
चंपकुलम नाव दौड़ का इतिहास
चंपकुलम नाव दौड़ दुनिया में करीब 500 साल से अधिक पुरानी है। मलयालम में चंपकुलम मुलम वल्लम को बुलाया जाता है, यह मिथुनुम के महीने में मनाया जाता है जो आमतौर पर हर साल जून या जुलाई में होता है। यहां के ग्रामीण दौड़ से पहले एक जुलूस निकालते हैं। दौड़ में एक नाव पर 30 से 40 आदमी बैठकर एक साथ नाव में पतवार चलाते हैं। ग्रामीण लोग उत्सव की भावना लिए चारों ओर इकट्ठे होते हैं। जानकारों का कहना है कि कुरिची करीमकुलम श्री पार्थसारथी मंदिर से चंपकुलम मधोम महालक्ष्मी मंदिर में था। इस परंपरा का मुख्य कारण यह था कि राजा देवनारायण ने एक मंदिर बनाया था लेकिन बाद में उन्हें पता लगा कि वह जिस मूर्ति को मंदिर में रखना चाहते है वो शुभ नहीं है। जिससे वह बहुत परेशान हो। इसके बाद उनके मंत्रियों ने करिश्मल मंदिर से श्री कृष्ण की मूर्ति लाने का सोचा। रास्ते में उन्होंने एक रात चंपकुलम में बिताई वहां ग्रामीणों ने एक विशाल जुलूस आयोजित किया और उनके लिए सांप नौकाओं या चुंडानों का आयोजन किया। यही नहीं एक ईसाई परिवार ने भी उन्हें मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने में भी मदद की। मूर्ति के पहुंचने के बाद उसे अंबलप्पुझा क मंदिर में स्थापित किया गया। तब से, इन सभी परंपराओं का पालन किया जाता आ रहा है। इसी पंरपरा को आगे बढ़ाते हुए हर साल नाव की दौड़ आयोजित की जाती है। ईसाई परिवार को उपहार भी प्रस्तुत किए जाते हैं क्योंकि पूर्वजों ने मूर्ति स्थापित करने में मदद की थी।कैसी होती है चंपकुलम नौका दौड़
चंपकुलम नौका दौड़ में चुंडन जैसे प्रावधानों के साथ 100 फीट की लंबाई में नौकाओं की एक श्रेणी होती है। जिन्हें वेप्पू, चुरुलन, कुथी आदि कहते हैं। यह नौका दौड़ एक की साथ, एक ही गति में आगे बढ़ती जाती है। इस दौड़ से पहले लोग कई बार नौका दौड़ का अभ्यास करते हैं। इस उत्सव में नावों को सजाया जाता है। घर में मांस-मच्छी तक बंद कर दी जाती है। प्रतियोगिता पूरी होने तक कोई अन्य काम नहीं किया जाता। एक साथ कई लोग एक नाव पर बैठकर नाव को पतवार के सहारे से आगे बढ़ाते है। उनकी हौसला अफजाई के लिए ग्रामिणों के साथ-साथ कई पर्यटक भी शामिल होते है और इस दौड़ का आनंद उठाते हैं। इस उत्सव में पानी के उपर सजाए गई नौकाएं और लोगों के लोक गीत बहुत प्रसिद्ध है। जो किसी की भी मन मोह लेने का दम रखते हैं।To read this article in English Click here