जनवरी 2024
सकट चौथ व्रत - 29 जनवरी (सोमवार)
सकट चौथ का व्रत विवाहित महिलाएं रखती है यह व्रत खासकर राजस्थान राज्य में अत्याधिक लोकप्रिय है। राजस्थान की महिलाएं एवं लड़कियां अपने पति एवं बेटों की दीर्घायु एवं उनके कल्याण के लिए इस व्रत क रखती है। सकट चौथ के व्रत में भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश सुख-समृद्धि के देवता के रुप में जाने जाते हैं। महिलाएं इस दिन उपवास रख भगवान गणेश से मंगल प्रार्थाएं कर आशीर्वाद ग्रहण करती हैं।भोगी पांदीगाई, मकर संक्रांति, पोंगल - 15 जनवरी (सोमवार), 15 जनवरी (सोमवार),15 जनवरी (सोमवार)
मकर संक्रांति, पोंगल एवं भोगी पांदीगाई एक हिंदू फसलों का त्यौहार है जो पूरे भारत में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। इस दिन को सर्दियों के कम होने एवं वंसत के आगमन के साथ फसलों के पकने के रुप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में पोगंल एवं भोगी पांदीगाई तो उतरी एवं पश्चिमी भारत में इसे मकर संक्रांति के रुप में मनाया जाता है।
फरवरी 2024
जया एकादशी - 01 फरवरी (बुधवार)
जया एकादशी भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित व्रत है। इस दिन उपवास करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही पिछले जन्म एवं इस जन्म के समस्त पारों से मुक्ति भी प्राप्त होती है। इस दिन भक्त व्रत रख कर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा-अराध्ना करते हैं।रथ सप्तमी – 16 फरवरी (शुक्रवार)
यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं ताकि वे अपने पिछले जन्मों में किए गए पापों से छुटकारा पा सकें। यह हिंदुओं के लिए एक बहुत शुभ दिन कहा जाता है। हिन्दूजन इस दिन स्नान दान करके अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं एवं मंगल जीवन की भगवान सूर्य से प्रार्थना करते हैं।महा नवमी - 17 फरवरी (सोमवार)
महा नवमी नवरात्रि के उत्सव का अंतिम दिन है। महानवमी हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। नौ दिनों तक चलने वाले 'नवरात्र' में नवमी की तिथि 'महानवमी' कहलाती है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इसे सरस्वती पूजा भी कहते हैं। यह दुर्गापूजा उत्सव ही होता है। महानवमी के दिन भक्तजन कुमारी कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराते हैं तथा दान आदि देकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। भक्त मां दुर्गा से अच्छे जीवन की कामना करते हैं।भीष्मा अष्टमी - 16 फरवरी (शुक्रवार)
भीष्म अष्टमी भीष्म पितमाह (महाकाव्य महाभारत के भीष्म) की जयंती है, जिन्हें उनकी मृत्यु का समय तय करने का वरदान प्राप्त था। यह त्योहार उनकी निष्ठा, भक्ति और आत्म ज्ञान के प्रति सम्मान देने का दिन है। इस दिन भीष्म को सम्मानित कर उनके गुणों को याद किया जाता है।मौनी अमावस्या - 09 फरवरी (शुक्रवार)
मौनी अमावस्या को किसी धैर्य और शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन लोग मौन व्रत अर्थात चुप एवं शांत रहकर इस व्रत का पालन करते हैं। यह व्रत आत्म नियंत्रण रखना सिखाता है। मौनी अमावस्या के दिन गंगा नदी में विशेष रुप से स्नान किया जाता है। इस दिन स्नान-दान की अत्यंत महिमा होती है।वसन्त पंचमी - 14 फरवरी (बुधवार)
वसंत पंचमी का त्यौहार वसंत ऋतु की शुरुआत को चिह्नित करता है। यह दिन देवी सरस्वती को समर्पित होता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा-अराध्ना की जाती है। उनसे विद्या एवं ज्ञान की प्रार्थना की जाती है। वंसत पंचमी के दिन कामदेव की भी पूजा होती है। यह दिन नई बहार आ का दिन होता है।माघ पूर्णिमा - 24 फरवरी (शनिवार)
माघ पूर्णिमा माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को कहते है। यह दिन सर्दियों की समाप्ति को भी इंगित करता है। माघ पूर्णिँमा के दिन पवित्र नदियों में खासकर गंगा नदी में स्नान कर दान-पुण्य करने की अत्यंत महीमा होती है। इस दिन भगवान विष्णु के सत्यानारायण रुप की पूजा-अर्चना की जाती है। माघ पूर्णिमा के दिन गंगा के घाटों पर भक्तों का मेला लगता है।कुम्भ संक्रांति - 13 फरवरी (मंगलवार)
कुंभ संक्रांति देवी गंगा को समर्पित त्यौहार है। इस दिन भक्त गंगा में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। गंगा नदी में इस दिन स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार गायों को प्रसाद देना इस दिन बहुत शुभ माना जाता है। कुंभ संक्राति के दौरान गायों की भी पूजा की जाती है। साथ ही मां गंगा की आरती इस दिन विशेष रुप से होती है।
मार्च 2024
आमलकी एकादशी – 19 मार्च (मंगलवार)
आमलकी एकादशी का व्रत आंवला के गुणों को प्रदर्शित करता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भक्त विशेष रुप से आवंला के पेड़ की पूजा करता है और अपने मंगल जीवन की प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि आंवला के पेड़ पर इस दिन भगवान विष्णु साक्षात विराजते हैं। वह भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।विजया एकादशी - 6 मार्च (बुधवार)
विजया एकादशी का व्रत विजय प्राप्ति को इंगित करता है। हिन्दू मान्यता है कि रावण के सीता को अपहरण करने के बाद भगवान राम ने सीता को छुड़ाने एवं रावण से युद्ध लड़ने से पहले विजया एकादशी का व्रत किया था। जिससे उन्होंने रावण को मारकर विजय प्राप्त की थी। यह व्रत बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतिक है।महा शिवरात्रि - 8 मार्च (शुक्रवार)
महा शिवरात्रि वह दिन है जब भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया था। इस दिन लोग भगवान शिव एंव देवी पार्वती को अराध्य मानकर व्रत एवं उपवास रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि विशेष रुप से कुंवारी कन्याएं इस व्रत को रख कर अच्छे वर की प्रार्थनाएं करती है। साथ ही विवाहित महिलाएं शिव-पार्वती से लंबे सुहाग की मनोकामनाएं करती है। इस दिन शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। मंदिरों में शिवलिंग पर दूध, दही, शहद एवं जल अर्पित कर प्रार्थनाएं की जाती है।होलिका दहन - 24 मार्च (रविवार)
