भारत का पूर्वी राज्य बिहार अपनी संस्कृति, सभ्यता और इतिहास के लिए तो प्रसिद्ध है ही साथ ही अपने त्यौहारों और मेलों के लिए भी विश्व भर में प्रसिद्ध है। बिहार की संस्कृति, सभ्यता और गौरवशाली इतिहास की झलक दिखाता सोनपुर मेला है। जिसे पशु मेला भी कहा जाता है। बिहार की राजधानी पटना से 25 किलोमीटर दूर लगने वाले एशिया के सबसे बड़ा मेला के हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर शुरू होता है। सोनपुर मेला नवंबर से दिसंबर तक चलता है। ये मेला उसी जगह पर लगता है, जहां कभी गज (हाथी विष्णु का भक्त) और ग्राह (मगरमच्छ) में भयंकर युद्ध हुआ था। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से इस युद्ध का खत्म किया था। इसलिए ये हरिहर क्षेत्र है। किन्तु आज यह मेला एक बड़े पशु मेला के रुप में उभरा है इस मेले में घोड़े-हाथियों के साथ साथ सूई तक का सामान मिल सकता है। यह एक तरह का व्यापरिक मेला है। सोनपुर मेले का इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि सोनपुर मेले में स्थित हरिहरनाथ मंदिर का निर्माण भगवान राम ने सीता स्वयंवर के लए जाते समय अपने हाथों से किया था। इसकी मरम्मत राजा मानसिंह ने कराई थी। मुगलकाल में राजा रामनारायण ने इस मंदिर को एक व्यापक रूप दिया। इस स्थान के बारे में कई धर्मशास्त्रों में चर्चा की गई है। हिंदू धर्म के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां स्नान करने से सौ गोदान का फल प्राप्त होता है। इसी तरह सिख ग्रंथों में यह जिक्र है कि गुरु नानक यहां आए थे। बौद्ध धर्म के अनुसार अंतिम समय में भगवान बुद्ध इसी रास्ते कुशीनगर गए थे। जहां उनका महापरिनिर्वाण हुआ था पहले यह मेला हाजीपुर में होता था। सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश से मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा। 2001 में, सोनपुर मेला में लाया गया हाथियों की संख्या 92 थी, जबकि 2016 में 13 हाथियों ने इसे मेले में बनाया, जिसका उद्देश्य केवल प्रदर्शन करना था ना कि बिक्री करना किन्तु धीरे-धीरे यह मेला पशु व्यापार का मेला बन गया। इस मेले में कभी अफगान, इरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे। कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल, घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी। चन्द्रगुप्त मौर्य के अलावा अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुंवर सिह ने भी से यहां हाथियों की खरीद की थी। आज भी यहां हाथी और घोड़ों की बिक्री चर्चा में रहती है। इसके अलावा यहां गाय, भैंस, बैल, ऊंट और पक्षियों की भी बिक्री होती है। अब भी यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। देश-विदेश के लोग अब भी इसके आकर्षण से बच नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले आते हैं।

सोनपुर मेले का आकर्षण

सोनपुर मेले का आकर्षण एक महीने तक चलने वाले सोनपुर मेले में पशुओं की खरीद फरोख्त देखते ही बनती है। देश भर के प्रमुख पशु विक्त्रेता अपने-अपने पशुओं को लेकर इस मेले में पहुंचते हैं। हर साल इस मेले में हजारों पशु खरीदे और बेचे जाते हैं। इसके अतिरिक्त मिट्टी के बर्तन और खिलौने, हस्तकला की वस्तुएं, हस्त निर्मित वस्त्र और आभूषण इस मेले के प्रमुख आकर्षण हैं। यह जगह दुधारू मवेशी मसलन गाय और भैंस हों या शान की सवारी समझे जाने वाले हाथी, घोड़ा या ऊंट जैसे पशुओं के लिए उपयुक्त है। प्राचीन काल से ही मध्य एशिया से व्यापारी पर्शियन नस्ल के घोड़ों, हाथी, अच्छी किस्म के ऊंट और दुधारू मवेशियों के लिए यहां तका आते थे। सोनपुर मेले की एक विशेषता यहां पर हाथी, घोड़े और गाय की बिक्री को लेकर भी है। सोनपुर मेला भारत का एकमात्र मेला है, जहां इन पशुओं की बिक्री इतनी अधिक संख्या में होती है। बिक्री के लिए इन पशुओं को बहुत ही बारीकी से सजाकर खड़ा किया जाता है। इन पशुओं के विक्रेता आम से लेकर खास लोगभी होते हैं। इसके अलावा इस मेले में बिहार सरकार द्वारा कई प्रदर्शनियां भी लगाई जाती हैं। इसके माध्यम से लोगों को उनके स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि की जानकारी दी जाती है। इन प्रदर्शनियों में किसानों के हित में किए जा रहे कार्य, किसानों के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा निर्मित अत्याधुनिक कृषि उपकरणों की भी प्रदर्शनी लगाई जाती है। वैसे यहां आने वाले पर्यटकों के लिए मनोरंजन की भी व्यवस्था की जाती है। नौटंकी, पारंपरिक संगीत नाटक, मैजिक शो, सर्कस आदि ये कुछ ऐसे मनोरंजन के साधन हैं जिन्हें देखकर पर्यटक अपना मन बहलाते हैं। बिहार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा प्रचारित प्रशासन आगंतुकों के लिए स्वास्थ्य और कल्याण शिविर, स्वच्छता, पेयजल सुविधाएं भी व्यवस्थित करता है। यह मेला लगभग 1 माह तक चलता है। इस मेले में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भक्त एवं पर्यटक आते हैं जो हरिहर मंदिर में पूजा करने के साथ-साथ मेले में सम्मिलत होते हैं। यह मेला बिहार की संस्कृति से परिचित कराता है। मंदिर में जाने से पूर्व भक्त भवंदरदार गंडक नदी के जल में स्नान करते हैं। पूजा-अर्पण व शुद्धिकरण के बाद यात्री मेला देखने के लिए निकल पड़ते हैं। इस मेले में बच्चों से लेकर बुजुर्गों एवं पुरुष व महिलाओं के लिए भी हर चीज उपलब्ध होती है। यहां आवश्यकता की हर चीज वाजिब दामों पर उपलब्ध होती है यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग इस मेले का साक्षी बनने आते हैं।

