मणिपुर विभिन्न संस्कृतियों और खूबसूरत रीति-रिवाजों वाला भारत का एक पूर्वोत्तर राज्य है। मणिपुर की तरह ही यहां के लोग और यहां की परंपराएं सुंदरता का एक नया पैमाना तय करती हैं। यहां प्यार, सौहार्द के साथ कई लोकप्रिय त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें से प्रमुख है निंगोल चाकोबा त्योहार। यह त्योहार मेतई और वैष्णवई समुदाय में काफी प्रसिद्ध है। यह त्योहार हियांगई के चंद्र महीने के दूसरे दिन मनाया जाता है। जार्जियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार अक्टूबर-नवंबर के बीच पड़ता है। निंगोल चाकोबा का त्योहार दक्षिण भारत के त्योहार भोजनम के जैसा है। निंगोल चाकोबा का अर्थ होता है ‘निंगोल’ यानि बेटी, लड़की और ‘चकोबा’ यानि दावत अर्थात इस दिन यह समूदाय घर की बेटी को चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित जिन्हें मणिपुरी भाषा में मैतिलोल कहा जाता है उन्हें भोजन पर आमंत्रित करतें हैं। इस दिन विवाहिक महिलाएं अपने मायके आती हैं। मायके वाले बेटी के लिए अच्छा-अच्छा भोजन बनाते हैं और उन्हें खिलाते हैं।
निंगोल चाकोबा त्योहार मनाने का इतिहास
मणिपुर में मनाया जाने वाला निंगोल चाकोबा त्योहार मूल रुप से बेटियों को समर्पित है। जहां एक ओर समाज बेटियों को अपनाना नहीं चाहता, उन्हें बोझ समझता है वहीं मणिपुर ऐसा राज्य है जहां बेटियों को खास सम्मान दिया जाता है। निंगोल चाकोबा त्योहार की उत्पत्ति और सटीक तारीख किसी को ज्ञात नहीं है। हालांकि कहानियों के अनुसार यह त्योहार चौथी शताब्दी में शुरू किया गाय था। उस समय रानी लाइसाना ने अपने घर अपने भाई को खाने पर आमंत्रित किया था। तब से भाई को आमंत्रित करने की यह प्रवृत्ति शुरू हुई। प्रारंभ में इस त्योहार को पिबा चकौबा कहा जाता था, पिबा का मतलब होता है पुत्र अर्थात पहले इसमें पुत्रों और भाईयों को बहने अपने घर आमंत्रित किया करती थीं लेकिन, उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान शासन करने वाले महाराज चंद्रकृति ने अपनी प्रत्येक बहनों को अलग-अलग परेशानियों से जूझते देखा तो उन्हें एक विकल्प सुझा। उन्होंने अपनी सभी बहनों को अपने महल में आमंत्रित किया और इस प्रकार से पिबा चक्कोबा का त्योहार निंगोल चाकोबा बन गया। तब से प्रतिवर्ष बहनों और बेटियों को घर में खाने पर आमंत्रित किया जाता है।
कैसे मनाया जाता है निंगोल चाकोबा का त्योहार
मणिपुरी समुदाय हियांगगी के दूसरे दिन से पहले निंगोल यानि बेटियों और बहनों को निमंत्रण भेजा देता है। यह निमंत्रण एक सादे पुराने कार्ड पर नहीं होता बल्कि इसे पान के पत्तों पर लिखा जाता है और निंगोलो को भेज दिया जाता है। आखिरकार जब यह शुभ दिन आता है तो मीतेई समुदाय की निंगोल यानि लड़किया अच्छे-अच्चे कपड़े पहन संजती-संवरती है। इसके बाद मिठाई, फल और अन्य व्यंजनों को लेकर वह अपने परिवार से मिलने जाती हैं। जिसके बाद निंगोलों के घर वाले उनका भव्य स्वागत करते हैं और घर में बनाए गए विभिन्न लजीज़ पकवानों को निगोंलो के समक्ष परोस दावत का आनंद उठाते हैं। आम तौर पर इस त्योहार में मांसाहारी व्यंजन जिसमें मंछली प्रमुख होती है उसे शामिल किया जाता है। साथ ही अन्य पारंपरिक वस्तुओं जैसे इरोम्बा, चेंफट और कंगहौ को भी सम्मलित किया जाता है। खाना खाने के बाद निंगोल और उनके बच्चों को परिवारजन उपहार भेंट करते हैं। लड़कियां भी मां-बाप को उपहार देती हैं और उनका आशीर्वाद ग्रहण करती हैं।
निंगोल चाकोबा का वर्तमान रुप
इन दिनों निंगोल चाकोबा खरीदारी इतनी बड़ी हो गई है कि बाजार पूरी तरह से भर जाते हैं। यातायात जाम हो जाता है। बहुत सारे लोग इस दिन खरीदारी करने निकलते हैं। पिछले कुछ समय से इस दिन मछली मेले आयोजित किए जाते हैं। कई प्रतियोंगिताएं भी इस दिन आयोजित की जाती हैं। यहां 'हौसी' के रुप में तंबोला प्रतियोगिता काफी प्रचलित है। प्रतियोगिताओं के विजेताओं को सुन्दर पुरस्कार दिए जीते हैं। मणिपुर में महिलाओं को समर्पित कई नाटक, खेल, इत्यादि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोकप्रिय फिल्मों की विशेष स्क्रीनिंग भी इस दिन सिनेमाघरों में दिखायी जाती है।
निंगोल चाकोबा का महत्व
निंगोल चाकोबा का त्योहार बहनों को सम्मानित करने के साथ-साथ भाई-बहनों के बीच बने बंधन को भी मजूबत करता है। यह परिवार को एक होने का अवसर प्रदान करता है। परिवारजनों को एक साथ लाकर खड़ा करता है। मणिपुर के साथ-साथ यह त्योहार अब यह भारत के अन्य हिस्सों में भी मनाया जान लगा है। भाई अपनी बहनों को दावत के लिए आमंत्रित करते हैं। इस दावत का का आनंद लेने के लिए निंगोलों को शादी की आवश्यकता नहीं है कुवांरी लड़कियां भी इसमें शामिल होती हैं। मणिपुर बैपटिस्ट कन्वेंशन (एमबीसी), तांगखुल चर्च चैरिटेबल ट्रस्ट दिल्ली भी अब बहनों के लिए इस त्योहार का आयोजन करता है। यह त्योहार लड़कियों को सम्मान देने और परिवारजान के बीच प्यार फैलाने का प्रतिक है।