होली दहन का त्यौहार हिन्दू मान्यता में बहुत महत्वपूर्ण हैओ। होलिका दहन का त्यौहार हिरण्यकश्यप की बहन और प्रहलाद का बुआ होलिका के आग में जलने की खुशी में मनाया जाता है। क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती जिसके कारण वो विष्णु भक्त प्रह्लाद को अपने गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है ताकि प्रहलाद की मृत्यु हो जाए। इस दिन लोग आग जलाकर उसे होलिका का नाम लेकर खुशी मनाते हैं। लोग इस दिन मनाने के लिए इसके आसपास नृत्य करते हैं।रंगवाली होली – 25 मार्च (सोमवार)
होली रंगों का त्योहार है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली को रंगों के साथ मनाने की परंपरा पहली बार भगवान कृष्ण द्वारा मथुरा में शुरू हुई थी। होली होलिका दहन के अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रगं लागकर गले मिलते हैं। घरों में इस दिन स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं।मीन संक्रांति - 14 मार्च (गुरुवार)
ज्योतिष शास्त्र में मीन संक्रांति का खास महत्व है। मीन संक्रांति पर सौर्यमंडल के सबसे शक्तिशाली ग्रह सूर्य का मीन राशि में प्रवेश होता है। मीन संक्रांति’ एक हिन्दू त्यौहार है, जिसे सूर्य के मीन राशि में संक्रमण के अवसर पर मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्यौहार को ‘मीन संक्रमण’ के नाम से जाना जाता है। अन्य सभी संक्रांतियों की भांति ही इस संक्रांति पर भी दान करने का विशेष माहात्म्य माना गया है। मान्यता है कि इस दिन भूमि का दान करने से जीवन में खुशहाली आती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
अप्रैल 2024
कामदा एकादशी - 19 अप्रैल (शुक्रवार)
कामदा एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस एकादशी का व्रत एंव पूजा करेगा वह खुद को जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त करेगा। कामदा एकादशी पर, भक्त पूरे दिन पानी के बिना उपवास करते हैं। इस दिन चावल एवं बैंगन का खाने में प्रयोग करना वर्जित होता है। कामदा एकादशी का व्रत रख भक्त भगवान विष्णु का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।राम नवमी - 11 अप्रैल (बुधवार)
राम नवमी का त्यौहार हिन्दू मान्यता में भगवान विष्णु के सातवें अवतार राम के जन्म के रुप में मनाया जाता है। भगवान राम का जन्न चैत्र माह की नवमी को हुआ था। इस दिन विशेष रुप से भगवान राम की मंदिरों में पूजा की जाती है। मंदिरों की शोभा इस दिन देखते ही बनती है। भक्त इस त्यौहार क बहुत धूम-धाम एंव हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। भगवान राम ने ही इस दिन जन्म लेकर रावण का वध किया था।बसोड़ा, शीतला अष्टमी - 2 अप्रैल (मंगलवार)
शीतला अष्टमी को ही राजस्थान में बसौड़ा कहा जाता है। यह माता शीतला को समर्पित व्रत है। इस दिन माता शीतला की पूजा होती है। वो रोगों को दूर करने वाली देवी मानी जाती है। इस दिन घरों में ताजा खाना नहीं बनता रात का बासी खाना खाने की इस पंरपरा को बासौड़ा कहते हैं। घरों में इस दिन चूल्हा जलाना वर्जित होता है।पापमोचिनी एकादशी – 5 अप्रैल (शुक्रवार)
पापमोचानी एकादशी व्रत विशेष रूप से मनुष्य द्वारा पूर्व एवं वर्तमान जन्म में किए गए पापों की क्षमा मांगहने एवं उनसे मुक्ति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भक्त उपवास रख कर अपने किए गए पापों की क्षमा प्रार्थना करते हैं और भगवान विष्णु से आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। इसलिए इसे पापमोचिनी एकादशी कहते हैं। यह पापों से छुड़ाने वाली एकादशी है।चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा, उगादि - 9 अप्रैल (मंगलवार) से 17 अप्रैल (बुधवार), 9 अप्रैल (मंगलवार)
चैत्र नवरात्रि के दिन को भारत में विभिन्न रुपों में मनाया जाता है। जहां उतरी पूर्वी एवं पश्चिमी भारत में इस दिन मां दुर्गा के नौं रुपों की पूजा होती है। मां के विभिन्न नौ रुपों की नवरात्रि के नौ दिन तक पूजा की जाती है। वहीं इसे हिंदू नववर्ष भी माना जाता है। महाराष्ट्र में इस पर्व को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। यह नववर्ष क आगमन का प्रतिक है। वहीं दक्षिण भारत के कर्नाटक और आन्ध्रप्रेदश में इसे उगादी के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रुप से नववर्ष के आगमन का प्रतिक है। जिसे विभिन्न राज्यों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है। इस दिन विशेष रुप से मां दुर्गा की अराधना की जाती है। मंदिरो में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।गौरीपूजा, गणगौर - 11 अप्रैल (गुरुवार)
गणगौर यानि गौरी पूजा भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान का एक रंगीन त्यौहार है। इसे मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रुप से भगवान शिव और उनकी पत्नी गौरी को समर्पित होता है। यह व्रत विशेष रुप से विवाहति महिलाएं एवं कुवांरी कन्याएं करती है। भगवान शिव और गौरी को अराध्य मानकर उनसे वैवाहिक जीवन सुखी एवं अच्छा वर पाने की कामना की जाती है। इस दिन गौरी पूजा का विशेष महत्व होता है। भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न भजनों को गाते हैं और शिव गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
हनुमान जयंती - 23 अप्रैल (मंगलवार)
हनुमान जयंती का व्रत भगवान हनुमान को अराध्य मानकर किया जाता है। भगवान हनुमान शिव के अवतार है। इनके धरती पर जन्म लेने के इस दिन को हनुमान जयंती के रुप में मनाया जाता है। भक्त इस दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन हनुमान मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें लगी रहती है। भक्त भगवान हनुमान की अराधना कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। भगवान हनुमान भगवान राम और माता सीता के परम भक्त थे।सूर्य ग्रहण - 8 अप्रैल (सोमवार)
