उत्तर भारत में सावन के महीने के दौरान लव और कुश जयंती मनाई जाती है। चलिये सबसे पहले लव कुश के बारे में जान लेते हैं ।
बात तब की है जब श्रीराम वनवास से लौट चुके थे और सीता श्रीराम को प्रजा से मिलने वाले तानो से (रावण के अगवा करने पर भी विश्वास करने का) अपने पति को बचाने के लिए स्वेच्छा से वनवास में चली गई थी| सीता तब गर्भवती थी और वाल्मीकि के आश्रम में लव कुश को जन्म दिया| लवकुश को भी नहीं पता था और न ही अयोध्या में किसी को के वो दोनों असल में कौन है, ऐसे में दोनों को मौका मिला रामदरबार में प्रस्तुति देने का और दोनों ने ऐसी कथा सुनाई की राम हनुमान समेत पूरा दरबार रो पड़ा| लवकुश बीच दरबार में बैठे और संगीतमय राम कथा को सब को सुनाने लगे, राम जन्म से रावण वध तक की कथा तो सबने आनंद से सुनी लेकिन जब कहत अंतिम पड़ाव पे पहुंची तो माहौल गमगीन हो गया| जब सीता के वनवास में वाल्मीकि की कुटिया में तकलीफों की व्यथा बताई लव कुश ने तो राम भी रोने लगे| इन्ही वीर और यशस्वी बालकों के जन्म के उपलक्ष्य में आज भी लव-कुश जयंती मनाई जाती है|
Luv Kush Jayanti

पिता का पुत्रों से मिलन

जब रावण ने सीता का हरण किया तो राम द्वारा युद्ध में रावण मारा गया। रावण वध के बाद सीता को लेकर जब राम अयोध्या लौटे तो उसके बाद कुछ समय तक राम ने राज किया। इसके बाद लोक मर्यादा के रहते सीता का त्याग कर दिया। जब लक्ष्मण सीता को वन में छोड़ आया, तब सीता वाल्मीकि के आश्रम में रहीं और वहीं दो जुड़वां पुत्रों लव व कुश को जन्म दिया। आश्रम में ही दोनों बालक बड़े हुए। वाल्मीकि ऋषि ने ही लव-कुश को सारी शिक्षा दी थी। उन्होंने लव और कुश को धनुष विद्या भी सिखाई थी। जिस कारण उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था।  इस बीच अयोध्या में सभी के आग्रह करने पर राम ने अश्वमेध यज्ञ किया। जिसमें यज्ञ का अश्व स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ा जाता है यदि कोई उस अश्व यानी घोड़े को पकड़े तो उसे राम की सेना से युद्ध करना होगा। राम के यज्ञ का अश्व जब वाल्मीकि के आश्रम तक पहुंचा तो यज्ञ से अनभिज्ञ दोनों तपस्वी बालकों लव और कुश ने उसे पकड़ लिया। यज्ञ के अश्व की रक्षा के लिए साथ गए भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और हनुमान सहित पूरी राम सेना से लव -कुश की लड़ाई हुई। इसी लड़ाई में हनुमान भी लव-कुश से लड़े, क्योंकि दोनों राम व सीता के पुत्र होने के साथ ही बहुत बलशाली और युद्ध में निपुण योद्धा भी थे, इसलिए कोई भी उनके सामने न टिक पाया। आखिर में जब राम खुद युद्ध के लिए पहुंचे। तब सीता के आ जाने से पूरी कथा की धारा बदल गई। हनुमान और लव -कुश के युद्ध की यह कथा रामकथाओं में अलग-अलग रूपों में विस्तार से मिलती है। हिंदू धर्म ग्रंथ रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकी ने जिस वन में तप किया, लव-कुश ने अपना बचपन जहां खेल कर बिताया और जानकी माता जिस जगह धरती के गर्भ में समाई, उस स्थान पर अब विशाल मेला लगता है। यह स्थान है राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले से लगभग 50 किलोमीटर दूर।  राजस्थान के इस स्थान पर लव-कुश से भिड़े थे हनुमान जी । अब इस स्थान पर  हर वर्ष मेला लगता है । जिसमें हजारों श्रद्धालु आते हैं।