सोनपुर मेले से जुड़ी कथा

एशिया के सबसे बड़े और भारत के पौराणिक मेले सोनपुर मेले से जुड़ी एक पौराणिक कथा विद्य़मान है। कथा के अनुसार एक हूहू नामक गंधर्व ने देवल मुनि पर व्यंग्य किया था जिससे क्रोधित होकर मुनि ने हूहू को श्राप दे दिया कि वो एक मगर यानि मगरमच्छ बन जाएगा। वहीं दूसरे कारण से पांडुवंश के राजा इंद्रद्धुम्न जब ध्यान में लीन थे तो उन्हें ऋषि के आगमन का ज्ञान ही नहीं हुआ। अगस्तय मुनि को लगा कि इंद्रद्धुम्न ने उनका अपमान किया है जिससे क्रोधित होकर उन्होंने सरल, शांत सव्भाव वाले इंद्रद्धुम्न को हाथी यानि गज होने का श्राप दे दिया। हाथी बनकर इंद्रद्धुम्न जंगल में रहने लगा। एक बार वो अपने झुंड के साथ झील मे स्नान करने आया तभी उसे हूहू रुपी मगरमच्छ ने पकड़ लिया। यह देख कर सभी हाथी भाग गए। इंद्रद्धुम्न अकेला पड़ गया। गजराज और मगरमच्छ में कई हाजर वर्षों तक युद्ध चलता रहा। मगरमच्छ हाथी को अपनी और पानी में खींचता और हाथी बाहर निकलने की कोशिश करता। इस युद्ध को देखने के लिए सभी देवी-देवता एकत्रित हुए। अन्त में गज शिथिल पड़ने लगा और स्वंय को काल के मुंह में जाता देख उसने हरि यानि भगवान विष्णु का ध्यान कर रुदन प्रार्थना की जो इस प्रकार हैः
हे दीन बन्धु दयालु गुरू, केहि भाँति तव गुण गाऊँ मैं ।
तुम्हरे पवित्र चरित्र केहि विधि , नाथ कहि के सुनाऊँ मैं।
जिह्वा अपावन है मेरी , गुरू नाम कैसे लीजिये ।
तन फँस रहा भव जाल में , गुरू ध्यान किस तरह कीजिये।
माता-पिता सुत भ्रात भार्या, कोई संग नहीं जायेंगे।
इस पाप कुंभी नर्क में, प्रभु कोई न, हाथ बटाएँगे।
यह सोंचकर तव शरण आया, अब ठिकाना है नहीं।
बस पार कर दो मेंरी नौका, और अपना है नहीं।

अर्थात इस मगर रुपी काल के मुख से मुझे आपके सिवा कोई नहीं बचाएगा। हे प्रमु मेरी रक्षा कीजिए। अपने भक्त की इस रुदन प्रार्थना को सनुकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने सुदर्शतन चक्र से उन्होंने मगरमच्छ का मुख काट दिया जिससे मगरमच्छ रुपी हूहू गंध्रर्व को श्राप से मुक्ति मिल गई और वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ वहीं हाथी रुपी इंद्रद्धुम्न को भगवान ने बचा लिया और उसे श्राप से मुक्ति प्रदान कर अपने साथ बैकुंठ ले गए। तभी से सोनपुर का यह क्षेत्र मगर और गज के युद्ध के रुप में प्रचलित है जहां भगवान स्वंय अपने भक्त की रक्षा करने अवतरित हुए थे।

कैसे पहुंचें सोनपुर

बिहार की राजधानी पटना से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले पटना जाना पड़ेगा। कोलकाता, मुंबई और दिल्ली से पटना के लिए सीधी फ्लाइट है। पटना उत्तर भारत का एक बहुत ही बड़ा रेलवे जंक्शन है इसलिए आप ट्रेन के जरिए भी सोनपुर पहुंच सकते हैं। सोनपुर पहुंचने के लिए सड़क का जरिया भी अपना सकते हैं। सोनपुर में ठहरने के लिए टूरिस्ट विलेज बने हुए हैं जो आपको उचित कीमत पर उपलब्ध होंगे।


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October (Ashwin / Karthik)