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य ग्रहण लोगों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालने के लिए माना जाता है। सूर्य ग्रहण भगवान सूर्य को राहू एवं केतु के प्रभाव को इंगित करता है। इससे बचने के लिए भक्त भगवान सूर्य की अराधना करते हैं। इस दिन व्रत रखा जाता है एंव इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए प्रार्थनाएं की जाती हैं।
मई 2024
मोहिनी एकादशी - 19 मई (रविवार)
मोहिनी एकादशी व्रत को उनके पिछले जन्मों में किए गए पापों से छुटकारा पाने के लिए मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। समुद्र मंथन के समय जब दानवों और देवताओं में अमृत के लिए युद्ध होने लगा तो भगवान विष्णु ने सुंदर कन्या का रुप धारण कर अपने मोहिनी रुप से असुरों को भ्रमित कर देवताओं को अमृत पिलाया था। इस दिन व्रत करके अपने पापों की क्षमा याचना की जाती है। इस दिन लोग व्रत रखकर उपवास तोड़ते समय पानी की जगह दूध पीते हैं।वरुथिनी एकादशी – 4 मई (शनिवार)
वरुथिनी एकादशी का व्रत मनुष्यों को रोगों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पुराने रोग दूर हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने वाला व्यक्ति सभी स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्त हो जाता है। यह जीवन और मृत्यु के चक्र से भी व्यक्ति को मुक्त करता है। यह व्रत भी भगवान विष्ण को समर्पित है। भक्त इस व्रत को करके भगवान विष्णु से मंगल जीवन की कामना कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।परशुराम जयंती - 10 मई (शुक्रवार)
परशुराम जयंती भगवान विष्णु के 6 वें अवतार की जयंती है। हिंदू धारणा के अनुसार परशुराम आज भी धरती पर रहते हैं। उन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। परशुराम अपने गुस्से और अपने बल के लिए जाने जाते हैं उन्होंने धरती को 3 बार क्षत्रियों से मुक्त किया है। क्षत्रियवंश का नाश परशुराम जी ने ही किया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि में परशुराम जी उनके गुरु बनेगें।अक्षय तृतीया - 10 मई (शुक्रवार)
अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रुप में भी जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, अक्षय तृतीया सफलता और शुभकामनाएं लाती है। इस दिन सोने की खरीदारी करने से सुख-समृद्धि आती है। इस दिन बड़ी संख्या में लोग सोने की खरीदारी करते हैं। यह दिन नया काम शुरु करने के लिए भी सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन खरीदा गया कुछ भी समान कभी खत्म नहीं होता उसमें बढ़ोतरी होती ही रहती है।गंगा सप्तमी - 14 मई (मंगलवार)
गंगा सप्तमी का त्यौहार गंगा जयंती है। इस दिन गंगा का धरती पर अवतर हुआ था। भागीरथी के कठोर तपस्या करने के कारण उनके कुल के उद्धार के लिए गंगा स्वर्ग लोक से धरती पर अवतरित हुई थी। इस दिन मां गंगा की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन गंगा में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। भक्त इस दिन दूर-दूर से गंगा नदी में स्नान करने एवं दान-पुण्य करने आते हैं।सीता नवमी - 16 मई (गुरुवार)
देवी सीता के जन्म के दिन को सीता नवमनी एवं सीता जंयती के रुप में मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं मां सीता को अराध्य मानकर उनका उपवास करती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन महिलाओं के उपवास रखने से उनके पति की लबीं आयु होती है। अपने पति की दीर्धायु के लिए महिलाएं सीता जयंती पर माता सीता की पूजा कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करती है।नरसिंह जयंती – 21 मई (मंगलवार)
नरसिंह जयंती या नरसिंह चतुर्दशी का व्रत मुख्य रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न का प्रतिक है। इस दिन भगवान विष्णु ने असुर हिरण्यकश्प की मृत्यु करने एंव उससे अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह का अवतार लिया था चूकिं हिरण्यकश्चप को यह वरदान प्राप्त था कि उसे मनुष्य, जानवर, अश्त्र, शस्त्र नहीं मार सकते इसलिए भगवान विष्णु ने आधे नर और आधे जानवर का रुप धर नाखुन से हिरण्कश्यप का वध किया ता। इस दिन भक्त भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उनके नरसिंह रुप की पूजा करते हैं।बुद्ध पूर्णिमा - 23 मई (गुरुवार)
बुद्ध पूर्णिमा भगवान गौतम बुद्ध के जन्मदिवस के अवसर पर मनाई जाती है। भगवान बुद्ध को विष्णु का दसवां अवतार माना जाता है। इन्होंने अपने ज्ञान के जरिए मनुष्यों को नाय मार्ग दिखाया था। भगवान गौतम बुद्ध ने राजसी सुख त्याग कर सन्यासियों का जीवन व्यतीत किया। इस दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। भक्त इस दिन भगवान बुद्ध की उपासना कर पूजा करते हैं।नारद जयंती - 24 मई (शुक्रवार)
नारद जयंती देवर्षि नारद जिन्हें नारद मुनि भी कहा जाता है उनके जन्म के शुभ अवसर पर मनाई जाती है। देवर्षि नारद को सृष्टि का पहला पत्रकार भी कहा जाता है। उन्होंनें दुनिया में लगातार संचार और संदेश का प्रसार करने के लिए भी जाना जाता है। नारद मुनि को वरदान प्राप्त है कि वो कभी भी कहीं भी जा सकते है। सारी हलचलें एक जगह से दूसरी जगह नारद मुनि ही प्रसारित करते हैं। उन्हें वाद्य यंत्र यानि वीणा का अविष्कार करने के लिए भी जाना जाता है। वो सदैव भगवान विष्णु का ध्यान कर नारायण-नारायण का जाप करते रहते हैं।वृष संक्रांति - 14 मई (मंगलवार)
सौर हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वृषभ संक्रांति वर्ष के दूसरे महीने की शुरुआत को चिह्नित करती है। वृषभ संक्रांति का दिन दान करने और गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने का एक अच्छा दिन है। इस दिन भक्त सूर्य की अराधना कर दान-पुण्य करते हैं।वट सावित्री व्रत - 19 मई (शुक्रवार)
