छठ पूजा सदियों से चली आ रही है। अगर माहाभारत की बात करें तो उसमें भी छठ पूजा का उल्लेख है। इसलिये ये भी कहा जाता है कि छठ पूजा महाभारत काल में शुरू हुई थी। छठ पूजा पूरी तरह भगवान सूर्य को समर्पित है। बिहारऔर उत्तर प्रदेश के लोगों के लिये ये सबसे बड़ा त्योहार होता है। इसे दिवाली से भी ज्यादा मनाया जाता है। हर वो शख्स जो ऑफिस में काम करता है उसे दिवाली पर चाहे छुट्टी मिले या ना मिले वो छठ पर जरूर छुट्टी लेता है। छठ के व्रत में पानी पीना भी वर्जित होता है। छठ पूजा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। आइये उनमें से कुछ को पढ़ें।
छठ पूजा और द्रोपदी कथा
पांडवों की पत्नी द्रोपदी के पास किसी भी बीमारी को ठीक करने की शक्तियां थीं। ये शक्तियां उसे सूर्य देव की उपासना से मिली थीं। जैसे सूर्य की किरणों में बहुत ताकत होती है वैसी ही ताकत उसमें भी आ गई थीं जब पांडव -कौरवों के पास जुए में सब कुछ हार गए थे तो द्रोपदी ने छठ का व्रत रखा था। इस व्रत का इतना प्रभाव पड़ा कि पांडवों ने कौरवों को युद्ध में हराकर अपना राजपाट वापस पा लिया।
रानी मालिनी कथा
एक बार एक राजा प्रियव्रत और उनकी रानी मालिनी थे। राजा ने दो शादियां कीं, लेकिन फिर भी कोई संतान नहीं हुई। आगे उसका राजपाट कौन संभालेगा बस इसी चिंता में वो दिन रात डूबा रहता था। राजा ने तान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फल से रानी गर्भवती हो गई। 9 महीने बाद रानी ने एक बच्चे को जन्म दिया लेकिन बच्चा मरा हुआ था। इस बात का पता चलने पर राजा बहुत दुखी हुए और आत्महत्या करने चल दिये। जैसे ही राजा ने खुद को मारने की कोशिश की तो वहां एक देवी प्रकट हुईं।देवी ने राजा से कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र प्राप्ति का वरदान देती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है। मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हारे पुत्र दान करूंगी। राजा ने कार्तिक मास की शुक्ल की ष्षटी को देवी मां की पूरे विधि विधान से पूजा की और उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।