पुस्तकें इसांन की सबसे अच्छी दोस्त होती है। जो जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाती है। सुख-दुख हर पल साथ रहती है। पुस्तकें हमारे जीवन में हमारा मार्गदर्शन करती हैं। यह पुस्तके हीं होती है जो हमें जीना सिखाती हैं। अगर व्यक्ति के जीवन में पुस्तक ना हो तो व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास पूर्ण रुप से नहीं हो सकता। लेकिन आज इंटरनेट, मोबाइल फोन, कम्प्यूटर के कारण हम पुस्तकों से कटते जा रहें हैं। शीघ्र सब मिल जाने की लालसा में पुस्तकों से मिलने वाले सुकून को ही भूलते जा रहे हैं। जिसके कारण पुस्तकों को एक बार फिर से जीवित करने एवं उसकी महत्वता को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से विश्व पुस्तक दिवस का आयोजन किया जाता है। विश्व पुस्तक दिवस एक जरिया है लोगों के दिलों में पुस्तकों के प्रति प्रेम जागृत करने का।

विश्व पुस्तक दिवस के जरिए उन पर लेखकों, पाठकों, आलोचकों, प्रकाशकों और संपादकों का एक साथ सम्मान किया जाता है जो अपने ज्ञान, अपने अनुभवों को पुस्तकों के जरिए लोगों तक पहुंचाते हैं। विश्व पुस्तक दिवस के दिन ही विश्व कॉपीराइट दिवस भी मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य कॉपीराइट मूल्यों को बढ़ावा देना है ताकि किसी के ज्ञान पर कोई और अपना अधिकार ना जमा सके। इस दिन कॉपीराइट के अधिकारों के प्रति भी समाज को जागरुक किया जाता है। एक पुस्तक एक व्यक्ति, एक लेखक की पहचान होती है और इस पहचान का कोई और फायदा ना उठाए इसलिए विश्व पुस्तक दिवस के दिन ही विश्व कॉपीराइट दिवस का भी आयोजन किया जाता है। उच्च उद्देशीय अंतरराष्ट्रीय सहयोग तथा विकास की भावना से प्रेरित 193 सदस्य देश तथा 6 सहयोगी सदस्यों की संस्था यूनेस्को द्वारा विश्व पुस्तक तथा कॉपीराइट दिवस का औपचारिक शुभारंभ 23 अप्रैल 1995 को हुआ था। इसकी नींव तो 1923 में स्पेन में पुस्तक विक्रेताओं द्वारा प्रसिद्ध लेखक मीगुयेल डी सरवेन्टीस को सम्मानित करने हेतु आयोजन के समय ही रख दी गई थी। उनका देहांत भी 23 अप्रैल को ही हुआ था। सोवियत संघ में इस दिन को मार्च के पहले गुरुवार को मनाया जाता है।

विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस

विश्व पुस्तक दिवस का इतिहास

बुक प्रेमियों की भावना का सम्मान करने के लिए एवं उनकी निजता का ख्याल रखते हुए इस दिन की शुरुआत यूनेस्को ने विश्व पुस्तक तथा स्वामित्व (कॉपीराइट) दिवस का औपचारिक शुभारंभ 23 अप्रैल 1995 को की थी। पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्षिक आधार पर विश्व पुस्तक दिवस को मनाने के पीछे कई धारणाएं है। मीगुएल डी सरवेंटस नाम से सबसे प्रसिद्ध लेखक को श्रद्धांजलि देने के लिये स्पेन के विभिन्न किताब बेचने वालों के द्वारा वर्ष 1923 में पहली बार 23 अप्रैल की तारीख अर्थात् विश्व पुस्तक दिवस और किताबों के बीच संबंध स्थापित हुआ था। ये दिन मीगुएल डी सरवेंटस की पुण्यतिथि है। विश्व पुस्तक दिवस और प्रकाशनाधिकार दिवस को मनाने के लिये यूनेस्को द्वारा 1995 में पहली बार विश्व पुस्तक दिवस की सटीक तारीख की स्थापना हुयी थी। यूनेस्को के द्वारा इसे 23 अप्रैल को मनाने का फैसला किया गया था क्योंकि, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार प्रसिद्ध लेखक जिन्होंने लोगों को जीवन जीने का नया नजरिया दिया विलियम शेक्सपियर की जन्मतिथि एवं पुण्यतिथि दोनों एक ही दिन 23 अप्रैल को थी। जिसकी वजह से उन्हें श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से भी इस दिन का आयोजन किया गया।