वट सावित्री व्रत सावित्री के नाम से रखा जाता है जिसने यमराज को हराकर अपने पति के प्राण वापस लाए थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री ने भगवान यम (मृत्यु के स्वामी) को धोखा दिया और उन्हें अपने पति सत्यवान के जीवन को वापस करने के लिए मजबूर कर दिया था। तब से, इस दिन, विवाहित महिलाएं वट सावित्री व्रत का निरीक्षण करती हैं और अपने पति के लंबे जीवन और कल्याण के लिए वट यानि बरगद के पेड़ की पूजा करती है।
जून 2024
मिथुन संक्रांति – 14 जून (शुक्रवार)
सौर कैलेंडर के अनुसार, मिथुन संक्रांति वर्ष के तीसरे महीने की शुरुआत को चिह्नित करती है। सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश करने पर मिथुन संक्रांति मनाई जाती है। मिथुन संक्रातिं विशेष रुप से उड़ीसा में मनाई जाती है। इस दिन कपड़े और पैसों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन लोग पांरपरिक वस्त्र पहन कर लोक गीत गाते हैं।निर्जला एकादशी – 18 जून (मंगलवार)
निर्जला एकादशी का व्रत हिन्दू मान्यता में सबसे कठोर व्रत है। इस व्रत में पानी की एक बूंद भी पीने की मनाही होती है। इसे बिना जल के किया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस व्रत में रात के समय सोना वर्जित माना जाता है। यह व्रत कठिन नियमों पर रहकर किया जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य स्वंय पर नियंत्रण करना सिखता है। यह व्रत चारों फलों का प्राप्ति करता है। इस दिन दान-पुण्य की भी अत्यंत महिमा होती हैशनि जयंती – 6 जून (रविवार)
शनि जयंती भगवान शनि की जयंती है। इस दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। शनि को न्याय का देवता माना जाता है। उनके क्रोध से बचने एंव जीवन में शनि की बाधा से मुक्ति पाने के लिए शनि जंयती का उपवास करते हैं। इस दिन भगवान शनि की पूजा की जाती है। मंदिरों में विशेष रुप से भगवान शनि के दर्शन करने के लिए भक्तों की लबीं कतारे लगती है। भगवान शनि प्रसन्न होकर मनुष्यों को सभी सुख-वैभव प्रदान करते हैं।गंगा दशहरा - 16 जून (रविवार)
गंगा दशहरे का दिन मां गंगा को समर्पित है। इस दिन मां गंगा ने भागीरथ द्वारा धरती पर अवतरण लेकर उनके कुल का उद्धार किया था। बरसों से भटक रहे भागीरथों के पूर्वजों की मुक्ति देवी गंगा ने दिलाई थी। इस दिन की हिन्दू मान्यता में अत्यंत महिमा है। भक्त इस दिन विशेष रुप से पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति पाते हैं। इस दिन इलाहाबाद के संगम के घाटों पर भक्तों का मेला लगता है।वट पूर्णिमा व्रत – 21 जून (शुक्रवार)
वट पूर्णिमा व्रत वाट सावित्री व्रत के ही समान है, जिसमें विवाहित महिलाएं अपने पतियों के लंबे जीवन और कल्याण के लिए उपवास करती हैं और वट एवं सावित्री की पूजा करके उनसे पति की दीर्घायु की कामना कर आशीर्वाद ग्रहण करती हैं।अपरा एकादशी - 2 जून (रविवार)
अपरा एकादशी को ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी भी कहते हैं। अपरा एकादशी का एक अर्थ यह कि इस एकादशी का पुण्य अपार है। इस एकादशी का व्रत करने से लोग पापों से मुक्ति होकर भवसागर से तर जाते हैं। पुराणों में एकादशी के व्रत के बारे में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए और अगले दिन नियम पूर्वक व्रत रखना चाहिए। इस दिन चावल खाना मना होता है।
जुलाई 2024
गुरु पूर्णिमा - 3 जुलाई (सोमवार)
गुरु पूर्णिमा व्यास पूजा के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह पूर्णिमा गुरुओं को सम्मान देने एवं जीवन में गुरु के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए मनाई जाती है। इसे व्यास जयंती भी कहते है। जो देवताओं के गुरु हैं। इस दिन भक्त अपने-अपने गुरु की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन दान-ध्यान की भी अत्यंत महिमा होती है। इस दिन भक्त उपवास रख कर भगवान से और अपने गुरुओं से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।कर्क संक्रांति / दक्षिणायन संक्रांति - 16 जुलाई (रविवार)
कर्क संक्रातिं को दक्षिणायन संक्रांति भी कहते है। इस दिन सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है। इस दिन भगवान सूर्य दक्षिण दिशा की यात्रा पर निकलते हैं उनकी इस यात्रा को दक्षिणायन संक्रांति के रुप में चिह्नित किया जाता है। इस संक्रांति को बहुत शुभ माना जाता है। यह मकर संक्रांति की तरह ही दान पुण्य के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। श्रद्धालू इस दिन भगवान सूर्य की पूजा कर गंगा में स्नान करते हैं और गरीबों एवं जरुरतमंदों की सेवा करते हैं।योगिनी एकादशी – 2 जुलाई, (मंगलवार)
भगवान कृष्ण ने महाभारत में राजा युधिष्ठरा से जुड़े पौराणिक कथाओं के साथ-साथ योगिनी एकादशी के महत्व को भी वर्णित किया था। इस दिन उपवास रखने से मनुष्यों को पिछले पापों से छुटकारा मिल जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का अच्छा अवसर होता है।जगन्नाथ रथयात्रा – 7 जुलाई (रविवार)
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की अत्यंत महिमा है। यह उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर में प्रत्येक वर्ष आयोजित होती है। यह 8 दिवसीय लबीं यात्रा होती है। इस यात्रा मं भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलदेव के साथ अपने मौसी के घर जाने के लिए निकलते है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दूर-दूर से भक्त पुरी आते हैं। यह यात्री बहुत ही शोभनिय होती है।देवशयनी एकादशी - 17 जुलाई (बुधवार)
