कलयुग में हर कोई आदमी अपने बारे में ही सोचता है। पहले अपना घर भरता है और फिर रिश्तेदारों के, सबसे अंत में दूसरों का सोचा जाता है। कलयुग में शायद ऐसा कोई ही शख्स हो जिससे कोई पाप ना हुआ हो। रोज कुछ ना कुछ होकर पापों का घड़ा भरता जाता है और जब परलोक जाते हैं तो उन पापों का हिसाब देना पड़ता है। सतयुग में ऋषी-मुनि कई सालों की भक्ति के बाद भी पापों से छुटकारा नहीं पाते थे, लेकिन कलयुग में ये बहुत आसान है। कलयुग में हर महीने दो एकादशीयां आती हैं। आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी  सबसे अहम होती है। इस एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा गया है, जिसका मतलब है पाप पर अंकुश लगाने वाली एकादशी। माना जाता है इस दिन व्रत और भगवान पद्मनाभ की सच्चे मन से  पूजा करने से सब पापों का बंधन खत्म होकर भगवान की प्राप्ति  होती है।

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व्रत विधि

-व्रत पिछली रात से शुरू कर दें(ब्रह्मचर्य का पाल करें)
-सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें
-पूजा स्थान को साफ करें, भगवान विष्णु की वैकुण्ठ प्रतिमा विराजमान करें
- धूप और दीप से पूजा अर्चना करें
-पूरा दिन व्रत करें
-रात को विष्णु की मूर्ति के पास ही सोएं
- अगली सुबह ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं
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पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

बहुत साल पहले एक क्रोधन नाम का खतरनाक बहेलिया होता था। उसने अपनी जिंदगी में कई पाप किये, झगड़ा, लूट, झूठ सब किया। एक दिन यमराज ने दूतों को भेज कर क्रोधन   के प्राण लाने के लिये कहा। दूत आए और क्रोधन को कहा कि तेरे पास आज की रात है और कल हम तुझे ले जाएंगे। डर के मारे कांपता हुआ क्रोधन महर्षि अंगिरा के पास जा पहुंचा। क्रोधन ने बहुत विनती कि तो महर्षि ने कहा कि कल आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का व्रत करो। क्रोधन ने वैसा ही किया। पापांकुशा व्रत करने से उसके पाप मिट गए और वो विष्णु लोक को पा गया।


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