दुनिया भर में वन यानि जंगलों के महत्व और उनसे प्राप्त लाभों के बारे में समाज को जागरुक करने के लिए विश्व वन्य दिवस का आयोजन प्रतिवर्ष 21 मार्च को किया जाता है। विश्व वन्य दिवस को मनाने का उद्देश्य यह है कि विश्व के सभी देश मिलकर अपनी वन-सम्पदा की तरफ ध्यान दें और वनों को संरक्षण प्रदान करें। कई स्थानों पर वनों को काट-काट कर उन्हें बेचा जा रहा है। मानव अपने स्वार्थ के लिए भूमि को बंजर बनाता जा रहा है। इसलिए हम सब को मिलकर इसके खिलाफ कदम उठाने चाहिए। वन ही हमारा जीवन है। यदि वन पेड़-पौधे नहीं होगें तो धरती पर जीवन संभव नहीं होगा। आज हम आधुनिक बनने की होड़ में वनों को ही समाप्त करते जा रहें हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें, कारखाने, फैक्ट्री इत्यादि बनाने की लालसा में वन समाप्त होने की कगार पर आ गए हैं। भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 %) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान में भारत में 19.39 % भूमि पर वनों का विस्तार है। भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा वन पाये जाते है। भारत सरकार द्वारा सन 1952 ई. में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के तहत देश के 33.3 % क्षेत्र पर वन होने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वन-भूमि पर उद्योग-धंधों तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकड़ियों की बढती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है। हमें हमारे देश की "राष्ट्रीय निधि" को बचाना चाहिए और इनका संरक्षण करना चाहिए, हमें वृक्षारोपण (पेड़-पौधे लगाना) को बढ़ावा देना चाहिए। आज पूरा विश्व वन की कमी से जूझ रहा है। प्रत्येक देश में वनों का दोहन किया जा रहा है। वनों की कटाई के कारण आज प्रदूषण ने विकराल रुप धारण कर लिया है। प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से आज पूरे विश्व को खतरा है। इस प्रदूषण के दानव को रोकने का एकमात्र उपाय वनों का संरक्षण है। जिसके लिए आज सभी देशों को आगे आने की आवश्यकता है। आज अधिक से अधिक पेड़ लगाने की जरुरत है जिसके द्वारा हमारे वायु मण्डवल का सन्तुलन बना रहे और हमारे वायु मण्डल में बढते वायु प्रदुषण को रोका जा सके। वनों की सुरक्षा के सम्बन्ध में प्रसिद्ध पर्यावरणविद और पूर्व गृहमंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने कहा था कि -

"वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।"

पर्यावरण वनों के संरक्षण के उद्देशार्थ वन दिवस हर साल 21 मार्च मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत वर्ष 1971 में यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा द्वारा की गयी थी पर भारत में वन दिवस की शुरूआत 1950 में ही शुरू हो गयी थी। देश में वनों की कटाई रोकने के लिए 'चिपको आंदोलन' की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

विश्व वन्य दिवस

क्या था चिपको आंदोलन ?

वनो के लगातार लुप्त होने और व्यावसाय के उद्देश्य से निरंतर की जा रही वनों की कटाई को रोकने के लिए देश में एक महत्वपूर्ण आंदोलन चलाया गया था, जिसे चिपको आदोंलन कहा गया था। इस आंदोलन में पहाड़ी महिलाएं वनो की कटाई को रोकने के लिए वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं जिससे इसका नाम 'चिपको आंदोलन' पड़ा था। 26 मार्च, 1974 को पेड़ों की कटाई रोकने के लिए 'चिपको आंदोलन' अभियान शुरू किया गया था। जब उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई जिसका विरोध गौरा देवी नामक महिला ने अन्य महिलाओं के साथ किया था पर इसके बावजूद सरकार ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुँचे तो गौरा देवी उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना अंतत: ठेकेदार को जाना पड़ा। बाद में स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने इन महिलाओं ने अपनी बात रखी। फलस्वरूप रैंणी गाँव का जंगल नहीं काटा गया इस प्रकार यहीं से "चिपको आंदोलन" की शुरुआत हुई। आज भी इतिहास में जब भी पेड़ों के संरक्षण की बात आती है तो उसमें चिपको आदोंलन का नाम अवश्य लिया जाता है। इस आंदोलन ने लोगों को वृक्षों की उपयोगिता बताई। कमजोर समझी जाने वाली महिलाओं ने अपने दम पर पेड़ों की कटाई को रोका और दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की।