देवश्यनी एकादशी को अषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी सुख-समृद्धि और भाग्य की प्राप्ति के लिए उपवास का दिन है। इस दिन भक्त भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन के बाद से भगवान विष्णु चार महीनों के लिए सो जाते हैं। जिस बीच कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इस दिन के बाद शादी-विवाह भी चार महीनों के लिए बंद हो जाते हैं। यह एकादशी देवताओं के सोने की एकादशी है।
अगस्त 2024
रक्षा बन्धन, नारली पूर्णिमा - 19 अगस्त (सोमवार), 19 अगस्त (सोमवार)
रक्षा बंधन एक त्यौहार है जो एक भाई और बहन के बीच प्यार, एकता और कर्तव्य का बंधन मनाता है। महाराष्ट्र में, इसे नारली पूर्णिमा या नारियल महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। रक्षा बंधन के दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके मंगल जीवन की कामना करती है। भाई इस अवसर पर बहन की रक्षा करने का प्रण लेता है साथ ही उसे उपहार भेंट करता है।हरियाली तीज - 7 अगस्त (बुधवार)
हरियाली तीज का व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। यह सावन मास में आता है। यह दिन केरल में मलयालम कैलेंडर की शुरुआत को चिह्नित करता है। इसके अलावा, इस दिन तमिल महीने में अवनी मसाम शुरू होता है। यह माना जाता है कि हरियाली तीज के ही भगवान शिव देवी पार्वती से शादी करने के लिए सहमत हुए थे। इस दिन महिलाएं एवं कुवारीं कन्याएं व्रत रख कर अच्छे वर एवं वैवाहिक जीवन की मनोकामनाएं करती हैं।कजरी तीज – 22 अगस्त (गुरुवार)
कजरी तीज या कोजारी तीज पर विवाहित और अविवाहित महिलाएं देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। भगवान शिव एंव देवी पार्वती को अराध्य मान उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करती हैं। इस दिन विशेष रुप से नीम के पेड़ की पूजा की जाती है। ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति को बाद मानसून में वर्षा ऋतु का स्वागत किया जाता है। पेड़-पौधों की हरियाली के स्वरुप इस दिन को मनाया जाता है।कृष्ण जन्माष्टमी - 26 अगस्त (सोमवार)
भगवान कृष्ण के जन्म लेने के दिन को जन्माष्टमी के रुप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु का 8 वां अवतार माना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के जन्म के स्वरुप उपवास किया जाता है। मंदिरों में विशेषकर मथुरा और वृंदावन के कृष्ण मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें लगती है। इस दिन भगवान कृष्ण के भजन गाकर उनसे अच्छे जीवन की प्रार्थना की जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी पूरे भारत में मनाई जाती है।अजा एकादशी - 29 अगस्त (गुरुवार)
अजा एकादशी का व्रत राजा हरिश्चंद्र द्वारा किया गया था। अपना सब कुछ खत्म हो जाने के बाद राजा हरिशचन्द्र ने इस एकादशी व्रत को किया और भगवान विष्णु से प्रार्थना की। इस करने के बाद उन्हें अपना राज्य, पत्नी एवं पुत्र सब वापस मिल गए थे। इस व्रत को करने से सभी बुरे दिनों की समाप्ति हो जाती है और सुख-समृद्धि की बढ़ोतरी होती है।सिंह संक्रांति – 16 अगस्त (शुक्रवार)
सिंह संक्राति व्रत सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश करने पर किया जाता है। जब सूर्य कर्क राशि से निकलकर सिंह राशि में प्रवेश करता है तो उसे सिंह संक्रांति कहते है। इस संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान करने एवं सूर्य की पूजा करने की विशेष महिमा होती है। इस दिन भक्त गरीबों एवं जरुरतमंदो में दान-पुण्य करते हैं। यह दिन केरल में मलयालम कैलेंडर की शुरुआत को भी चिह्नित करता है।सितम्बर 2024
अनंत चतुर्दशी, गणेश विसर्जन - 16 सितम्बर (सोमवार)
अनंत चतुर्दशी गणेश चतुर्थी त्योहार का आखिरी दिन होता है। दस दिनों तक चलने वाले इस गणेश चतुर्थी के त्यौहार के आखिरी दिन को अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भक्त भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन करते हैं और उनसे यह प्रार्थना करते हैं कि अगले वर्ष वह फिर उनके घर पधारें। इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना कर धून-धाम से उनकी विदाई की जाती है। इस त्यौहार की शोभा महाराष्ट्र में देखते ही बनती है।हरितालिका तीज – 06 सितम्बर (शुक्रवार)
हरतालिका तीज का व्रत एक बिना पानी यानि निर्जला उपवास है। इस व्रत को शादीशुदा महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए एवं कुवांरी कन्याएं अच्छे पति की प्राप्ति के लिए बिना पानी के करती हैं। इस व्रत में विशेष रुप से भगवान शिव एंव पार्वती की पूजा का जाती है। यह व्रत बिहार, उत्तर प्रदेश एवं नेपाल में विशेषकर किया जाता है। महिलाएं देवी पार्वती से शिव के जैसा पति पाने का कामना करती हैं।गणेश चतुर्थी – 07 सितम्बर (शनिवार)
गणेश चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। यह दिन महाराष्ट्र में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। भगवान शिव और पार्वती के पुत्र के रुप में गणेश को सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजा जाता है। इन्हें रिद्धी-सिद्धी का देवता भी कहा जाता है।ऋषि पंचमी - 08 सितम्बर (रविवार)
ऋषि पंचमी महिलाओं द्वारा सप्त ऋषि को श्रद्धांजलि अर्पित करने और राजस्ववाला दोष से शुद्ध होने के लिए मनाए जाने वाला उपवास हैं। ऋषि पंचमी का त्यौहार भाद्रपद शुक्ल माह की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं। इस दिन चारों वर्ण की स्त्रियों को चाहिए कि वे यह व्रत करें। यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के पक्षालन के लिए स्त्री तथा पुरुषों को अवश्य करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष माहात्म्य है।राधा अष्टमी – 11 सितम्बर (बुधवार)
