शब--ए-मेराज का अर्थ है पैगंबर मोहम्मद साहब की अल्लाहताला के साथ स्वर्गलोक में मुलाकात की रात। हिजरी संवत के आरंभ से 2 साल पहले रजब मास की 27वीं तारीख को पैगंबर मोहम्मद साहब अपनी आत्मा समेत स्वर्ग में आरोहण कर गए। वहां उन्हें रास्ते में आदम, मूसा, इब्राहम, ईसा मसीह और अनेक दिव्य अवतारी के दर्शन हुए। इस दिव्य स्वर्गारोहण का मुस्लिम धर्म में यही निहितार्थ था कि बिना शरीर स्वर्ग की सैर का अवसर सिर्फ पैगंबर मोहम्मद साहिब जैसे सिद्ध अवतारों को ही मिलता है। शब-ए-मेराज के दिन मक्का मदीना सहित दुनिया की तमाम मस्जिदों और इबादतगाहों में रात में दिए और अगरबत्ती के साथ खूबसूरत रोशनी की जाती है। सामूहिक नमाज पढ़ी जाती है। दानपुण्य, खैरात, जकात के साथ-साथ भंडारे किए जाते हैं।

महत्व

'मेराज' की इस रात को सुन्नी मुस्लिम एक जश्न की रात के रूप में मनाते हैं। इसकी फजीलत को जितना बयां किया जाए कम है। रात में नफ्ल नमाज व दिन में रोजा रखना 26 और 27 रजब को बहुत मुबारक माना जाता है। रात में दो या चार रकअत की नियत कर खासतौर से 12 रकत नमाज जरूर पढ़े। वैसे यह पूरी रात इबादत की रात होती है। 26 व 27 रजब का रोजा रखना अफजल है। इस रात घर-घर लोग फातेहा दिलाते हैं।

समारोह

• इस दिन, कुछ मुस्लिम देशों में घरों, सड़कों और विशेष रूप से मस्जिदों को सजाया जाता है। रात के समय सुंदर रगींन बल्बों से सड़कों और घरों को रौशन किया जाता है। मोमबत्तिया और लैंप, लाइंटे लगाई जाती है।
• शाम को नमाज अदा करने वाले लोग मस्जिदों में इकट्ठे होते हैं और अल्लाह की महिमा को याद कर उनकी स्तुति, प्रार्थनाएं करते हैं। साथ ही भक्त पैंगबर का अनुसर कर भजन भी गाते हैं।
• बड़े मस्जिदों में ईशा प्रार्थना के बाद आम तौर पर सार्वजनिक बैठकें आयोजित की जाती हैं जहां वक्ता पैगंबर की आध्यात्मिक स्थिति और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
• बैठकों के बाद मिठाई आम तौर पर वितरित की जाती है।

• नमाज अदा करने के मुसलमान गरीबों और जरुरतमंदो को पैसे अदा करते हैं। भगवान की याद में रात भर प्रार्थनाएं की जाती है।


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