वनों का महत्व

जंगल का मतलब पेड़ नहीं होता बल्कि एक संपूर्ण परिसर होता हैं जहां एक जीवित समुदाय रहता है। एक वन में पेड-पौधों के साथ कई जानवर पशु-पक्षी, कीट-पतंगे भी रहते हैं। इनके रहने के लिए वन ही इनका घर है किन्तु हमारी नासमझी के कारण आज यह लोग बेघर हो गए हैं। कितने ही जानवार आज वन कटाई के कारण विलुप्त हो गए हैं। वनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। वनों की कटाई के कारण मिट्टी की क्षमता कम होती जा रही है। जंगल में पाई जाने वाली मिट्टी भी कई गुणकारी लाभ वाली होती है। इस मिट्टी की उरवर्क क्षमता अधिक होती है। यह पोषक त्तवों से भरपूर होती है। वनों के कारण कितने ही फल-फूल हमें प्राप्त होते हैं। पेड़ो की कटाई के कारण कई समस्याएं पैदा हो रही हैं, इसलिए समय की आवश्यकता कहती है कि सभी को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और जंगलों के कल्याण के खिलाफ होने वाली गतिविधियों को रोकना चाहिए। सभी को सक्रिय रूप से नए जंगलों की रोकथाम और निर्माण में शामिल होना चाहिए और वनों की कटाई को रोकना चाहिए। वन विभाग के नियमों के अनुसार, एक पेड़ को काटने के बदले में 10 पेड़ लगाए जाने चाहिए। हालांकि, पिछले दो दशकों में केवल 1 प्रतिशत ही पेड़ लगाए गए हैं। जंगल के शोषण के कारण देश में वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध पीढ़ी का अस्तित्व खतरे में है। पहाड़ी इलाकों में जंगलों को तोड़ने के कारण मिट्टी ढीली हो गई है। पहाड़ी क्षेत्रों में जगंल ही लोगों के जीवन का एकमात्र जरिया होते हैं। वो प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा करते हैं। पेड़ कटाई के कराण उपजाऊ पृथ्वी की ऊपरी परत क्षीण हो जाती है जो अनियंत्रित बारिश और बाढ़ की ओर अग्रसर होती है। भारत एक ऐसा देश है जहां कृषि पर अत्यधिक निर्भरता है। भारत को कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है किन्तु पेड़ों की कटाई के कारण आज खेती करना भी मुश्किल हो गया है। वनों की अवैध कटाई ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है। वषों से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहां मानवीय जीवन को प्रभावित किया है तो वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। वनों की अंधाधुंध कटाई होने के कारण देश का वन क्षेत्र घटता जा रहा है जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक है।

वनों के लाभ

हम चाहे जितना भी वनों का दोहन कर ले किन्तु वन हमें हमेशा कुछ देते ही हैं। हमसे कुछ लेते नहीं है। पेड़-पौधों से मिलने वाली ऑक्सीजन के दम पर ही मनुष्य जीवित है। यदि वन ना हो तो जीवन ही संभव नहीं है। वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधिय पौधे वनों में ही पाये जाती हैं। वनों के द्वारा कई दवाईयां निर्मित की जाती है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। वनो की लकड़ियों से फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव काग़ज़ के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से रबर आदि। फल, सुपारी और मसाले भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों में मृदा का अपरदन और बाढ भी रोकती हैं। पेड़ वनस्पति स्थानीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती है। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और जंगली जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं। वे सभी जीवों को सूर्य की गर्मी से बचाते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं। वन प्रकाश का परावर्तन घटाते हैं, ध्वनि को नियंत्रित करते हैं और हवा की दिशा को बदलने एवं गति को कम करने में मदद करते हैं। इसी प्रकार वन्यजीव भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये हमारी जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग हैं। आज यदि वन नहीं होगें तो हम भी नहीं होगें। वन मानव जीवन का पर्याय है। वनों का एक-एक कण मानव जाति के लिए औषधि स्वरुप है। इसलिए लोगों को जागरुक करने हेतु प्रतिवर्ष इसे वन दिवस के रुप में मनाया जाता है। ताकि लोग वृक्षों के प्रति जागरुक हों और इनका दोहन करने से खुद को रोक पाएं।

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