राधा अष्टमी देवी राधा की जयंती है। इस दिन कृष्ण की राधा का जन्म हुआ था। राधा को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। इस दिन देवी राधा की पूजा-अर्चना की जाती है।परिवर्तिनी एकादशी – 14 सितम्बर (शनिवार)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पाशर्व, परिवर्तिनी अथवा वामन द्वादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान विष्णु श्रीरसागर में चार मास के श्रवण के पश्चात करवट बदलते है, क्योंकि निद्रामग्न भगवान के करवट परिवर्तन के कारण ही अनेक शास्त्रों में इस एकादशी को परिवर्तिनी एवं पार्शव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं तथा अंत में उसे प्रभु के परमपद की प्राप्ति होती है। विधिपूर्वक व्रत करने वालों का चंद्रमा के समान यश संसार में फैलता है।भाद्रपद पूर्णिमा - 17 सितम्बर (मंगलवार)
भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत प्रतिप्रदा श्राद्ध मृत परिवार के सदस्यों के लिए किया जाता है जो प्रतिपदा तीथी पर मृत्यु को प्राप्त हुए थे। इस दिन पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। साथ ही घर में समृद्धि और सुख का आगमन होता है।प्रतिपदा श्राद्ध - 18 सितम्बर (बुधवार)
यह दिन प्रतिपदा तीथी पर मरने वाले लोगों को समर्पित है। हिदू मान्यतानुसार परिवार के सदस्यों की आत्माओं को शांत करने एवं उनके मोक्ष की प्राप्ति के लिए साथ ही घर में समृद्धि लाने के लिए श्राद्ध किया जाता है। यह दिन दादा और दादी के श्राद्ध करने के लिए यह एक बहुत ही शुभ माना जाता है। इस तिथि में श्राद्ध करने से पूर्वजों की विशेष कृपा प्राप्त होती है।इंदिरा एकादशी - 28 सितम्बर (शनिवार)
इंदिरा एकादशी श्राद्धों में आती है, इसका व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के नीच योनि में पड़े पितरों का उद्घार हो जाता है, श्राद्घों में आने के कारण इसे श्राद्घ एकादशी भी कहते हैं। इसमें किए गए दान पुण्यों से पितर प्रसन्न होकर अपने परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं। जिससे घर में सुख-स्मृद्घि और खुशहाली आती है तथा परिवार के सदस्य हर क्षेत्र में तरक्की करते हैं। उनकी सभी विध्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से बड़े से बड़े पापों का नाश हो जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन पर भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते एवं केले के पत्तों को भेंट किया जाता है।विश्वकर्मा पूजा, कन्या संक्रांति - 16 सितम्बर (सोमवार)
विश्वकर्मा पूजा और कन्या संक्रांति एक ही दिन मनाई जाती हैं। सूर्य सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इस दिन कन्या संक्रांति होती है। इस दिन को विश्वकर्मा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। विश्वकर्मा ने ही इस धरती का निर्माण किया था। उन्हें सृष्टि का पहला निर्माणकर्ता कहा जाता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।
अक्टूबर 2024
नवरात्रि प्रारम्भ - 3 अक्टूबर (गुरुवार) से 13 अक्टूबर (रविवार)
शारदीय नवरात्रि हिन्दू मान्यताओं में बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। 9 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में देवी दुर्गा के नो रुपों की पूजा की जाती है। भक्त देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए विधि-पूर्वक पूजा पाठ करते हैं एवं व्रत रखकर मां की उपासना करते हैं। यह दिन नवरात्रि उत्सव के रुप में पूरे भारत में मनाया जाता है।सर्वपितृ अमावस्या - 2 अक्टूबर (बुधवार)
सर्वपित्रु अमावस्या श्राद्ध के समय आने वाली अमावस्या को कहते हैं। इस दिन मरे हुए पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा एवं दान पुण्य किया जाता है। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। मृत आत्माओं की मुक्ति एवं उनकी शांति के लिए यह अमावस्या व्रत किया जाता है। इसे महालय अमावस्या भी कहते हैं।तुला संक्रांति – 17 अक्टूबर (गुरुवार)
यह दिन तुला संक्रांति को चिह्नित करता है। सूर्य के कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश करने को तुला संक्रांति कहा जाता है। जो हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक कार्तिक महीने के पहले दिन आती है। यह संक्रांति दुर्गा महाष्टमी के दिन मनाई जाती है जिसे पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। तुला संक्रांति और सूर्य के तुला राशि में रहने वाले पुरे 1 महीने तक पवित्र जलाशयों में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजन का भी विधान है।सरस्वती पूजा - 09 अक्टूबर (बुधवार)
नवरात्रि पूजा के दौरान सरस्वती को आवाह्न यानि निमंत्रण दिया जाता है। नवरात्रि पूजा के सातंवे दिन यानि महासप्तमी को जब शुक्ल पक्ष होता है तो सरस्वती आवाहन किया जाता है। नवरात्रि के आखिरी तीन दिन मां सरस्वती की पूजा होती है। विजयादशमी के दिन विसर्जन किया जाता है।दशहरा, विजयदशमी - 12 अक्टूबर (शनिवार)
विजयदश्मी या दशहरा वो दिन है जब भगवान राम ने रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई को जीत दिलाई थी। रावण भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण करते लंका ले गया था। वानरों की मदद से भगवान राम ने रावण का वध किया और संसार में सत धर्म को कायम किया था। भगवान राम की रावण पर जीत के कारण इसे विजय दशमी भी कहा जाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई के जीत का जश्न मनाने का दिन भी होता है।पापांकुशा एकादशी - 13 अक्टूबर (रविवार)
पापांकुशा एकादशी के दिन मनोवांछित फल कि प्राप्ति के लिये विष्णु भगवान कि पूजा की जाती है। इस एकादशी के पूजने से व्यक्ति को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत के करने से मनुष्य को यमलोक के दु:ख नहीं भोगने पडते है। पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में कहा गया है, कि हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के फल,इस एकादशी के फल के सोलहवें, हिस्से के बराबर भी नहीं होता है।कोजागरी पूजा, शरद पूर्णिमा – 16 अक्टूबर (बुधवार)
