कजरी तीज को कजली तीज या बड़ी तीज भी कहा जाता है। इसे उत्तर और पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इस तीज पर भगवान कृष्ण की पूजा होती है। तीज की धूम बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में ज्यादा देखने को मिलती है। कजरी तीज श्रावण महीने के दौरान मनाई जाती है।

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कजरी तीज का महत्व

यूं तो साल में और भी  तीजें आती हैं और हर तीज के पीछे कोई ना कोई कारण होता है। कजरी तीज मानसून के दौरान आती है और बारिश का ही स्वागत करती है।  इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जो विवाहिता औरतें इस दिन मां पार्वती की पूजा करती हैं वो अपने पति से कभी अलग नहीं होतीं। ये दिन मां पार्वती के शिव भगवान के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाता है। मां पार्वती ने शिव भगवान से व्याह रचाने के लिये 108 जन्म लिये थे। पार्वती की अटूट लग्न और सच्चे प्रेम को देखते हुए भगवान शिव ने उनको अपनी अर्धांगिनी बनाया था। इस दिन जो विवाहिता स्त्रियां पूजा करती हैं उन्हें व्रत भी रखना होता है।

कैसे मनाते हैं कजरी तीज

राजस्थान के बूंदी इलाके में इस दिन की रौनक देखने लायक होती है। पूरा शहर इस दिन के लिये सजाया जाता है। मां पार्वती की प्रतिमाओं के साथ शोभा यात्रा निकाली जाती है। महिलाएं नए नए कपड़े पहन कर मां के भक्ति गीत गाते हैं। पूरे बैंड बाजे के साथ शोभा यात्रा चलती है। शोभा यात्रा में ऊंट, हाथी और नृत्य करने वाले चलते हैं। लड़कियां कई तरह के नृत्यों का प्रदर्शन करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की सुरक्षा की कामना करती हैं। रात भर भक्ति गीत गाए जाते हैं और सुख की कामना की जाती है। कजरी तीज से जुड़ी पौराणिक कथाएं सबको सुनाई जाती हैं।
 

कजरी तीज के पकवान

विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। पुरुषों के लिये इस दिन कई तरह की सत्तु की मिठाइयां बनती हैं। साथ ही मालपुया और घेवर भी बनाया जाता है।

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