निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
हाथी के समान लंबी सूंड, बड़े-बड़े कानों वाले, मोदक के पीछे सदा ललायित रहने और चूहे की सवारी करने वाले भगवान श्री गणेश की मूरत हमारे सामने कुछ ऐसी ही बनती है। भगवान श्री गणेश सदा शुभ कार्यों को करते हैं। प्रत्येक शुभ कार्य शुरु करने से पहले भगवान गणेश को याद किया जाता है उन्हें नमन किया जाता है। हिंदू मान्यतानुसार भगवान गणेश दिखने में हाथी की तरह अवश्य प्रतीत होते हैं किन्तु सभी देवताओं में उन्हें सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त हुआ है। अपने ज्ञान और विद्या के कारण भगवान गणेश की पूजा सभी देवों से पहले की जाती है। घर में कोई भी शुभ काम हो, शादी, विवाह, तीज, त्योहार,एवं व्रत उपासना जैसे मंगल कार्यों में सर्वप्रथम भगवान गणेश को आमंत्रित किया जाता है। बिना गणेश जी को निमंत्रत किए शादी या अन्य किसी कार्य को शुभ नहीं माना जाता है। भगवान गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र हैं। पिता के क्रोध के कारण ही इनका मुख गज का है। इसलिए इन्हें गजानन भी कहते हैं। भगवान परशुराम के साथ हुए युद्ध और उनके परसे से मारे जाने के कारण इनका एक दांत टूट गया था जिससे इन्हें एकदंत भी कहा जाता है। भगवान गणेश अपने भक्तों के सभी दुखों को हर लेते हैं इसलिए इन्हें विध्नहर्ता भी कहा जाता है। भगवान गणेश ही एकलौते ऐसे भगवान है जिन्हें शैव और वैष्णव दोनों के ही अनुयायियों द्वारा पूजा जाता है। जैन तथा बौद्ध धर्मों में भी भगवान गणेश को स्वीकार कर उन पर विश्वास किया जाता है। सभी देवी-देवताओं में भगवान गणेश प्रथम पूजनीय माने जाते हैं, इसलिए घर हो या दुकान सभी जगह गणेश जी की मूर्ति या फोटो रखी जाती है.भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था।

भगवान गणेश का महत्व
भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं। भगवान गणेश को सुख-समृद्धि और धन का देवता भी माना जाता है इनकी पूजा से चारों फलों की प्राप्ति होती है।हिंदू धर्म में सभी शुभ काम श्री गणेश की प्रार्थना से शुरू होते हैं। भक्तों का मानना है कि गणेश संरक्षक देवता अपना आशीर्वाद प्रदान कर सभी शुभ कार्यों को करने में मदद करेगें। फिर वो चाहे काम जमीन, का हो, नए घर, व्यवासाय एवं शादी का हो। सभी कामों के लिए भगवान गणेश का आशीर्वाद अवश्य चाहिए होता है। हिन्दू मान्यता में भगावन गणेश पांच प्रमुख हिंदू देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, शिव और दुर्गा) में से एक है जिनकी मूर्तिपूजा पूजा मूल रुप से की जाती है। पूरे देश में भगवान गणेश की पूजा पूरी तरह समर्पण और भक्ति के साथ की जाती है। खासकर दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में भगवान गणेश से जुडे कई त्योहार मनाए जातें हैं एवं इनके कई भव्य मंदिर वहां उपलब्ध है। भक्त दूर-दूर से इन मंदिरों में इनके दर्शन और आशीर्वाद ग्रहण करने आते हैं। हर साल गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।गणेश जी की जन्म कथा
गणेश जी के जन्म की कहानी बहुत रोमांचक है। बहुत साल पहले जब पृथ्वी पर राक्षसों का आतंक बढ़ गया था, तब महादेव शिव देवों की सहायता करने शिवलोक से दूर गए हुए थे। माता पार्वती, शिव भगवान की धर्मपत्नि, शिवलोक में अकेली थीं। जब पार्वती जी को स्नान करने की ईच्छा हुई तो उन्हें घर के सुरक्षा की चिंता हुई। वैसे तो शिवलोक में शिव जी की आज्ञा के बिना कोई पंख भी नहीं मार सकता था, पर उन्हें डर था कि शिव जी की अनुपस्थिति में कोई अनाधृकित प्रवेश ना कर जाए। अतः उन्होंने सुरक्षा के तौर पर अपनी शक्ति एक बालक का निर्माण किया, और उनका नाम रखा गणेश। उन्होंने गणेश जी को प्रचंड शक्तियों से नियुक्त कर दिया और घर में किसी के भी प्रवेश करने से रोकने के कड़े निर्देश दिये। इसी के साथ माता पार्वति अपने स्नान प्रक्रिया में व्यस्त हो गईं और गणेश जी अपनी पहरेदारी में लग गए। शिव जी युद्ध में विजयी हुए और शिवलोक आए। शिव जी के प्रभुत्व से अनजान गणेश जी ने उन्हें घर में प्रवेश करने से रोक दिया। अपने ही घर में प्रवेश