इस दिन, मुसलमानों को सामान्य शुक्रवार की तरह दोपहर को अकेले प्रार्थना करने के बजाय मंडली में भाग लेना होता है। वे पूरे दिन पवित्र कुरान को पढ़ने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठे होते हैं। पुरुषों के लिए मंडली में भाग लेना अनिवार्य होता है, जबकि मुस्लिम महिलाओं के लिए यह अनिवार्य नहीं है। हैदराबाद की मक्का मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। वहां हर साल बड़े स्तर पर बैठक आयोजित की जाती है इस दिन मज़लिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन मक्का मस्जिद में एक ही स्थान पर 'कुरान दिवस' बैठक आयोजित करते हैं।

जमात उल-विदा प्रार्थना समारोह
इस दिन मुसलमान अपने संबंधित शहरों में मस्जिदों का दौरा करते हैं और एक शांतिपूर्ण और बेहतर दुनिया के लिए प्रार्थना करते हैं। वे साफ-सुथरे कपड़े पहनते हैं और सर पर टोपी लगाते है लेकिन ऐसा वो स्नान करने के बाद ही कर सकते हैं। इस दिन मुस्लिम कई विशेष प्रार्थनाएं करते हैं। वे अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं और अपने जीवन में भविष्य के मार्ग दर्शन के लिए प्रार्थनाएं करते हैं। प्रार्थी अपने प्रियजनों के लिए भी शांति की प्रार्थना करते हैं। मौलाना लोगों को पवित्र कुरान के शब्दों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जो उन्हें उनके जीवन में और मृत्यु के बाद भी मदद करेंगा। ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन कोई व्यक्ति किसी गरीब को खाना खिलाता है, तो उसे भविष्य में भगवान के द्वारा पुरस्कृत किया जाता है। इसके अलावा परिवारजन एक साथ मिलते हैं और विशेष भोजन पकाते हैं।पवित्र कुरान के अध्याय 62 के नौंवे पद्द में शुक्रवार को ऐसी मंडली की सभा का जिक्र है, जिसे मुस्लिम जमैत उल-विदा को वर्ष में पड़ने वाले सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक मानते हैं। इतना ही नहीं, यह ईद-उल-फ़ितर के रमज़ान के महीने में दूसरा सबसे पवित्र दिन है, जिस दिन महीने का उपवास तोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो कोई शुक्रवार को अल्लाह की पूजा करता है वह पूरे सप्ताह के लिए अपनी सुरक्षा प्राप्त करता है। 'दोमाज' लगातार दो शुक्रवार को किया जाता है।
रमज़ान का आखिरी शुक्रवार लोगों आत्ममंथन करने के लिए प्रेरित करता है। ताकि वह विचार कर सके कि वह विवेक के सही रास्ते पर चलें और उसका पालन करें। ऐसा माना जाता है कि जमात-उल-विदा पर प्रार्थना अल्लाह द्वारा स्वीकार की जाती है। इस दिन ज्यादा भीड़ को देखते हुए लोगों को बड़े पैमाने पर इकट्ठा करने के लिए, अतिरिक्त क्षेत्र बनाने के लिए मस्जिद में आम तौर पर मुख्य भवन के बाहर तंबू बनाए जाते हैं। मस्जिद का हर कोना पवित्र होता है। इसलिए लोगों को आपस में जोड़ने के लिए भी उन्हें एकत्रित किया जाता है। ताकि मस्जिद से अल्लाह का आशिर्वाद सभी को मिल सके साथ ही ईद का जश्न भी रमजान की विदाई कर मना सकें।
To read this Article in English Click here