भारत की भूमि बहुत पवित्र है, यहां कई संत-महात्माओं ने जन्म दिया है। जिन्होंने अपने अच्छे आचार-विचार एवं कर्मों के द्वारा मनुष्यों के जीवन को सफल बनाया और कई सालों तक लोगों को धर्म की राह से जोड़ कर जीवन का मार्ग प्रशस्त किया। इन्हीं महान संतो में से एक हैं श्री रामानुजा आचार्य। भारत वर्ष में रामानुजाचार्य की जयंती को रामानुजा जयंती के रुप में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। यह जयंती दक्षिण भारतीय दार्शनिक रामानुजाचार्य के सम्मान के रूप में मनाई जाती है। संत रामानुजा भगवान विष्णु के भक्त थे।

उन्होंने भक्ति आंदलोन में अहम भूमिका निभाई थी। भगवान विष्णु की भक्ति के प्रति समाज को अग्रसर किया था। महान संत श्री रामानुजम का जन्म हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सन् 1017 में श्री पेरामबुदुर (तमिलनाडु) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम केशव भट्ट था। जब उनकी अवस्था बहुत छोटी थी, तभी उनके पिता का देहावसान हो गया।

बचपन में उन्होंने कांची में यादव प्रकाश गुरु से वेदों की शिक्षा ली। रामानुजा के जन्म के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं है फिर भी उनकी जयंती मनाने का कार्य तमिल तमिल कैलेंडर को देख कर किया जाता है। आम तौर पर रामानुजाचार्य जयंती चैत्र के महीने में पड़ती है और यह आमतौर पर तिरुवथिरई नक्षत्र पर पड़ती है। रामानुजाचार्य को सबसे ज्यादा ज्ञानी आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया है। जिन्होंने वैष्णववाद के दर्शन और नैतिकता की वकालत कर समाज में सगुण भक्ति की नींव रखी।

श्री रामानुजाचार्य जयंती

रामानुजाचार्य का जीवन परिचय

श्री रामानुजाचार्य ने अपने अनुयायियों को अन्य सलाहकारों और नियमों से अलग होकर एक भक्ति मार्ग पर चलने का बढावा दिया है। रामानुजा एक महान दार्शनिक और विचारक थे, जैसा कि उनके दार्शनिक कार्यों अर्थात् वेद गर्थों, काव्यों और भगवत गीता के भाष्यों में स्पष्ट होता है। जब रामानुजा बहुत छोटी आयु के थे तभी उनके पिता का देहावसान हो गया। बचपन में उन्होंने कांची में यादव प्रकाश गुरु से वेदों की शिक्षा ली। हिन्दू पुराणों के अनुसार श्री रामानुजम का जीवन काल लगभग 120 वर्ष लंबा था।

रामानुजम ने लगभग नौ पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें नवरत्न कहा जाता है। वे आचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। 16 वर्ष की उम्र में ही श्रीरामानुजम ने सभी वेदों और शास्त्रों का ज्ञान अर्जित कर लिया और 17 वर्ष की उम्र में उनका विवाह संपन्न हो गया था। उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग कर श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली। वे श्रीयामुनाचार्य की शिष्य-परम्परा में थे। जब श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु सन्निकट थी, तब उन्होंने अपने शिष्य के द्वारा श्रीरामानुजाचार्य को अपने पास बुलवाया, किन्तु इनके पहुंचने के पूर्व ही श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु हो गई। वहां पहुंचने पर श्रीरामानुजाचार्य ने देखा कि श्रीयामुनाचार्य की तीन अंगुलियां मुड़ी हुई थीं। रामानुजाचार्य समझ गए श्रीयामुनाचार्य इनके माध्यम से 'ब्रह्मसूत्र', 'विष्णुसहस्त्रनाम' और अलवन्दारों के 'दिव्य प्रबंधनम्' की टीका करवाना चाहते हैं।

इन्होंने श्रीयामुनाचार्य के मृत शरीर को प्रणाम किया और उनके इस अन्तिम इच्छा को पूर्ण किया। मैसूर के श्रीरंगम से चलकर रामानुज शालग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में 12 वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। फिर उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए पूरे देश का भ्रमण किया। श्रीरामानुजाचार्य सन् 1137 ई. में ब्रह्मलीन हो गए।