विश्व पुस्तक दिवस का महत्व एवं कार्यक्रम

विलियम स्टायरॉन, ने कहा है कि एक अच्छी किताब के कुछ पन्ने आपको बिना पढ़े ही छोड़ देन चाहिए ताकि जब आप दुखी हों तो उसे पढ़ कर आपको सुकुन प्राप्त हो सके। किसी व्यक्ति की किताबों का संकलन देखकर ही आप उसके व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं। किताबों में ही किताबों के बारे में जो लिखा है वह भी बहुत उल्लेखनीय और विचारोत्तेजक है। एक अन्य लेखक मसलन टोनी मोरिसन ने लिखा है- 'कोई ऐसी पुस्तक जो आप दिल से पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जो लिखी न गई हो, तो आपको चाहिए कि आप ही इसे जरूर लिखें।' आज लोगों को पुस्तक के प्रति जागरुक करने एवं उनकी महत्वता बताते हुए उनसे प्रेम करना सिखाने के उद्देश्य से विश्व पुस्तक दिवस पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कई विकासशील देश भी स्थानीय भाव को सामने लाने के लिए भी विश्व पुस्तक दिवस का निरीक्षण करते हैं। इनमें बच्चों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि उन्हें अपना भविष्य इन किताबों के माध्यम से ही तय करना होता है। इसलिए बच्चों में किताबों के प्रति रुचि जगाने के लिए उनकी पंसद के अनुसार कार्टून बना कर, छोटी-छोटी कहानियों के जरिए, कविताओं के जरिए उन्में पुस्तकों के प्रति उत्सुकता जगाई जाती है। प्रकाशक और लेखकों को भी कॉपीराइट दिवस के लिए सक्रिय रूप से उनके द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों को अभियान में लाया जाता है।

आज कल सोशल मीडिया के जरिए पुस्तकों और कॉपीराइट के प्रति संदेश फैलाया जाता है। लोगों की रुचि के अनुसार ही पुस्तकों का संकलन किया जाता है। कई रोचन तथ्यों को पुस्तकों में रखा जाता है ताकि व्यक्ति उसे पढ़ने के लिए ललायति हो। पुस्तकें जेब में रखा एक बगीचा होती है। जो हर पल एक नई सुंगध के साथ फूल देती है। लोगों में पुस्तक प्रेम को जागृत करने के लिए मनाए जाने वाले 'विश्व पुस्तक दिवस' पर जहाँ स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बाँटने जैसे अभियान चलाये जा रहे हैं, वहीं स्कूलों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तक पढ़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है। लोगों को अपनी संस्कृति, सभ्यता से जोड़ने के लिए भी पुस्तकों का संकलन किया जाता है। पुस्तकों के जरिए ही हम अपने अतीत, अपने इतिहास, रीति-रस्मों से वाकिफ हो सकते हैं। लोगों को समाज के प्रति जागरुक करने एंव सामाजिक मुद्दों को भी ध्यान में रखकर पुस्तकों का प्रकाशन किया जाता है। किसी नेता, अभिनेता या नामचीन व्यक्तियों के जीवन की घटनाओं को पढ़ने में एक बहुत बड़ा वर्ग रुचि लेता है इसलिए उनकी आत्मकथा प्रकाशित की जाती है। आज कल पुस्तकों का प्रकाशन हर वर्ग की पसंद को ध्यान में रखकर किया जाता है ताकि समाज को कोई भी वर्ग अपनी पसंद की पुस्तक से वंचित ना रह सके। विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर लोगों को पुस्तकों के महत्व के प्रति जागरुक कर उनमें पुस्तक प्रेमी बनने की लालसा का संचार किया जाता है।

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