करने के लिए रोके जाने पर शिव जी के क्रोध का ठिकाना ना रहा। उन्होंने गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर प्रवेश कर गए। जब पार्वति जी को यह कहानी सुनाई उन्हें गणेश जी के मृत होने का समाचार सुनकर बड़ा रोष आया। उन्होंने शिव जी को अपने ही पुत्र का वध करने की दुहाई दी और उनसे गणेश जी को तुरन्त पुनर्जिवित करने का अनुरोध किया। अपनी गलती का बोध भगवान शिव को हुआ। शिव जी ने कहा कि गणेश जी का सर पुनः धर से तो नहीं जोड़ा जा सकता, परन्तु एक जीवित प्राणी का सर स्थापित जरूर किया जा सकता है। शिव जी के सेवक जंगल में ऐसे प्राणी को ढूँढने निकले जो उत्तर दिशा की तरफ सर रख कर सो रहा हो। ऐसा ही एक हाथी जंगल में उत्तर दिशा की तरफ मुख किए सो रहा था। शिव जी के सेवक उसे उठा कर ले आए। शिव जी ने हाथी का सर सूँड़-समेत गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया और इस प्रकार गणेश जी के शरीर में पुनः प्राणों का संचार हुआ। इतना ही नहीं, शिव जी ने यह भी उद्घोष्ना की कि पृथ्वीवासी किसी भी नए कार्य को शुरू करने से पहले गणेश भगवान की अराधना करेंगे और शुभारंभ के आशीर्वाद की लालसा करेंगे। यही कारण है कि गणेश भगवान के सिर हाथी जैसा है।
गणेश जी का स्वरुप और उनका महत्व
भगवान गणेश के शरीर के प्रत्येक अंग का अपना ही महत्व है। गणेश जी का सर आत्मा का प्रतीक है। मानव शरीर माया या मनुष्यों के सांसारिक अस्तित्व को दर्शाता है। बड़ा माथा महान बुद्धि का प्रतीक है। लबीं जीभ उच्च दक्षता और अनुकूलता का प्रतिनिधित्व करती है। बड़े कान श्रद्धालुओं को सुनते हैं। बड़ा पेट जीवन में सभी अच्छे और बुरे त्तवों को पचाने की अहमियत दर्शता है। नाक यानी सूंड जो हर गंध को (विपदा) को दूर से ही पहचान सकती है। हमारी भी परिस्थितियों को भांपने की क्षमता ऐसी होनी चाहिए। लघु पैर सहिष्णुता शक्ति का प्रतीक है। गणेश जी की आंखें सूक्ष्म हैं जो जीवन में सूक्ष्म लेकिन तीक्ष्ण दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। वाहन के रूप में चूहा इच्छाओं पर नियंत्रण के देवता का प्रतिनिधित्व करता है। कमर के चारों ओर सांप सभी रूपों में ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। उनके चारों हाथों का अलग-अलग महत्व है। एक हाथ में वो खुशी के लड्डु लिए रहते हैं। एक हाथ में सभी बंधनों को काटने वाली कुल्हाड़ी होती है। गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है वह आशीर्वाद प्रदान करता है। उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना है।भगवान गणेश की पूजा
भगवान गणेश की पूजा षोडश प्रकार से की जाती है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मन्त्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मन्त्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मन्त्र न आता हो, तो 'गं गणपतये नम:' मन्त्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। गणेश जी की आरती और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।गणेश जी का परिवार
गणेशजी के माता-पिता : पार्वती और शिव।गणेशजी के भाई : श्रीकार्तिकेय (बड़े भाई)। हालांकि उनके और भी भाई हैं जैसे सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा।
गणेशजी की बहन : अशोक सुंदरी।
गणेशजी की पत्नियां : गणेशजी की 5 पत्नियां हैं : ऋद्धि, सिद्धि, तुष्टि, पुष्टि और श्री।
गणेशजी के पुत्र : पुत्र लाभ और शुभ तथा पोते आमोद और प्रमोद।
अधिपति : जल तत्व के अधिपति।
प्रिय पुष्प : लाल रंग के फूल।
प्रिय वस्तु : दुर्वा (दूब), शमी-पत्र।
प्रमुख अस्त्र : पाश और अंकुश।
गणेश वाहन : सिंह, मयूर और मूषक। सतयुग में सिंह, त्रेतायुग में मयूर, द्वापर युग में मूषक और कलियुग में घोड़ा है।
गणेशजी का जप मंत्र : ॐ गं गणपतये नम: है।
गणेशजी की पसंद : गणेशजी को बेसन और मोदक के लड्डू पसंद हैं।
गणेश जी का मंत्र
वक्रतुंडा महाकाया सूर्यकोक्ति समप्रभा |निर्विघनाम कुरुमेदेवा सर्वकार्येशु सरस्वदा ||
गणेश जी का मूल मंत्र
ऊं गं गणपतये नम:।।गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवामाता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय...
