण कुंड" आकार में सबसे बड़ा है। कुंड के द्वारों में से एक को "लक्ष्मण दरवाजा" कहा जाता है। इस द्वार पर, भगवान हनुमान की मूर्ति रखी गई है।
सीताबाड़ी कैसे पहुंचे?
केलवाड़ा गाँव से कोटा की दूरी 117 किलोमीटर है तथा सीताबाड़ी स्थान बारां जिले के केलवाड़ा ग्राम से लगभग मात्र 1 किमी की दूरी पर है। तीर्थ यात्रियों के आवागमन के लिए कई बसें इस मार्ग पर चलाई जाती हैं। मेले के समय हजारों की संख्या में यात्रियों के यहाँ आने के कारण बसों की संख्या वृद्धि की जाती है। यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन बारां है जो केलवाड़ा से 75 किलोमीटर की दूरी पर है। मेले के दौरान हजारों पर्यटक और भक्त यहां इकट्ठे होते हैं, क्योंकि मेले के दौरान बड़ी संख्या में बसों की आवृत्ति बढ़ जाती है। यद्यपि सड़क के माध्यम से कनेक्टिविटी बहुत अच्छी है।To read this Article in English Click here