अश्विन महीने के पूर्णिमा दिवस को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है जिस पर भक्तों द्वारा पूजा देवी दुर्गा एवं देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा को किए जाने वाला कोजागरी व्रत लक्ष्मीजी को अतिप्रिय हैं इसलिए इस व्रत का श्रद्धापूर्ण पालन करने से लक्ष्मीजी अति प्रसन्न हो जाती हैं और धन व समृद्धि का आशीष देती हैं। इसके अलावा इस व्रत की महिमा से मृत्यु के पश्चात व्रती सिद्धत्व को प्राप्त होता है।बछड़ों की पूजा की जाती है। उन्हें खाने के लिए गेहूं के उत्पादों की पेशकश की जाती है। इसे नंदिनी व्रत भी कहा जाता है।
धन तेरस - 29 अक्टूबर (मंगलवार)
धनतेरस पर, देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है जो समृद्धि, कल्याण, संपत्ति और धन प्रदान करते हैं। दिवाली से पहले आने वाले त्योहार को धनतेरस कहा जाता है। इस दिन धन के देवता धन्वंतरि की पूजा होती है। इस दिन कुबेर की पूजा की जाती है। दरअसल, धनतेरस के दिन ही भगवान धनवन्तधरी का जन्मी हुआ था, जो कि समुन्द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे।नरक चतुर्दशी, काली चौदस - 31 अक्टूबर (गुरुवार)
नरक चतुर्दशी दिन ज्यादातर देवी काली को समर्पित है, हालांकि, गुजरात में, इस दिन भगवान हनुमान की पूजा की जाती है। नरक चतुर्दशी को काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है यह यह दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है। माना जाता है कि असुर नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था।दीपावली, काली पूजा - 31 अक्टूबर (गुरुवार)
दीपावली एक रौशनी का त्यौहार है इसे लक्ष्मी पूजा भी कहा जाता है। इस दिन भगवान राम 14 वर्षों का वनवास काटकर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आए थे। उनके आने की खुशी में त्यौहार दिए जलाकर एवं आतिशबाजी करके मनाया जाता है। इस दिन विशेषरुप से माता लक्ष्मी की पूजा होती है। बंगाल और आसाम में इस दिन को काली पूजा के नाम से मनाया जाता है।अहोई अष्टमी - 24 अक्टूबर (गुरुवार)
करवा चौथ के चार दिन बाद महिलाएं अपने पुत्रों के लिए व्रत रखती हैं, जिसे अहोई अष्टछमी कहा जाता है। इस दिन घर की महिलाएं अहोई मां या अहोई एकादशी भगवती की पूजा करती हैं और अहोई अष्टटमी व्रत मांएं अपनी संतान की सुख, समृद्धि और लंबी आयु के लिए करती हैं। इस व्रत को करने वाली मां की संतान को कोई रोग-दुख,आर्थिनक संकट, दुर्घटना का खतरा नहीं होता। यदि संतान के पारिवारिक जीवन में कोई परेशानी है तो इस दिन किए गए उपायों से वो भी दूर हो जाती है।रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी - 18 अक्टूबर (सोमवार)
रमा एकादशी का व्रत रखने से मनुष्यव के पाप धुल जाते है। यह कार्तिक माह की एकादशी है। जिसका महत्वा अधिक माना जाता है। यह एकादशी कार्तिक कृष्णक पक्ष की एकादशी है। इस एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य रमा एकादशी के व्रत को करते हैं। उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। गोवत्स द्वादशी का व्रत भी इसी दिन पड़ता है।करवा चौथ - 20 अक्टूबर, (रविवार)
करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी एक ही दिन होता है। संकष्टीद पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है और उनके लिए उपवास रखा जाता है। करवा चौथ के दिन मां पार्वती की पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए चद्रमा के निकलते तक व्रत रखती है। इस दिन चंद्रमा को देखर उपवास खोला जाता है। कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखती हैं।
नवंबर 2024
गोवर्धन पूजा - 2 नवंबर (शनिवार) गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। गोवर्धन पूजा वह दिन है जब भगवान कृष्ण ने भगवान इंद्र को हराया था और उनके घमंड को तोड़कर एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इन्द्र के प्रकोप से लोगों की रक्षा की थी। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट का पर्व बी कहा जाता है। गोवर्धन पूजा और अन्नकूट हर घर में मनाया जाता है।भाई दूज - 2 नवंबर (रविवार)
भैया दूज है जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। यह भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है तथा देश भर में बड़े सौहार्दपूर्ण ढंग से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर केसर का तिलक लगाती हैं तथा उनकी लम्बी आयु की कामना करती हैं बहनें अपने भाई की लम्बी आयु के लिए यम की पूजा करती हैं और व्रत भी रखती हैं। राखी की तरह इस दिन भी भाई अपनी बहन को अनेक उपहार देते हैं।वृश्चिक संक्रांति - 16 नवंबर (शनिवार)
ज्योतिषशास्त्र अनुसार सूर्यदेव एक माह में राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्यदेव जब किसी राशि में प्रवेश करते हैं तो उस काल को संक्रांति कहते हैं। हिंदू पंचांग अनुसार मार्गशीर्ष माह में जब सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं तो उस संक्रांति को वृश्चिक संक्रांति कहते हैं। वृश्चिक संक्रांति के विशिष्ट पूजन व उपाय से वित्तीय समस्याओं का निदान होता है, छात्रों की परीक्षा में सफलता मिलती है व शिक्षण कैरियर में सफलता मिलती है।छठ पूजा - 05 नवंबर (मंगलवार) से 08 नवंबर (शुक्रवार)
भगवान सूर्य भगवान ऊर्जा और जीवन शक्ति के देवता हैं। सूर्य ही वो एकमात्र देवता है जिन्हें प्रत्यक्ष रुप से देखा जा सकता है सूर्य की महत्वता को प्रदर्शित करने के लिए छठ पूजा का व्रत किया जाता है। लोक आस्था के महापर्व 'छठ' का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें ना केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। बिहार में इस पर्व का खास महत्व है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है।कंस वध - 11 नवंबर (सोमवार)
