पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण दिवस के विभिन्न विषय रहे हैं जैसेः
वर्ष 2018 का विषय "बीट प्लास्टिक प्रदूषण" है।वर्ष 2017 का विषय "प्रकृति से लोगों को जोड़ना" था।
वर्ष 2016 का विषय था "दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए दौड़ में शामिल हों"।
वर्ष 2015 का विषय था “एक विश्व, एक पर्यावरण।”
वर्ष 2014 का विषय था “छोटे द्वीप विकसित राज्य होते है।
वर्ष 2013 का विषय था “सोचो, खाओ, बचाओ” ।
वर्ष 2012 का विषय था “हरित अर्थव्यवस्था: क्यो इसने आपको शामिल किया है?”
वर्ष 2011 का विषय था “जंगल: प्रकृति आपकी सेवा में।”
वर्ष 2010 का विषय था “बहुत सारी प्रजाति। एक ग्रह। एक भविष्य।”
वर्ष 2009 का विषय था “आपके ग्रह को आपकी जरुरत है- जलवायु परिवर्तन का विरोध करने के लिये एक होना।”
वर्ष 2008 का विषय था “एक निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर।”
वर्ष 2007 का विषय था “बर्फ का पिघलना- एक गंभीर विषय है?”
वर्ष 2006 का विषय था “रेगिस्तान और मरुस्थलीकरण।”
वर्ष 2005 का विषय था “हरित शहर” और नारा था “ग्रह के लिये योजना बनाये।”
वर्ष 2004 का विषय था “चाहते हैं! समुद्र और महासागर।”
वर्ष 2003 का विषय था “जल।”
वर्ष 2002 का विषय था “पृथ्वी को एक मौका दो।”
वर्ष 2001 का विषय था “जीवन की वर्ल्ड वाइड वे।”
वर्ष 2000 का विषय था “पर्यावरण शताब्दी।”
पर्यावरण दिवस मनाने का इतिहास
यूं तो बरसों से मनुष्य पर्यावरण का दोहन कर रहा है। जिसे रोकने के लिए वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन किया गया था। इसी चर्चा के दौरान विश्व पर्यावरण दिवस का सुझाव भी दिया गया और इसके दो साल बाद 5 जून 1974 से इसे मनाना भी शुरू कर दिया गया। 1987 में इसके केंद्र को बदलते रहने का सुझाव सामने आया और उसके बाद से ही इसके आयोजन के लिए अलग अलग देशों को चुना जाता रहा है। इसमें हर साल 143 से अधिक देश हिस्सा लेते हैं और इसमें कई सरकारी, सामाजिक और व्यावसायिक लोग पर्यावरण की सुरक्षा, समस्या आदि विषय पर बात करते हैं।क्यों मनाया जाता है पर्यावरण दिवस
जिस तरह से आज विश्व पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहा है उसे रोकने के लिए पर्यावरण दिवस एक माध्यम है। मनुष्य ने बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, मालखाने, घर, फ्लैट, सड़कें, यातायात आदि बनाने के चक्कर में पर्यावरण को ही मुकसान पहुंचाया है। पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध करने का काम करते थे, हरियाली फैलाते थे। किन्तु आज हम खुली हवा में सांस भी नहीं ले पा रहें हैं। गाड़ियो, कारखानों से निकलते प्रदूषण ने हम सभी का जीना दुश्वर कर दिया है। एक ओर तो हम पैसे कमा रहें हैं वहीं दूसरी ओर प्रदूषण से होने वाली बीमारियों पर पैसे खर्च भी कर रहें हैं। बात यदि भारत की ही की जाए तो यहां देश की राजधानी दिल्ली का हाल ही सबसे ज्यादा बुरा है। लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत पैदा हो रही है। देश-विदेश में प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग भी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहा है जिसे देखते हुए इस बार पर्यावरण का केन्द्र ही प्लास्टिक को रखा गया। लोगों से अपील की गई है कि वो प्लास्टिक या उससे बनी थैलियों का प्रयोग ना करें क्योंकि प्लास्टिक में सिंथेटिक होता है। जो वर्षों तक रखने पर भी नष्ट नहीं होता। यह जमीन की उर्वरक शक्ति को भी खत्म कर देता है। प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में 500 अरब प्लास्टिक