लोहड़ी भारत के उत्तरी क्षेत्र पंजाब और हरियाणा में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है| हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व पौष या माघ के माह में आता है| पश्चिमी पंचांग के अनुसार यह माह जनवरी या फ़रवरी में मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले का दिन होता है| लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) इस पर्व को मनाया जाता है। यह हर वर्ष प्रायः 12 या 13 जनवरी को पड़ता है। यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है, यह द्योतार्थक (एक्रॉस्टिक) शब्द लोहड़ी की पूजा के समय व्यवहृत होने वाली वस्तुओं के द्योतक वर्णों का समुच्चय जान पड़ता है, जिसमें ल (लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) +ड़ी (रेवड़ी) = लोहड़ी के प्रतीक हैं। श्वतुर्यज्ञ का अनुष्ठान मकर संक्रांति पर होता था, संभवत: लोहड़ी उसी का अवशेष है। पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग भी सहायक सिद्ध होती है-यही व्यावहारिक आवश्यकता लोहड़ी को मौसमी पर्व का स्थान देती है|

लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से त्योहार (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में खिचड़वार और दक्षिण भारत के पोंगल पर भी-जो लोहड़ी के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है|
कैसे मनाया जाता है?
लोहड़ी से 20-25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। समूह के साथ उसी मूँगफली, रेवड़ी और भुने हुए मक्के का भोग लगाकर लोगों में वितरित किया जाता है| घर लौटते समय लोहड़ी में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है| साथ एक विशेष व्यंजन मक्के की रोटी और सरसों की साग इस दिन सभी लोग बड़े लुत्फ़ के साथ खाते है|
लोहड़ी से जुड़ी लोक कहानी

अकबर के जमाने में "दुल्ला भट्टी" नाम का एक डाकू हुआ करता था, जिसके नाम का आतंक ही लोगो को डराने के लिए काफ़ी था| दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था, पर अकबर के शासन के दौरान ग़रीब और कमज़ोर लड़कियों को अमीर लोग गुलामी करने के लिए बलपूर्वक बेच देते थे| यह सब संदलबार क्षेत्र और इसके आसपास के इलाकें में हो रहा था| उसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं, जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी डाकू ने दोनों लड़कियों सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ाकर उन की शादियां कराई| इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद करने के साथ लड़के वालों को राज़ी करके एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया।
कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी| जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका सो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया। भावार्थ यह है कि, डाकू होकर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई और वह काम कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नही थी|
लोहड़ी पर्व के दौरान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है जिसे सूर्य का उत्तरायण होना कहा जाता है, सूर्य के उत्तरायण होने की अवधि 14 जनवरी से 14 जुलाई की होती है| लोहड़ी पर्व नववधू और नवजात शिशु के बहुत शुभ माना जाता है|
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