भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है यहां जितने राज्य है उतने ही त्यौहार है। यहां के प्रत्येक राज्य में अलग-अलग त्यौहार और मेले लगते है। जिनके पीछे कोई ना कोई कहानी होती है। भारत का मस्तमौला राज्य पंजाब जितना अपने त्यौहारों को उत्साह एवं उमंग के साथ मनाने के लिए प्रसिद्ध है उतने ही यहां के मेले भी प्रसिद्ध है। पंजाब को गुरु की नगरी कहा जाता है। यहां कई सिख गुरुओं ने जन्म लेकर मनुष्यों को ज्ञान का पाठ पढ़ाया है। पंजाब का शहर जालंधर र का सबसे प्रसिद्ध बाबा सोढल मेला बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां सभी भक्त बड़ी श्रद्धा से बाबा सोढल के दर्शन करने आते है। जालंधर के लोग मानते हैं कि पहले से ही सोढल नामक एक शिशु के पास कुछ जादुई और दिव्य शक्तियां थीं, जिन्होंने इस दिन अपनी मां द्वारा आदेशित तालाब में खुद को डूब दिया था। उस तालाब को आज "सोढल के सरोवर" के नाम से जाना जाता है, और जलंधर एवं इसके आस-पास के लोग इस पवित्र जल में डूबकी लगा कर स्नान करते हैं। साथ ही बाबा सोढल की समाधि को श्रद्धांजलि अर्पित कर बाबा की पुण्यतिथि पर इस मेले का आयोजन किया जाता है। जिसे "बाबा सोढल मेला" कहा जाता है। श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मेला अनन्त चौदस के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। सिद्ध बाबा सोढल जी का मेला एक रात पहले ही शुरू हो जाता है। लोग दूर-दूर से रात को ही मंदिर श्री सिद्ध बाबा सोढल में माथा टेकने और बाबा जी के दर्शन करने के लिए पहुंचने शुरू हो जाते हैं। लाखों की संख्या में लोग देश तथा विदेशों से पहुंच कर मंदिर श्री सिद्ध बाबा सोढल में जाकर श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं और खुशी मनाते हैं। सालो से सिद्ध बाबा सोढल का ये मेला बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। भक्त इस मेले में पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से बाबा के चरणों में समर्पित होने आते हैं।
सोढल मेला

बाबा सोढल मेला उत्सव

सिद्ध बाबा सोढल जी का मंदिर और तालाब लगभग 200 वर्ष पुराना है। इससे पहले यहां चारों ओर घना जंगल होता था। दीवार में उनका श्री रूप स्थापित है। जिससे मंदिर का स्वरूप दिया गया है। अनेक श्रद्धालुजन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिर में आते हैं। यह मंदिर सिद्ध स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यहां एक तालाब है जिसके चारों ओर पक्की सीढिय़ां बनी हुई हैं तथा मध्य में एक गोल चबूतरे के बीच शेष नाग का स्वरूप है। भाद्रपद की अनन्त चतुर्दशी को यहां विशेष मेला लगता है। चड्ढा बिरादरी के जठेरे बाबा सोढल में हर धर्म व समुदाय के लोग नतमस्तक होते हैं। अपनी मन्नत की पूर्ति होने पर लोग बैंड-बाजों के साथ बाबा जी के दरबार में आते हैं। बाबा जी को भेंट व 14 रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं जिसमें से 7 रोट प्रसाद के रूप में वापिस मिल जाते हैं। उस प्रसाद को घर की बेटी तो खा सकती है परन्तु उसके पति व बच्चों को देना वर्जित है। वर्तमान में यह मंदिर सोढल रोड पर विद्यमान है। महिलाओं के लिए यह दिन बहुत खास होता है। वे अपने बच्चों और परिवारों के लिए पवित्र जल से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आती हैं। यहां निंसतान महिलाएं संतान की प्राप्ति की मनोकामना लेकर बी आती हैं। समाधि के लिए बनाए गए प्रसाद भक्तों को ‘वितरित किए जाते हैं। सिख यह अवसर बहुत पवित्र मानते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि बच्चा एक शिशु भगवान है। सोदल एक समाधि है जिसे भक्त फूल और मालाओं से सजाते हैं। इस स्थान पर विशेष अनुष्ठान भी किए जाते हैं।

 श्री सिद्ध बाबा सोढल जी की कथा

बाबा सोढल जी के मेले को लेकर एक प्राचीन कथा विदयमान है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का जहां मंदिर स्थापित है उस स्थान पर एक संत जी की कुटिया और तालाब था। यह तालाब अब सूख चूका है, परन्तु उस समय पानी से भरा रहता था। संत जी भोले भंडारी के परम भक्त थे। जनमानस उनके पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आया करते थे। चड्ढा परिवार की बहू जो उनकी भक्त थी, बुझी सी रहती। एक दिन संत जी ने पूछा कि बेटी तू इतनी उदास क्यों रहती है? मुझे बता मैं भोले भंडारी से प्रार्थना करूंगा वो तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे। संत जी की बात सुनकर उन्होंने कहा कि मेरी कोई सन्तान नहीं है और सन्तानहीन स्त्री का जीवन नर्क भोगने के समान होता है। संत जी ने कुछ सोचा फिर बोले, बेटी तेरे भाग्य में तो सन्तान सुख है ही नहीं, मगर तुम शिव पर विश्वास रखो वो तुम्हारी गोद अवश्य भरेंगे। संत जी ने भोले भंडारी से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को ऐसा पुत्र रत्न दो, जो संसार में आकर भक्ति व धर्म पर चलने का संदेश दे। भगवान शिव ने नाग देवता को चड्ढा परिवार की बहू की कोख से जन्म लेने का आदेश दिया। नौ महीने के उपरांत चड्ढा बिरादरी में बाबा सोढल जी का जन्म हुआ। जब यह बालक चार साल का था तब एक दिन वह अपनी माता के साथ कपड़े धोने के लिए तालाब पर आया। वहां वह भूख से विचलित हो रहा था तथा मां से घर चल कर खाना बनाने को कहने लगा। मगर मां काम छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी। मां ने काम में व्यस्त होकर ऐसे ही बच्चे को तालाब में कुदने को कह दिया तब बालक ने मां का आदेश मानकर कुछ देर इंतजार करके तालाब में छलांग लगा दी तथा आंखों से ओझल हो गया। मां फफक-फफक कर रोने लगी, मां का रोना सुनकर बाबा सोढल नाग रूप में तालाब से बाहर आए तथा धर्म एवं भक्ति का संदेश दिया और कहा कि जो भी मुझे पूजेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। ऐसा कहकर नाग देवता के रूप में बाबा सोढल फिर तालाब में समा गए। बाबा के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा और विश्वास बन गया कालांतर में एक कच्ची दीवार में उनकी मूर्ति स्थापित की गई जिसको बाद में मंदिर का स्वरूप दे दिया गया।

 
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