भारतीय त्योहारों में एक खास बात है कि ये और त्योहारों की तरह बस हर्ष मनाने और उल्लास मनाने के लिये नहीं हैं। ये त्योहार एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्यार भी जताते हैं। पति और पत्नी के बीच का जो पवित्र रिश्ता है इसको सदैव बरकरार रखने के लिये “करवा चौथ” मनाया जाता है। करवा चौथ एक व्रत होता है जो कि यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है। इस दिन महिलाएं पूरा दिन कुछ नहीं खाती-पीतीं और अपने पति की लंबी उम्र के लिये व्रत रखती हैं। शाम को जब तक चांद नहीं निकला वो निर्जल रहती हैं।

करवा चौथ

व्रत विधि

इस व्रत में सुहागिन महिलाएं सुबहर चार बजे उठती हैं और नहा धोकर नए वस्त्र डाल कर सारे श्रृंगार कर के सूर्य उगने से पहले पहले सरगी खाती हैं। इसी वक्त पानी पिया जाता है, क्योंकि फिर पूरा दिन पानी नहीं पी सकते हैं। सरगी खाने के बाद थोड़ी देर सोना जरूरी होता है। पूरा दिन भगवान का स्मरण किया जाता है। पंडित बुलाकर कथा सुनी जाती है। सायंकाल में जब चंद्रमा निकल जाए तो निकलते हुए चंद्रमा की पूजा करें , अर्ध्य दें और फिर छन्नी में चंद्रमा को देखने के बाद पति को देखें। पति की आरती उतार कर पैर छुएं। फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खत्म करें। पानी पीने के बाद खाना का सकते हैं। खाने में शाकाहरी ही खाएं और काले मांह की दाल जरूर खाएं। हालांकि अलग अलग जगह पर अलग अलग परंपराओं के हिसाब से कुछ नियम और सामग्रियां और जुड़ जाती हैं। जो कि परिवार के बड़े अपने आगे की पीढ़ियों को बताते रहते हैं।

करवा चौथ कथा

कई साल पहले  एक धनी साहूकार था उसके सात बेटे और एक बेटी थी। सभी बेटी को बहुत प्यार करते थे। वक्त के साथ बच्ची की शादी हो गई। एक बार वो अपने मायके आई हुई थी। शाम को जब भाई आए तो देखा बहन व्याकुल बैठी है। उससे खाना खाने का आग्रह किया तो उसने कहा कि आज करवा चौथ का व्रत है और वो सिर्फ चंद्रमा देखने के बाद ही कुछ खाएगी। क्योंकि चंद्रमा निकलने में अभी वक्त ता और वो भूख-प्यास से व्याकुल हो रही थी। छोटे भाई से बहन कि ये हालत देखी नहीं गई और फिर उसने दूर पीपल के पेड़ के पीछे दीपक जलाकर ओट में रख दिया। दूर से देखने पर ये लग रहा था कि चांद निकल आया। छोटा भाई बहन के पास गया और कहा कि चांद निकल आया है। बहन दौड़ी दौड़ी छत पर आई और दीपक को चांद समझकर अर्घ्य दिया और खाना खा लिया।

जैसे ही पहला निवाला मुंह में डाला उसे छींक आ गई। दूसरा निवाला डाला तो उसमें बाल आ गया, तीसरा निवाला जैसे ही वो खाने लगती उसे उसके  पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। वो प्रत्येक भाभी से यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस तरह से भाभियाँ आती है तो वो बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसकेपति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।

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Comments  

#1 Rajkumar 2019-10-16 11:45
Nice content
Quote

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