मोहिनी एकादशी व्रत वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इसे मोहिनी एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। भगवान विष्णु ने सुमुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरीत करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था। क्योंकि जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में अमृत लेने के लिए आपाधापी मच गई थी ।
ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिये चालाकि से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया और सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया। जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन चूंकि यह सारा घटनाक्रम हुआ इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया। मोहिनी एकादशी व्रत पूरे भारत में किया जाता है।

मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व
मोहनी एकादशी व्रत का बड़ा महत्व है। इसे भगवान श्रीराम ने सीता माता के वियोग मे किया था तब उन्होंने रावण का संहार किया और सीता माता को रावण के बंधन से छुड़ाया था। वहीं इस व्रत को युधिष्ठर ने भी किया था। जिससे उनके सारे दुख-दर्द क्षय हो गए। मोहिनी एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति की चिंताएं और मोह माया खत्म हो जाती है। व्यक्ति सारे बंधनो से मुक्त हो जाता है। ईश्वर की कृपा बरसने लगती है। पाप का प्रभाव कम होता है और मन शुद्ध होता है। व्यक्ति हर तरह की दुर्घटनाओं एंव विपदाओं से सुरक्षित रहता है। इस व्रत को करने से 100 गाय दान करने का पुण्य प्राप्त होता है। व्यक्ति सीधा स्वर्गलोक में स्थान पाता है।मोहिनी एकादशी व्रत कथा
मोहिनी एकादशी का व्रत करने के पीछे एक कथा प्रचलित है जो ऋषि वशिष्ठ ने भगवान राम को और श्री कृष्ण ने युधिष्ठर को सुनाई थी। जब भगवान राम सीता के वियोग में व्याकुल हो गए थे तब उन्होंने उन्हें रावण के बंधन से छुड़ाने एंव रावण का अंत करने का उपाय ऋषि वशिष्ठ से पूछा। तब ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें कहा कि सरस्वती नदी के तट पर स्थित भद्रावती नाम की सुंदर नगरी है। वहां धृतिमान नामक राजा, जो चन्द्रवंशी थे वो राज करते थे।उसी नगर में एक वैश्य रहता था। जो धनधान्य से परिपूर्ण समृद्धिशाली था, उसका नाम था धनपाल वह सदा पुन्यकर्म में ही लगा रहता था। वह बहुत पवित्र और दयालु था दूसरों के लिए प्याऊ, कुआँ, , बगीचा और घर बनवाया करता था। भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था। उसके पाँच पुत्र थे। सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्ट्बुद्धि। धृष्ट्बुद्धि पांचवा था। वह बहुत ही दुष्ठ था। सदा दुराचार किया करता था। वह सदा बड़े-बड़े पापों में संलग्न रहता था। जुए आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ा मन लगता था। वह भोग-विलास मे रत रहता था। गलत मार्ग पर चलकर वह पिता का नाम और धन बर्बाद करता था।
एक दिन उसके पिता ने तंग आकर उसे घर से निकाल दिया और वह दर दर भटकने लगा। जल्दी ही वो एक चोर बन गया जिसे कई बार राजाओं के सिपाहियों ने पकड़ा औऱ कारवास में डाल दिया। किन्तु वह फिर भी नहीं सुधरा। इसी प्रकार भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल वह जगंल में चला गया वहीं जानवरों को मार कर खाने लगा और जीवन व्यापन करन लगा। एक दिन वह महर्षि कौँन्डिन्य के आश्रम जा पहुँचा। वैशाखा का महीना था और ऋषि पवित्र नदी गंगा में स्नान करने के बाद अपने आश्रम लौट रहे थे। सौभाग्य से ऋषि के कपड़े से पानी की एक बूंद ध्रुष्टबुद्ध पर गिर गई और इसमें एक बदलाव आया।
उसके बाद उन्होंने ऋषि कौंडिन्या के सामने झुकाया और उनसे उन सभी पापों से छुटकारा पाने के लिए कहा जिन्हें उन्होंने किया था शोक के भार से पीड़ित वह मुनिवर कौँन्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ कर बोला : 'ब्रह्मन मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।' कौँन्डिन्य बोले कि वैशाख के शुक्ल पक्ष में 'मोहिनी' नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। 'मोहिनी' एकादशी का उपवास करने से प्राणियों के अनेक जन्मों के महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।' मुनि का यह वचन सुनकर धृष्ट्बुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया।
उसने कौँन्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक 'मोहिनी एकादशी' का व्रत किया। इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरूढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार यह 'मोहिनी' का व्रत बहुत उत्तम है। इसे करने से बड़े से बड़े पाप से भी छुटकारा मिल जाता है औऱ व्यक्ति सीधा विष्णुलोक को गमन करता है।
मोहिनी एकादशी व्रत पूजा-विधि
मोहिनी एकादशी व्रत करने से चारों फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा विधि विधान से करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा के साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। मोहिनी एकादशी व्रत में पूरे दिन भोजन के बिना रहते हैं। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। एकादशी व्रत के लिये व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन करना होता है। दशमी तिथि को एक समय ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का पूर्णत: पालन करना चाहिये। एकादशी से दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये।इसके पश्चात लाल वस्त्र से सजाकर कलश स्थापना कर मंडप बनाकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिये। दिन में व्रती को मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का सुननी या पढ़नी चाहिये। रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करते हुए, भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये। द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण किया जाता है। सर्व प्रथम भगवान की पूजा कर किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि करवाकर दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये। इसके पश्चात ही दूध पीने कर उपवास खोलना चाहिए और फिर भोजन ग्रहण करना चाहिए।