पहले के समय में स्वअध्याय पर हर बड़ा, हर बुजुर्ग ज़ोर देता था, पर उस वक़्त ये बातें बेमानी लगती थी| जैसे-जैसे समय बदल रहा है, वैसे-वैसे लोगों की सोच में भी परिवर्तन आ रहा है, जिसका परिणाम यह है कि अब आज की युवापीढ़ी स्वयं ही पढ़ने की ओर झुकाव करने लगी है | उन्हें इस बात के लिए टोकना नही पड़ता कि स्वअध्याय जीवन के लिए कितना ज़रूरी है| उसी का नतीज़ा है "नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला" |
प्रकाशन की दुनिया में पिछले 46 वर्ष से आयोजित हो रहे, इस मेले को अब कैलेंडर में एक बड़े और महत्वपूर्ण आयोजन के रूप में स्थान मिल गया है | हर साल जनवरी के महीनें में आने वालें इस मेले का इंतज़ार अब किताबों से प्यार करने वालें लोगो को बेसब्री से रहता है| हर वर्ष विश्व पुस्तक मेले में आने वालें लोगों की तादाद हर साल पिछलें वर्ष से ज़्यादा होती जाती है | मानव संसाधन एवम् विकास मंत्रालय द्वारा बनाए गये स्वायत संस्था "राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट" इस मेले का आयोजन इसलिए करती है ताकि, पूरे देश और विश्व भर में लोगों में पढ़ने की आदत पर उनकी अभिरुचि बन सकें |
राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट के अलावा इस मेले को आयोजित करने में भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन भी सह-संयोजक के रूप में सम्मिलित रहता है | पिछलें समय की तुलना से आज के दौर में भारतीय प्रकाशन अब प्रगतिशील हो चुका है| विश्व पुस्तक मेले में शामिल होने वालें प्रतिभागियों या नवोदित लेखकों के लिए लेखन या प्रकाशन के क्षेत्र में व्यवसायिक रूप से यहा आना एक अच्छा अवसर साबित होता है | साथ ही कुछ लेखक या कवि और कवित्रीयों के लिए टाइटल्स या खिताब देने के लिए भी यह उचित स्थान होता है| प्रकाशक एवम् सहप्रकाशक के रूप में स्थपित करने के लिए पुस्तक मेला अच्छा मंच बनता है |
विश्व पुस्तक मेला आयोजित होने से दुनिया के तमाम पब्लिशिंग हाउस और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्र का द्वार खुल जाता है, जिसकी वजह से यह मेला वैश्विक स्तर का हो जाता है | 2016 में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में विशेष अतिथि के रूप में चीन को आमंत्रित किया गया था | जिसकी थीम "विविधता" थी | वही वर्ष 2017 में आयोजित होने वाले विश्व पुस्तक मेले में थीम "औरतों पर औरतों द्वारा लेखन" था, वहीं 2018 में थीम “वातावरण और जलवायु परिवर्तन” है | 1972 में शुरू हुए इस मेले मे 200 प्रतिभागी शामिल हुए थे, जो आज की तारीख में बढ़कर 886 प्रतिभागियों तक पहुँच गयी है| उम्मीद यही है कि इसी तरह यह आकँड़ा हर वर्ष बढ़ता रहे |
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