राम दरबार में उपस्थिति

राम द्वारा अयोध्या यज्ञ में महर्षि वाल्मीकि आये उन्होंने अपने दो हष्ट पुष्ट शिष्यों से कहा – तुम दोनों भाई सब ओर घूम-फिर कर बड़े आनंदपूर्वक सम्पूर्ण रामायण का गान करो। यदि  श्री रघुनाथ पूछें-बच्चो ! तुम दोनों किसके पुत्र हो तो महाराज से कह देना कि हम दोनों भाई महर्षि वाल्मीकि के शिष्य हैं। उन दोनों को देख सुन कर लोग परस्पर कहने लगे, इन दोनों कुमारों की आकृति बिल्कुल रामचंद्र जी से मिलती है ये बिम्ब से प्रगट हुए प्रतिबिम्ब के सामान प्रतीत होते हैं। यदि इनके सर पर जटाएं न होतीं और ये वल्कल वस्त्र न पहने होते तो हमें रामचन्द्र जी में और गायन करने वाले इन कुमारों में कोई अंतर दिखाई नहीं देता। बीस सर्गों तक गायन सुनाने के बाद श्री राम ने अपने छोटे भाई भरत से दोनों भाइयों को 18-18 हजार मुद्राएं पुरस्कार रूप में देने को कह दिया। यह भी कह दिया कि और जो कुछ वे चाहें वह भी दे देना पर दिए जाने पर भी दोनों भाइयों ने लेना स्वीकार नहीं किया । वे बोले- इस धन की क्या आवश्यकता है? हम वनवासी हैं। जंगली फूल से निर्वाह करते हैं सोना चांदी लेकर क्या करेंगे। उनके ऐसा कहने पर श्रोताओं के मन में बड़ा कुतूहल हुआ। रामचंद्र जी सहित सभी श्रोता आश्चर्य चकित रह गए।
रचयिता का नाम पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि हमारे गुरु वाल्मीकि जी ने सब रचना की है । उन्होंने आपके चरित्र को महाकाव्य रूप दिया है इसमें आपके जीवन की सब बातें आ गयी हैं| उस कथा से रामचंद्र जी को मालूम हुआ कि कुश और लव दोनों सीता के पुत्र हैं। कालिदास के दुष्यंत के मन में शकुंतला के पुत्र नन्हे भरत को देखते ही जिन भावों का उद्रेक हुआ था,क्या राम के मन में लव और कुश को देख-सुनकर कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए थी?

आदि कवि ऐसे मार्मिक प्रसंग को अछूता कैसे छोड़ देते। निश्चय ही यह समूचा प्रसंग सर्वथा कल्पित एवं प्रक्षिप्त है। यह जानकारी सभा के बीच बैठे हुए रामचन्द्र जी ने तो शुद्ध आचार विचार वाले दूतों को बुलाकर इतना ही कहा-तुम लोग भगवन वाल्मीकि के पास जाकर कहो कि यदि सीता का चरित्र शुध्द है और उनमें कोई पाप नहीं है तो वह महामुनि से अनुमति ले यहाँ जन समुदाय के सामने अपनी पवित्रता प्रमाणित करें।

इस प्रकरण के अनुसार रामचन्द्र जी को यज्ञ में आये कुमारों के रामायण पाठ से ही लव कुश के उनके अपने पुत्र होने का पता चला था। परन्तु इसी उत्तर काण्ड के सर्ग 65-66 के अनुसार शत्रुघ्न को लव कुश के जन्म लेने का बहुत पहले पता था | सीता के प्रसव काल में शत्रुघ्न वाल्मीकि के आश्रय में उपस्थित थे ।जिस रात को शत्रुघ्न ने महर्षि की पर्णशाला में प्रवेश किया था। उसी रात सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया था। आधी रात के समय कुछ मुनि कुमारों ने वाल्मीकि जी के पास आकर बताया -“भगवन ! रामचन्द्र जी की पत्नी ने दो पुत्रों को जन्म दिया है।” उन कुमारों की बात सुनकर महर्षि उस स्थान पर गए।सीता जी के वे दोनों पुत्र बाल चन्द्रमा के सामान सुन्दर तथा देवकुमारों के सामान तेजस्वी थे।

कैसे मनाई जाती है लव कुश जयंती

हालांकि ये जयंती कुछ तबके ही मनाते हैं , लेकिन इसकी रौनक अन्य पर्वों से कम नहीं होती है। उत्तर भारत में कुशवाहा समाज के लोग इस दिन लव कुश की झांकी निकालते हैं। झांकी के साथ चलते चलते जयकारे लगाए जाते हैं और पूरे शहर में मिठाई बांटी जाती है।

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