केरल में मौजूद इन सभी उपहारों के अलावा सांस्कृतिक धरोहर के रूप में कई तरह के त्योहार भी है| इन त्योहारों में एक त्योहार है "पारियनामपेटता पूरम कुत्टकूलम " जिसे केरल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| पारियनामपेटता पूरम कुत्टकूलम त्योहार को एक और नाम से भी जाना जाता है "चिनाक्काथूर पुरम महोत्सव" जिसे हर साल पूरे केरल में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है| पारियनामपेटता पूरम कुत्टकूलम उत्सव हर वर्ष फ़रवरी और मार्च के मध्य में मनाया जाता है और पूरे केरल राज्य के पलक्कड़ जिले में इस त्योहार को खासतौर पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| पलक्कड़ जिले में स्थित पारियनामपेटता मंदिर जहाँ माता भगवती की पूजा की जाती है, जिन्हें 14 पीठों में देवी माना गया है मुख्य उत्सव यही से मनाया जाता है|
मंदिर में होने वाले कार्यक्रम
उत्सव के दौरान श्रद्धालूं सबसे पहले मंदिर परिसर में देवी माँ की चित्रकारी करते है| चित्रकारी करने के समय अन्य श्रद्धालूं भजन आदि गाकर भगवती माँ की आराधना करते है| शाम के वक़्त भव्य जुलूस में 33 दीर्घदंती निकलते है और पंचावाद्यम या मंदिर ऑर्केस्ट्रा और विभिन्न वेल्लाट्टू, पूथानुम थिरयुम, ठेय्यम, आंदी वेदन, कालावेला, कुथिरावेला करिवेला की तरह अन्य कला रूपों के पारंपरिक प्रदर्शन भी प्रदर्शन करते हैं|"थोल्पवाकूत्हू" एक कठपुतली के शो का मंचन भी मंदिर परिसर हर शाम पिछले 7 दिनों के लिये आयोजित किया जाता है| इस उत्सव में केरल का प्रसिद्ध डांस फॉर्म "कथकली" का मंचन भी इस नृत्य में पारंगत कलाकार हर वर्ष करते है| यह पूरा त्योहार पूरे सात दिनों तक चलता है|
पारियनामपेटता पूरम समारोह के मुख्य विशेषताएं
त्योहार का मुख्य आकर्षण 33 दीर्घदंती की एक भव्य जुलूस पर होता है| दरअसल केरल और तमिलनाडु में हाथी जिन्हें वहाँ दीर्घदंती भी कहा जाता है का बहुत महत्व हैं| हाथी दक्षिणभारतीय राज्य की दिनचर्या का अहम हिस्सा है, इसलिए हाथी का इस उत्सव में महत्वपूर्ण स्थान है| मलयाली पंचांग के अनुसार पूरम दिवस कुम्बम महिनें के सातवें दिन मनाया जाता है| सजे हुए हाथियों द्वारा केरल के पारंपरिक धून में नृत्य के बाद जुलूस निकाला जाता है| यहाँ हजार श्रद्धालुओं के इस जुलूस में भाग लेने जाते है|To read this article in English click here