प्रत्येक वर्ष 17 अप्रैल को हीमोफिलिया संगठनों द्वारा दुनिया भर में विश्व हीमोफिलिया दिवस मनाया जाता है। हीमोफिलिया एक वंशानुगत अनुवांशिक बीमारी है। जो माता-पिता के जरिए बच्चों में फैलती है। इस बीमारी में खून का प्रवाह नहीं रुकता। जरा सी चोट लग जाने पर भी खून बहता ही रहता है। इस बीमारी का शिकार ज्यादातर पुरुष होते हैं। महिलाओं में यह बीमारी कम पाई जाती है। इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से ही दुनिया भर में हीमोफिलिया दिवस मनाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है। इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 1989 से विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाने की शुरुआत की गई। तब से हर साल 'वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हेमोफीलिया' (डब्ल्यूएफएच) के संस्थापक फ्रैंक कैनेबल के जन्मदिन 17 अप्रैल के दिन विश्व हेमोफीलिया दिवस मनाया जाता है। फ्रैंक की 1987 में संक्रमित खून के कारण एड्स होने से मौत हो गई थी। डब्ल्यूएफएच एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो इस रोग से ग्रस्त मरीजों का जीवन बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है। हीमोफीलिया दो प्रकार का होता है। इनमें से एक हीमोफीलिया 'ए' और दूसरा हीमोफीलिया 'बी' है। हीमोफीलिया 'ए' सामान्य रूप से पाई जाने वाली बीमारी है। इसमें खून में थक्के बनने के लिए आवश्यक 'फैक्टर 8' की कमी हो जाती है। हीमोफीलिया 'बी' में खून में 'फैक्टर 9' की कमी हो जाती है। पांच हजार से 10,000 पुरुषों में से एक के हीमोफीलिया 'ए' ग्रस्त होने का खतरा रहता है जबकि 20,000 से 34,000 पुरुषों में से एक के हीमोफीलिया 'बी' ग्रस्त होने का खतरा रहता है।

विश्व हीमोफिलिया दिवस

हीमोफीलिया शाही बीमारी

हीमोफीलिया को शाही बीमारी भी कहा जाता है। 'शाही बीमारी' कहे जाने वाले रोग 'हीमोफ़ीलिया' का पता सबसे पहसे उस समय चला था, जब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के वंशज एक के बाद एक इस बीमारी की चपेट में आने लगे थे। शाही परिवार के कई सदस्यों क हीमोफ़ीलिया से पीड़ित होने के कारण ही इसे 'शाही बीमारी' कहा जाने लगा था।

'विश्व हीमोफीलिया दिवस' का महत्व

पूरे विश्व में इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए 17 अप्रैल को 'विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस' मनाया जाता है। 'विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस' का लक्ष्य इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाना और सभी के लिए उपचार उपलब्ध कराना है। हीमोफ़ीलिया एक आनुवांशिक बीमारी है, जो महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक होती है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति में ख़ून के थक्के आसानी से नहीं बन पाते हैं। ऐसे में जरा-सी चोट लगने पर भी रोगी का बहुत सारा ख़ून बह जाता है। दरअसल, इस बीमारी की स्थिति में ख़ून के थक्का जमने के लिए आवश्यक प्रोटीनों की कमी हो जाती है। हीमोफ़ीलिया रक्त से जुड़ी ख़तरनाक बीमारी है। इस बीमारी में चोट लगने या किसी अन्य वजह से रक्त का बहना शुरू तो हो जाता है, लेकिन फिर उसे रोकना मुश्किल हो जाता है। अलग-अलग मरीजों में रोग की गंभीरता में अंतर होता है। कुछ मरीजों में रक्त के जमने की क्षमता कम होती है, जबकि बीमारी बिगड़ने पर यह बिल्कुल समाप्त हो जाती है। यह बीमारी लाइलाज ज़रूर है, पर सही इलाज द्वारा नियंत्रित की जा सकती है। इस रोग का एक कारण रक्त प्रोटीन की कमी बताई जाती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर के कारण ही बहते हुए रक्त का थक्का जमता है और ख़ून बहना रुकता है। इस रोग से ग्रस्त 70 प्रतिशत मरीजों में इस बीमारी की पहचान तक नहीं हो पाती और 75 प्रतिशत रोगियों का इलाज नहीं हो पाता। इसकी वजह लोगों के पास स्वास्थ्य जागरुकता की कमी और सरकारों की इस बीमारी के प्रति उदासीनता तो है ही साथ ही एक महत्वपूर्ण कारक यह भी है कि इस बीमारी की पहचान करने की तकनीक और इलाज महंगा है। परिणामस्वरूप इस बीमारी से ग्रस्त ज्यादातर मरीज बचपन में ही मर जाते हैं और जो बचते हैं, वे विकलांगता के साथ जीवनयापन करने को मजबूर होते हैं। इसी बात के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए हीमोफिलिया दिवस मनाया जाता है।

हीमोफिलिया के लक्षण

हीमोफिलिया के रोग से ग्रसित व्यक्ति की हालरत काफी कमजोर होती है। किसी दुर्घटना में चोट लगने के कारण उसकी जान भी जा सकती है क्योंकि खून बहना बंद ही नहीं होता है। हीमोफिलिया बीमारी की पहचान कई तरीके से की जा सकती है आसानी से खरोंच लगना, नाक से खून बहना, जो कि आसानी से बंद नहीं होता है। दंत चिकित्सा जैसे कि दाँत निकालते समय और रूट कैनाल के उपचार के दौरान अत्याधिक खून बहना, जोड़ों में सूजन अथवा असहनीय पीड़ा होना, पेशाब के रास्ते खून बहना, बच्चों में चिड़्चिड़ापन,कई बार आंखों से धुंधला दिखना इत्यादि लक्षण हीमोफिलिया होने का संकेत देते हैं। व्यकित को इसके प्रति लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।

हीमोफिलिया का उपचार

हीमोफीलिया का उपचार वैसे तो बहुत मंहगा है। लेकिन कई सरकारी अस्पतालों में इस रोग के लिए कुछ दवाइयां और इंजेक्शन उपलब्ध हैं। चूंकि इस रोग में रोगी को हफ्ते में दो-तीन इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं इसलिए लोगों को इसके इलाज के लिए कठिनाई भी उठानी पड़ती है। अब तक हीमोफीलिया ए के मरीज को सप्ताह में तीन और हीमोफीलिया बी के मरीज को सप्ताह में दो इंजेक्शन लेने पड़ते थे, मगर अब ऐसे इंजेक्शन ईजाद कर लिया गया है जिसे सप्ताह में एक बार लगाने से भी हीमोफीलिया के रोग से बचाव संभव हो सकेगा। इसके साथ ही अब मरीज को नसों में इंजेक्शन लगाने की पीड़ादायक स्थिति से नहीं गुजरना पड़ेगा क्योंकि नए शोध में ऐसे इंजेक्शन को भी ईजाद कर लिया गया है जिसे इंसुलिन की तरह सीधे त्वचा पर लगाया जा सकेगा और खास बात ये है कि इस इंजेक्शन को महीने में सिर्फ एक बार लेना पड़ेगा। इस बीमारी का लक्षण दिखते ही इसमें लापरवाही बरतना जानलेवा हो सकती है।

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