बैगों का उपयोग किया जाता है। हर वर्ष, कम से कम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में पहुंचता है, जो प्रति मिनट एक कूड़े से भरे ट्रक के बराबर है। हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं। इन प्लास्टिक का असर केवल इन्सानों की ही नुकसान नहीं पहुंचाता बल्कि, पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं, नदी-तलाबों को भी नुकसान पहुंचता है। आज कितने ही जीव-जन्तु भोजन की तलाश में प्लास्टिक को खाकर मरते जा रहें हैं। समुद्री जीवों की हालत और भी ज्यादा दयनीय है। सारा कचरा समुद्र में प्रवाहित करने से समुद्री जीवों के जीवन पर सकंट उत्पन्न हो गया है। अभी हाल ही में एक मछली के पेट से हजारों प्लास्टिक की थैलियां प्राप्त हुईं थी। प्लास्टिक आज पर्यावरण को सबसे ज्यादा हानि पहुंचा रहा है।पर्यावरण दिवस का महत्व
आज जिस तरह समस्त देश प्रदूषण की मार झेल रहें हैं। उसके लिए पर्यावरण के प्रति जागरुक होने की अति आवश्यकता है। पेड़-पौधे पर्यावरण का सबसे अच्छा स्त्रोत होते हैं किन्तु हम उन्हें ही समाप्त कर रहें है। इसके लिए सर्वप्रथम सभी को कम से कम एक पेड़ लगाने की आवश्यकता है। यह पेड़-पौधे वातावरण को स्वच्छ रखते हैं। साथ ही पशु-पक्षियों के होने के कारण कई विषैले पदार्थ भी दूर हो जाते हैं। हम सभी को प्लास्टिक से होने वाले नुकसानों के प्रति जागरुक होने की आवश्यकता है। खनिजों का प्रयोग कम कर के भी पर्यावरण को बचाया जा सकता है। पर्यावरण दिवस एक उत्सव की तरह मनाना चाहिए। जिससे लोग प्रोत्साहित होकर हानिकारक चीजों का प्रयोग ना कर सकें। अलग-अलग देशों में इस महान कार्यक्रम को मनाने के लिये विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों की योजना बनायी जाती है। सभी पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए समाचार पत्र, चैनल, रेडियो सबसे अच्छा जरिया है। जिनके माध्यम से लोगों को जागरुक किया जा सकता है। आज कई ऐसे विज्ञापन, स्लोगन इन पर चलाए व दिखाए जाते हैं जो हमें पर्यावरण के प्रति जागरुक करते हैं। पर्यावरणीय मुद्दों को घर-घर तक पहुंचाने के लिए बड़े-बड़े विशेषज्ञ वाद-विवाद करते हैं। नारे, जुलूसों के जरिए भी पर्यावरण की महत्वता लोगों को बताई जाती है। उनका ध्यान इस ओर आकर्षिक करने के लिए परेड और बहुत सारी गतिविधियाँ, अपने आसपास के क्षेत्रों को साफ करना, गंदगी का पुनर्चक्रण करना, पेड़ लगाना, सड़क रैलियों सहित कुछ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिया-कलाप कराए जाते हैं। इस कार्यक्रम में सभी उम्र के लोग हिस्सा लेते हैं। आज समाज में कई गतिविधियां पर्यावरण को लेकर कराई जाती हैं। जैसे नृत्य क्रिया-कलाप, कूड़े का पुनर्चक्रण, फिल्म महोत्सव, सामुदायिक कार्यक्रम, निबंध लेखन, पोस्टर प्रतियोगिया स्वच्छता अभियान, कला प्रदर्शनियों के द्वारा लोगों में जागरुकता फैलाई जाती है। साथ ही पेड़ लगाने के लिये लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है। आज सोशल मीडिया भी बहुत आसान जरिया बन गया है लोगों को जागरुक करने का। इसके माध्यम से भी कई समाजिक कैंपेन चलाए जाते हैं। लोग पोस्ट लिख कर पर्यावरण के प्रति भाव प्रकट करते हैं। स्कूल-कॉलेजों में भी कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर कई संगोष्ठियां, सम्मेलन इत्यादि आयोजित कर पर्यावरण संरक्षण के लिए जरुरी कदम उठाए जातें हैं। यदि अभी हम इस पर ध्यान नहीं देगें तो आने वाले समय में ना पर्यावरण बचेगा ना ही हम, बचेगा तो सिर्फ और सिर्फ प्रदूषण।To read this Article in English Click here