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय...
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय...
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥ जय...
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥ जय...
गणेश जी के 108 नाम
1) बालगणपति: सबसे प्रिय बालक2) भालचन्द्र: जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
3) बुद्धिनाथ: बुद्धि के भगवान
4) धूम्रवर्ण: धुंए को उड़ाने वाला
5) एकाक्षर: एकल अक्षर
6) एकदन्त: एक दांत वाले
7) गजकर्ण: हाथी की तरह आंखें वाला
8) गजानन: हाथी के मुँख वाले भगवान
9) गजवक्र: हाथी की सूंड वाला
10) गजवक्त्र: जिसका हाथी की तरह मुँह है
11) गणाध्यक्ष: सभी जणों का मालिक
12) गणपति: सभी गणों के मालिक
13) गौरीसुत: माता गौरी का बेटा
14) लम्बकर्ण: बड़े कान वाले देव
15) लम्बोदर: बड़े पेट वाले
16) महाबल: अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु
17) महागणपति: देवातिदेव
18) महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान
19) मंगलमूर्त्ति: सभी शुभ कार्य के देव
20) मूषकवाहन: जिसका सारथी मूषक है
21) निदीश्वरम: धन और निधि के दाता
22) प्रथमेश्वर: सब के बीच प्रथम आने वाला
23) शूपकर्ण: बड़े कान वाले देव
24) शुभम: सभी शुभ कार्यों के प्रभु
25) सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
26) सिद्दिविनायक: सफलता के स्वामी
27) सुरेश्वरम: देवों के देव
28) वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड
29) अखूरथ: जिसका सारथी मूषक है
30) अलम्पता: अनन्त देव
31) अमित: अतुलनीय प्रभु
32) अनन्तचिदरुपम: अनंत और व्यक्ति चेतना
33) अवनीश: पूरे विश्व के प्रभु
34) अविघ्न: बाधाओं को हरने वाले
35) भीम: विशाल
36) भूपति: धरती के मालिक
37) भुवनपति: देवों के देव
38) बुद्धिप्रिय: ज्ञान के दाता
39) बुद्धिविधाता: बुद्धि के मालिक
40) चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले
41) देवादेव: सभी भगवान में सर्वोपरी
42) देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक
43) देवव्रत: सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
44) देवेन्द्राशिक: सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
45) धार्मिक: दान देने वाला
46) दूर्जा: अपराजित देव
47) द्वैमातुर: दो माताओं वाले
48) एकदंष्ट्र: एक दांत वाले
49) ईशानपुत्र: भगवान शिव के बेटे
50) गदाधर: जिसका हथियार गदा है
51) गणाध्यक्षिण: सभी पिंडों के नेता
52) गुणिन: जो सभी गुणों क ज्ञानी
53) हरिद्र: स्वर्ण के रंग वाला
54) हेरम्ब: माँ का प्रिय पुत्र
55) कपिल: पीले भूरे रंग वाला
56) कवीश: कवियों के स्वामी
57) कीर्त्ति: यश के स्वामी
58) कृपाकर: कृपा करने वाले
59) कृष्णपिंगाश: पीली भूरी आंखवाले
60) क्षेमंकरी: माफी प्रदान करने वाला
61) क्षिप्रा: आराधना के योग्य
62) मनोमय: दिल जीतने वाले
63) मृत्युंजय: मौत को हरने वाले
64) मूढ़ाकरम: जिन्में खुशी का वास होता है
65) मुक्तिदायी: शाश्वत आनंद के दाता
66) नादप्रतिष्ठित: जिसे संगीत से प्यार हो
67) नमस्थेतु: सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
68) नन्दन: भगवान शिव का बेटा
69) सिद्धांथ: सफलता और उपलब्धियों की गुरु
70) पीताम्बर: पीले वस्त्र धारण करने वाला
71) प्रमोद: आनंद
72) पुरुष: अद्भुत व्यक्तित्व
73) रक्त: लाल रंग के शरीर वाला
74) रुद्रप्रिय: भगवान शिव के चहीते
75) सर्वदेवात्मन: सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता
76) सर्वसिद्धांत: कौशल और बुद्धि के दाता
77) सर्वात्मन: ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला
78) ओमकार: ओम के आकार वाला
79) . शशिवर्णम: जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो
80) शुभगुणकानन: जो सभी गुण के गुरु हैं
81) श्वेता: जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है
82) सिद्धिप्रिय: इच्छापूर्ति वाले
83) स्कन्दपूर्वज: भगवान कार्तिकेय के भाई
84) सुमुख: शुभ मुख वाले
85) स्वरुप: सौंदर्य के प्रेमी