रामानुजाचार्य का दर्शन

यह रामानुजाचार्य थे जिन्होंने इस विचार को प्रचारित किया कि भक्त पूजा की अपनी पद्धति चुन सकते हैं और भक्ति के माध्यम से भक्ति के उच्चतम स्तर तक पहुंच सकते हैं। चूंकि श्री रामानुजाचार्य एक समर्पित भक्त थे, उनके सुझाए गए साधन आमतौर पर मोक्ष प्राप्त करने के तरीके के रूप में स्वीकार किए जाते हैं। वह एक प्रचारक के रूप में जाने जाते थे, जिन्होंने भक्तों को निर्वाण के मार्ग पर निर्देशित किया और अपने भक्तों को निर्वाण प्राप्त करने में मदद की। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था। पहला- ब्रह्मसूत्र, दूसरा- विष्णु सहस्रनाम और तीसरा- दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखना। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक 'श्रीभाष्य' है।

जो पूर्णरूप से ब्रह्मसूत्र पर आधारित है। इसके अलावा वैकुंठ गद्यम, वेदांत सार, वेदार्थ संग्रह, श्रीरंग गद्यम, गीता भाष्य, निथ्य ग्रंथम, वेदांत दीप, आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं। श्री रामानुजाचार्य ने वेदांत दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट द्वैत वेदांत गढ़ा था। उन्होंने वेदांत के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी अलवार संतों से भक्ति के दर्शन को तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने विचार का आधार बनाया। श्रीरामानुजाचार्य बड़े ही विद्वान और उदार थे। वे चरित्रबल और भक्ति में अद्वितीय थे। उन्हें योग सिद्धियां भी प्राप्त थीं। अपने काम की अनूठी प्रकृति के कारण उन्हें न केवल उनके अनुयायियों द्वारा याद किया जाता है बल्कि विचारकों और दार्शनिकों द्वारा भी याद किया जाता है, जिन्हें हिंदू संस्कृति और इसकी परंपराओं की गहरी समझ है। उनके कार्यों में आज काफी प्रासंगिकता है और जब भी आवश्यकता होती है, विद्वानों द्वारा परामर्श किया जाता है। इनके द्वारा चलाये गये सम्प्रदाय का नाम भी श्रीसम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय की आद्यप्रवर्तिका श्रीमहालक्ष्मी जी मानी जाती हैं। श्रीरामानुजाचार्य ने देश भर में भ्रमण करके लाखों लोगों को भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया। यात्रा के दौरान अनेक स्थानों पर आचार्य रामानुज ने कई जीर्ण-शीर्ण हो चुके पुराने मंदिरों का भी पुनर्निमाण कराया। इन मंदिरों में प्रमुख रुप से श्रीरंगम्, तिरुनारायणपुरम् और तिरुपति मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनके सिद्धान्त के अनुसार भगवान विष्णु ही पुरुषोत्तम हैं। वे ही प्रत्येक शरीर में साक्षी रूप से विद्यमान हैं। भगवान नारायण ही सत हैं, उनकी शक्ति महा लक्ष्मी चित हैं और यह जगत उनके आनन्द का विलास है। भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण इस जगत के माता-पिता हैं और सभी जीव उनकी संतान हैं।

रामानुजाचार्य जयंती समारोह

श्री रामानुजाचार्य की महानता को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि पूरे देश में उनकी पूजा की जाती है। भारत के दक्षिणी और उत्तरी हिस्सों में भक्त इस दिन को विशेष उत्सव के रुप में मनाते हैं। इस शुभ अवसर पर श्री रामानुजाचार्य की मूर्ति को पारंपरिक पवित्र स्नान कराया जाता है। इस दिन श्री रामानुजाचार्य की शिक्षाओं को ध्यान में रख विशेष प्रार्थनाएं और संगोष्ठियों के सत्र आयोजित किए जाते हैं। श्री रामानुजाचार्य जयंती पर पूरे देश के मंदिरों में सांस्कृतिक उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं।

उपनिषदों के अभिलेख को इस दिन सुनना शुभ माना जाता है क्योंकि श्री रामानुजाचार्य इन उपनिषदों के निर्माण में गहराई से शामिल थे। भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु में इस दिन विशेष पूजा, अनुष्ठान कि किए जाते हैं। भक्त इस दिन को विशेष बनाने के लिए भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं। मंदिरो को सुंदर तरीके सजाया जाता है। रामानुजाचार्य की मूर्तियों पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी जाती है। भक्तगण दान-पुण्य करते हैं। भगवान विष्णु एवं रामनुजाचार्य से प्रार्थानाएं करते हैं कि उनका जीवन भक्तिमय सुखपूर्ण बिते।

श्री रामानुजाचार्य जयंती
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