वेदों में वर्णित देवताओं को 'वैदिक देवताओं' के रूप में जाना जाता है। हिन्दू धर्म में देवताओं को या तो परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक रूप माना जाता है, या तो उन्हें ईश्वर का सगुण रूप माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन देवताओं को आर्य जनजातियों द्वारा ईरान से 2000 बीसीई से 1200 बीसीई के दौरान भारत के उत्तरी हिस्से में लाया गया था। भारतीय हिन्दु पंरपरा अनुसार 33 प्रमुख वैदिक देवता हैं, जिन्हें तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है। प्रत्येक श्रेणी में ग्यारह देवताओं का वर्गीकरण किया गया है। वैदिक देवताओं की तीन अलग-अलग श्रेणियां हैं। वायुमंडलीय यानि आकाश में रहने वाले देवता, मध्यस्थानीय यानी अन्तरिक्ष में निवास करने वाले देवता, स्थलीय यानि पृथ्वी पर रहने वाले देवता। इन सभी वर्गों के देवाताओं की अलग-अलग जिम्मेदारिया हैं। इन सभी का अपना महत्व एवं अपना विशिष्ट स्थान है।

'देव' शब्द में 'तल्' प्रत्यय लगाकर 'देवता' शब्द की व्युत्पत्ति होती है। 'जो कुछ देता है वही देवता है अर्थात् देव स्वयं द्युतिमान हैं- शक्तिसंपन्न हैं- किंतु अपने गुण वे स्वयं अपने में समाहित किये रहते हैं जबकि देवता अपनी शक्ति, द्युति आदि संपर्क में आये व्यक्तियों को भी प्रदान करते हैं।

वेदों के प्रत्येक मंत्र का एक देवता होता है, देवता का अर्थ - दाता, प्रेरक या ज्ञान-प्रदाता होता है। जिन देवताओं का मुख्य रूप से वर्णन हुआ है वे हैं – अग्नि, सूर्य एवं वायू आदि।
ए.ए. मैकडॉनेल ने वैदिक मिथोलॉजी में वैदिक देवताओं का वर्णन किया है कि "वैदिक देवताओं की मनुष्यों पर अत्यंत महीमा होती है। यह मानव उद्देश्यों के जुनून से प्रेरित होते हैं, वैदिक देवताओं का जन्म तो मनुष्यों की तरह होता है किन्तु यह अमर होते हैं। अधिकांश वैदिक देवता पुरुष है क्योंकि वैदिक काल में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम महत्व दिया जाता था।

यह लौकिक देवता न्यायपूर्ण होते हैं जो धार्मिक और अच्छा कर्म करने वालों को पुरस्कृत करते हैं और पापी, ढोंगी-लालची एवं दुष्ट लोगों को दंडित करते हैं। लौकिक देवता मनुष्यों के सामने प्रत्यक्ष रुप से होते हैं। मनुष्यों के जीवन में इनका विशेष महत्व होता है।

सूर्य देवता

अग्नि देवता

वायु देवता


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