86) तरुण: जिसकी कोई आयु न हो
87) उद्दण्ड: शरारती
88) उमापुत्र: पार्वती के बेटे
89) वरगणपति: अवसरों के स्वामी
90) वरप्रद: इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
91) वरदविनायक: सफलता के स्वामी
92) वीरगणपति: वीर प्रभु
93) विद्यावारिधि: बुद्धि की देव
94) विघ्नहर: बाधाओं को दूर करने वाले
95) विघ्नहर्त्ता: बुद्धि की देव
96) विघ्नविनाशन: बाधाओं का अंत करने वाले
97) विघ्नराज: सभी बाधाओं के मालिक
98) विघ्नराजेन्द्र: सभी बाधाओं के भगवान
99) विघ्नविनाशाय: सभी बाधाओं का नाश करने वाला
100) विघ्नेश्वर: सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान
101) विकट: अत्यंत विशाल
102) विनायक: सब का भगवान
103) विश्वमुख: ब्रह्मांड के गुरु
104) विश्वराजा: संसार के स्वामी
105) यज्ञकाय: सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106) यशस्कर: प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107) यशस्विन: सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108) योगाधिप: ध्यान के प्रभु
श्री गणेश चालीसा
दोहा ||जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
|| चौपाई ||
जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥१
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥२
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥३
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥४
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥५
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥६
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥७
ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्घारे॥८
कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी॥९
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी।१०
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥११
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥१२
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥१३
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला॥१४
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥१५
अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है॥१६
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥१७
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥१८
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥१९
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥२०
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥२१
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥२२
कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥२३
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ॥२४
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥२५
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥२६
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥२७
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाये॥२८
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥२९
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥३०
बुद्घि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥३१
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥३२
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥३३
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥३४
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥३५
मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥३६
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा॥३७
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥३८
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।३९
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥४०
|| दोहा ||
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥
|| इति श्री गणेश चालीसा समाप्त ||

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