
चूहो के लिए प्रसिद्ध है करनी माता मंदिर
करणी माता मंदिर की खास बात है ”लोग इस मंदिर में आते तो माता के दर्शन के लिए हैं लेकिन भक्तों की नजरें सफेद चूहों को खोजती हैं। असल में यहां मान्यता है कि अगर किसी को यहां ढेर सारे चूहों के बीच सफेद चूहे के दर्शन होते हैं तो उसकी यहां मांगी गई मनोकामना पूरी होती है। वैसे तो करणी माता मंदिर का समय गर्मियों में सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक और सर्दियों में सुबह 5 बजे से 9 बजे तक होता है। लेकिन मेले के दौरान मंदिर रात 11 बजे तक दर्शनों के लिए खुला रहता है। इस मंदिर में पैर यहां हजारों की संख्या में चूहे देखने को मिलते । आकार में काफी बड़े इन मूसकों की संख्या करीबन 20 हजार बताई जाती है। मंदिर के हर गलियारे में इनका निवास है लेकिन आतंक बिलकुल भी नहीं। यहां तक की मंदिर के प्रसाद में भी इनका हिस्सा है। यहां प्रसाद भी चूहों का झूठा ही भक्तों को दिया जाता है। कहा जाता है कि चूहों का झूठा प्रसाद खाने से भक्तो के रोग-दोष दूर हो जाते हैं। विज्ञान भी करनी माता के इन चूहों के प्रसाद को समझ नहीं पाया है। क्योंकि इतना होने के बाद भी मंदिर सहित पूरे देशनोक में आजतक प्लेग से एक भी मौत नहीं हुई है। करणी माता मंदिर में चूहों को काबा कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा दूध, लड्डू आदि भक्तों के द्वारा भी परोसा जाता है। असंख्य चूहों से पटे इस मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता और न ही मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश करती है।करनी माता का महत्व
देशनोक करनी माता का मूल स्थान है जहां किंवदंतियों के अनुसार; वह सभी जाति समुदायों के लिए लड़ी और गांव के वंचित और उत्पीड़ित समुदायों की ओर काम करके अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि वह रहस्यमय शक्तियों का रुप हैं जिसे पूजा और बीकानेर के शासकों के संरक्षक देवता के रूप में माना जाता है। करनी माता ने गरीबों और कमजोर लोगों के विकास के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया था। करनी माता को उनकी अलौकिक शक्तियों के लिए जाना जाता है। उन्हें देशनोक शहर की नींव रखने के लिए श्रेय दिया जाता है। बीकानेर के आस-पास के इलाकों के लोग भी नियमित रूप से देवी की प्रार्थना करने मंदिर जाते हैं।करनी माता की कथा
करनी माता के इतिहास को बताती एक पौराणिक कथा विद्धमान है। करणी माता मां दुर्गा का अवतार हैं। मान्यता के अनुसार करणी का जन्म 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम रिघुबाई था और उनकी शादी साठिका गांव के किपोजी चारण से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही उनका मन सांसारिक जीवन से ऊब गया और उन्होंने किपोजी की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवाकर खुद को मां दुर्गा की भक्ति में लगा दिया। कालान्तर में वे करणी माता के नाम से पूजी जाने लगी। बताते है कि करणी 151 साल जिंदा रही और 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लीन हुईं। मंदिर में रहने वाले ये चूहे करणी माता की संतान माने जाते हैं। प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार करणी माता का सौतेला पुत्र (उनकी बहन और उनके पति का पुत्र) लक्ष्मण, कोलायत में स्थित कपिल सरोवर में पानी पीने की कोशिश में डूब कर मर गया। जब करणी माता को यह पता चला तो उन्होंने, मृत्यु के देवता यम की तपस्या की। यम ने करणी की कठोर तपस्या को देखकर उस पुत्र को चूहे के रूप में पुनर्जीवित कर दिया। ये उसी पु़त्र के वंशज है। एक कहानी यह भी प्रचलित है कि बीकानेर से 20 हजार सैनिकों की सेना देशनोक पर चढ़ाई करने आई थी और करणी माता ने अपने प्रताप से इन्हें चूहे बना दिए और अपनी सेवा में रख लिया।करनी माता मंदिर की विशेषता
देशनोक में करणी माता के दो मंदिर हैं। दोनों मंदिर भव्य हैं। देशनोक स्टेशन के नजदीक स्थित मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। ज्यादा चूहे इस मंदिर में है। यहां पर एक म्यूजियम भी जहां करणी माता के जीवन और उनसे जुड़ी आलौकिक घटनाओं की जानकारी चित्रों के माध्यम दी गई है। मंदिर में खाना पकाने के लिए रखा गया बड़ा कड़ाव भी आकर्षण का केंद्र है। दूसरा मंदिर यहां से करीब दो किलोमीटर दूर है। यह भव्य मंदिर सफेद संगमरमर से बना है। यहां पर एक गुफा है जहां करणी माता पूजा किया करती थी। तीर के साथ दिखाई देने वाली करनी माता की दयालु छवि कला प्रेमियों के ह्रदय को लुभा लेती है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है। करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है। करनी माता मंदिर पूरी तरह से उनको समर्पित है। वह जोधपुर और बीकानेर के शाही परिवारों के कुलदेवी भी है।करनी माता मंदिर में चूहों का महत्व
लोकप्रिय भक्त मंदिर जाने वाले नियमित भक्त अपने अनुभवों को बेहद खुशी से साझा करते हैं। मंदिर की अनूठी विशेषता मंदिर के अंदर घूमते हुए हजारों सफेद और भूरी चूहों की संख्या है। इन चूहे को भक्तों द्वारा समान रूप से पूजा की जाती है। इन्हें करनी माता के दूत के रूप में मना जाता है। भक्त जब भी करनी माता के मंदिर में जाते हैं वहां इन चूहों को भोजन अर्पित करते हैं। संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचे। वहां जैसे ही दूसरा गेट पार किया, तो चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह गया। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते है। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है।
कैसे पहुंचें करनी माता मंदिर
हवाई जहाज द्वारामंदिर से निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जो कि मंदिर से 220 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से आप आसानी से एक टैक्सी या निजी / सरकारी परिवहन बस किराए पर ले सकते हैं, जो बहुतायत में उपलब्ध हैं।
ट्रेन द्वारा
निकटतम रेलवे स्टेशन बीकानेर रेलवे स्टेशन (30 किमी दूर है), जो कि भारत के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
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