कार्तिक महीना पूरा ही त्योहारों और व्रतों का माना जाता है। इस महीेने के 15वें दिन होती है पूरे चांद की पूर्णिमा। चांदनी रात की मनमोहक छटा के बीच कार्तिक पूर्णिमा का व्रत और पूजा की जाती है। इसी दिन श्री गुरु नानक देव प्रकाशोत्सव और श्री शत्रुंजय तीर्थ यात्रा भी शुरू होती है। कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस को मारा था, जिसके बाद उनको त्रिपुरारी कह कर भी पूजा जाने लगा। त्रिपुरासुर ने तीनो लोकों में आतंक मचाया हुआ था, उसके मरने पर सभी देवताओं ने रोशनी जलाकर खुशियां मनाईं। उसी के मद्देनज़र इसे देव दिवाली भी कहा जाता है। वहीं पूर्णिमा के ही दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार भी लिया था। राधा-कृष्ण के भक्तों के लिये भी ये दिन काफी खास है। माना जाता है कि इस दिन राधा और कृष्ण ने रास किया था। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में शिवलिंग महाजल अभिषेक भी इसी दिन होता है।
कार्तिक पूजा कैसे करें
इस दिन स्नान को काफी उत्तम माना गया है। सुबह जल्दी उठ कर स्नान करना चाहिए। अगर ये सन्ना नदी या पवित्र नदी में हो तो ज्यादा अच्छा है। स्नान के बाद पूजा अर्चना, धूप और दीप करें। सच्चे मन से अराधना करें। इस दिन दान का बहुत महत्व है। माना जाता है कि इस दिन जो भी दान दिया जाता है उसका लाभ कई गुणा हो जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा कथा
एक बार एक राक्षस था उसका नाम था त्रिपुर। त्रिपुर ने काफी साल तक ब्रह्मा जी की तपस्या की। तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उससे वर मांगने को कहा। त्रिपुर सुर ने कहा कि मैं ना तो देवताओं के हाथों मारा जाऊं और ना ही मनुष्य के हाथों। ब्रह्मा जी ने कहा तथास्तु। वरदात मिलते ही त्रिपुर ने अत्याचार करना शुरू कर दिये। अंत में उसने कैलाश पर्वत पर ही चढ़ाई कर दी। कैलाश पर भगवान शिव के साथ उसका युद्ध हुआ और त्रिपुरासुर का वध किया गया।
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