केरल भारत का जितना खूबसूरत राज्य है उतनी ही खूबसूरत यहां की पंरपराएं है। केरल एक तटवर्ती क्षेत्र होने के कारण और भी ज्यादा सुंदर हो जाता है। यहां की हरी-हरी वादियां और उसके बीच पानी में नौका दौड़ हो जाए तो क्या कहना। केरल अपनी सुंदरता के साथ-साथ अपनी नौका दौड़ के लिए भी काफी प्रचलित है। केरल में नौका दौड़ देखने के लिए दूर-दूर से देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। केरल में कई तरह की नौका दौड़ होती है। जिन्हें बोट फेस्टिवल यानि नौका त्यौहार भी कहा जाता है। केरल और यहां के निवासियों का नौकाओं से अद्वितीय संबंध हैं। सबसे खास बात तो यह है कि‍ यहां के निवासियों को नौकाओं से संबंधित किसी भी उत्सव में हिस्सा लेना बहुत अच्छा लगता है। इसलि‍ए यहां पर नाव से जुड़े त्यौहार भी धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय, नेहरू ट्रॉफी नौका दौड़, ,पल्पदाद झील पर पूननामदा झील, पीलपाद जलोत्सवम हैं। इन्ही नौका दौड़ो में से प्रमुख है चंपकुलम नौका दौड़। चंपकुलम नाव दौड़, दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे पुरानी नौका दौड़ है जिसे सांप नाव दौड़ भी कहा जाता है।  इस दौड़ की तारीख मलयालम कैलेंडर के अनुसार तय की जाती है । केरल के अलंपुझा जिले के चंपकुलम का गांव  में इस दौड़ का आयोजन किया जाता है। 

चंपकुलम नौका दौड़

 

चंपकुलम नाव दौड़ का इतिहास

चंपकुलम नाव दौड़ दुनिया में करीब 500 साल से अधिक पुरानी है। मलयालम में चंपकुलम मुलम वल्लम को बुलाया जाता है, यह मिथुनुम के महीने में मनाया जाता है जो आमतौर पर हर साल जून या जुलाई में होता है। यहां के ग्रामीण दौड़ से पहले एक जुलूस निकालते हैं। दौड़ में एक नाव पर 30 से 40 आदमी बैठकर एक साथ नाव में पतवार चलाते हैं। ग्रामीण लोग उत्सव की भावना लिए चारों ओर इकट्ठे होते हैं। जानकारों का कहना है कि कुरिची करीमकुलम श्री पार्थसारथी मंदिर से चंपकुलम मधोम महालक्ष्मी मंदिर में था। इस परंपरा का मुख्य कारण यह था कि राजा देवनारायण ने एक मंदिर बनाया था लेकिन बाद में उन्हें पता लगा कि वह जिस मूर्ति को मंदिर में रखना चाहते है वो शुभ नहीं है। जिससे वह बहुत परेशान हो। इसके बाद उनके मंत्रियों ने करिश्मल मंदिर से श्री कृष्ण की मूर्ति लाने का सोचा। रास्ते में उन्होंने एक रात चंपकुलम में बिताई वहां ग्रामीणों ने एक विशाल जुलूस आयोजित किया और उनके लिए सांप नौकाओं या चुंडानों का आयोजन किया। यही नहीं एक ईसाई परिवार ने भी उन्हें मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने में भी मदद की। मूर्ति के पहुंचने के बाद उसे अंबलप्पुझा क मंदिर में स्थापित किया गया। तब से, इन सभी परंपराओं का पालन किया जाता आ रहा है। इसी पंरपरा को आगे बढ़ाते हुए हर साल नाव की दौड़ आयोजित की जाती है। ईसाई परिवार को उपहार भी प्रस्तुत किए जाते हैं क्योंकि पूर्वजों ने मूर्ति स्थापित करने में मदद की थी।

कैसी होती है चंपकुलम नौका दौड़

चंपकुलम नौका दौड़ में चुंडन जैसे प्रावधानों के साथ 100 फीट की लंबाई में नौकाओं की एक श्रेणी होती है। जिन्हें वेप्पू, चुरुलन, कुथी आदि कहते हैं। यह नौका दौड़ एक की साथ, एक ही गति में आगे बढ़ती जाती है। इस दौड़ से पहले लोग कई बार नौका दौड़ का अभ्यास करते हैं। इस उत्सव में नावों को सजाया जाता है। घर में मांस-मच्छी तक बंद कर दी जाती है। प्रतियोगिता पूरी होने तक कोई अन्य काम नहीं किया जाता। एक साथ कई लोग एक नाव पर बैठकर नाव को पतवार के सहारे से आगे बढ़ाते है। उनकी हौसला अफजाई के लिए ग्रामिणों के साथ-साथ कई पर्यटक भी शामिल होते है और इस दौड़ का आनंद उठाते हैं। इस उत्सव में पानी के उपर सजाए गई नौकाएं और लोगों के लोक गीत बहुत प्रसिद्ध है। जो किसी की भी मन मोह लेने का दम रखते हैं।

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