तुलसी विवाह एक बहुत ही पवित्र और फलदाई त्योहार है। इस दिन तुलसी के पौधे की शालीग्राम (पत्थर) से शादी की जाती है। ये शादी भी अन्य शादियों की तरह मनाई जाती है। नए नए कपड़े डाले जाते हैं, मंडप सजता है, फेरे होते हैं और दावत भी दी जाती है। दरअसल चार महीने तक देवता सोए हुए होते हैं और इस दौरान सिर्फ पूजा पाठ ही होता है कोई शुभ कार्य नहीं होता है। देव उठनी के दिन सभी जागते हैं और मुहुर्त भी खुल जाते हैं। देवताओं के उठने के बाद पहला शुभ कार्य होता है तुलसी विवाह। तुलसी विवाह कार्तिक एकादशी के अगले दिन होता है।
 

कैसे होता है विवाह?

विवाह में सब कुछ आम विवाह की तरह ही होता है। बस दुल्हन की जगह होता है तुलसी का पौधा और दुल्हे की जगह शालीग्राम। शालीग्राम असल में विष्णु भगवान हैं। घर सजाया जाता है। मंडप लगता है। सबसे पहले तुलसी के पौधे को लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है। 16 श्रंगार का सामान चढ़ाया जाता है। अग्रि जलाई जाती है, शालिग्राम और तुलसी को हाथ में पकड़ कर फेरे दिलाए जाते हैं। विवाह के बाद प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। विवाह में महिलाएं विवाह गीत और भजन गाती हैं।

कथा 


कहा जाता है कि बहुत सदियों पहले एक जालंधर नाम का असुर था। वो हमेशा ही देवताओं को हरा देता। हर तरफ उसने क्रूरता फैला रखी थी। उसकी ताकत के पीछे थी उसकी पत्नी वृंदा और उसका पतिव्रता धर्म। जालंधर से परेशान देवताओं ने विष्णु से गुहार लगाई। तब विष्णु ने जालंधर की पत्नी का सतीत्व नष्ट कर दिया। सतीत्व खत्म होते ही जालंधर असुर युद्ध में मारा गया। वृंदा ने विष्णु को श्राप दिया कि तुम अब  पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।

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November (Kartik / Marghsheesh)