मथुरा के राजा और भगवान कृष्ण के मामा कंस की हत्या श्री कृष्ण ने ही कही थी। कंस बहुत अत्याचारी था उसकी मृत्यु उसकी बहन के आठवें सतांन से होनी थी तो उसने तमाम नवजात शिशुओं की हत्या के आदेश दे दिये। जब कंस ने श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा आने का निमंत्रण देकर अपनी मौत को बुलावा दिया। श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से कंस का सर धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार कंस का वध कर भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी वासियों को एक अत्याचारी से मुक्ति दिलाई। जिस दिन दुनिया कंस के आतंक से मुक्त हुई वह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन माना जाता है।देवोत्थान एकादशी - 12 नवंबर (मंगलवार)
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादश को देवउठनी एकादशी, देवउठनी ग्यारस या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री हरि राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा कर बैकुंठ लौटे थे। इसी के साथ इस दिन तुलसी विवाह का पर्व भी संपन्न होता है। इस एकादशी के साथ ही शुभ विवाह का मौसम हिंदू कैलेंडर के अनुसार शुरू होता है।
कालभैरव जयंती - 12 नवंबर (शुक्रवार)
कालाष्टमी को 'भैरवाष्टमी' के नाम से भी जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ के भैरव रूप के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। भैरव की पूजा व उपासना से मनोवांछित फल मिलता है। अत: भैरव जी की पूजा-अर्चना करने व कालाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कालभैरव का दर्शन एवं पूजन मनवांछित फल प्रदान करता है। सती की मृत्यु के पश्चात भगवान शिव ने रौद्र रुप में कालभैरव का अवतार लिया था।
उत्पन्ना एकादशी - 26 नवंबर (मंगलवार)
मार्गशीर्ष मास की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इसी दिन से एकादशी व्रत की शुरूआत हुई थी क्योंकि सतयुग में इसी एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ था। इस देवी ने भगवान विष्णु के प्राण बचाए जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें देवी एकादशी नाम दिया। जो भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं वह पापों से मुक्त हो जाते है। यह एकादशी व्रत भक्तों को भगवान विष्णु की अराधना कर मोक्ष की प्राप्ति कराता है।
तुलसी विवाह - 13 नवंबर (बुधवार)
कार्तिक महीने की देवउठनी एकादशी को पूरे चार महीने तक सोने के बाद जब भगवान विष्णु जागते हैं तो सबसे पहले तुलसी से विवाह करते हैं। प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम के अवतार में तुलसी से विवाह किया था। इसीलिए हर साल प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी पूजा की जाती है। जो लोग तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है।कार्तिक पूर्णिमा - 15 नवंबर (शुक्रवार)
हिन्दू मान्यता में कार्तिक पूर्णिमा बहुत महत्व होता है। माना जाता है कि इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्ण, नर्मदा इन पवित्र नदियों में स्नान करके जप, तप, ध्यान योग और दान करने से अन्य तिथियों में किए गए दान पुण्य से अधिक फल प्राप्त होता है। माना जाता है कि इससे कुमार कार्तिक का पालन करने वाली 6 कृतिका माताएं प्रसन्न होती हैं जिससे दुर्भाग्य दूर होता है। इस दिन की मान्यता है कि भगवान विष्णु ने पहला अवतार लिया था जो मत्स्य अवतार के नाम से जाना जाता है। यह दिन वृंदा (तुलसी पौधे का प्रतीक) और शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय का जन्मदिन के रुप में भी जाना जाता है।दिसंबर 2024
विवाह पंचमी - 06 दिसम्बर (शुक्रवार)
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह किया था। अतः इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसको विवाह पंचमी भी कहते हैं। भगवान राम चेतना के प्रतीक हैं और माता सीता प्रकृति शक्ति की, अतः चेतना और प्रकृति का मिल न होने से यह दिन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन भगवान् राम और माता सीता का विवाह करवाना बहुत शुभ माना जाता है।मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती - 11 दिसंबर (बुधवार)
मोक्षदा एकादशी को बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर का पूजन करने, उपवास रखने व रात्रि में जागरण कर श्री हरि का कीर्तन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है। यह एकादशी मोक्षदा एकादशी व्रत यही वो दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर मानव जीवन को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश दिया था। यानि मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती का पर्व भी मनाया जाता है।धनु संक्रांति - 15 दिसंबर (रविवार)
वर्ष की आखिरी संक्रांति पर सूर्य वृश्चिक राशि से निकलकर अपने मित्र ग्रह गुरु की राशि धनु में पहुंचते हैं इसे धनु संक्रांति के नाम से जाना जाता है।। इसे पौष संक्रांति भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में इसे धनुर्मास कहा जाता है। इस समय श्री हरि विष्णु की पूजा का महत्व है। धनु संक्रांति काल में सूर्य नारायण की उपासना का विशेष महत्व है। धनु संक्रांति से मकर संक्रांति तक के काल को खरमास कहा जाता है। इस काल में सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।दत्तात्रेय जयंती, मार्गशीर्ष पूर्णिमा –14 दिसंबर (शनिवार)
दत्तात्रेय जयन्ती प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास की पौर्णमासी तिथि को मनाई जाती है महायोगीश्वर दत्तात्रेय भगवान विष्णु के अवतार हैं। इनका अवतरण मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ। अतः इस दिन बड़े समारोहपूर्वक दत्त जयंती का उत्सव मनाया जाता है इसी दिन मार्गशीर्ष पूर्णिँमा भी होती है। सनातन धर्म के अनुसार, सतयुग काल का प्रारंभ देवताओं ने मार्गशीर्ष माह की पहली तिथि को हुआ था। दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा की जाती है।To read this article in English Click Here