होली मौज-मस्ती और प्रेम-सौहार्द से सराबोर होने वाला त्योहार है। यह त्योहार अपने भीतर परंपराओं के विभिन्न रंगों को समेटे हुए है, जो विभिन्न स्थानों में अलग-अलग रूपों में सजे-धजे नजर आते हैं। विभिन्नता में एकता वाले इस देश में अलग-अलग क्षेत्रों में इस त्योहार को मनाने का अलग-अलग अंदाज हैं। मगर इन विविधताओं के बावजूद हर परंपरा में एक समानता अवश्य है और वो है प्रेम और उत्साह, जो लोगों को आज भी सब कुछ भूला कर हर्ष और उल्लास के रंग में रंग देते हैं। होली एक ऐसा त्योहार है जो सभी को एक साथ लाता है, चाहे वो किसी भी जाति, पंथ या धर्म सम्प्रदाय के हों। होली एक ऐसा त्योहार है जो दुश्मनों को भी गले लगाकर देस्त बना देता है। यह रंगों का त्यौहार है जो भारत की अनूठी संस्कृति अर्थात् विविधता में एकता का प्रतिनिधित्व करता है। इस त्योहार का एक विस्तार वैदिक शास्त्रों में पाया जाता है,। जहां भगवान पर भक्त प्रहलाद की आस्था ने बुराई पर अच्छाई को जीत दिलाई। जिसने प्रह्लाद के जीवन को बचाया और राक्षस होलिका को मार दिया जो खुद प्रहलाद को मारने आई थी। होली वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है यह फ्ल्गुन मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार आम तौर पर मार्च के महीने में पड़ता है। होली हर उम्र के लोगों द्वारा मनाए जाने वालासबसे प्रतीक्षित त्योहार है। न केवल इसलिए कि वे रंगों के साथ खेलते हैं, बल्कि वे इस त्योहार के लिए तैयार पारंपरिक व्यंजनों को खाने का आनंद भी लेते हैं। होली से जुड़ी कई पंरपराएं होती है जिसमें पारंपरिक भोजन से लेकर, वस्त्र, रीति-रिवाज इत्यादि शामिल है।


होली की परंपराएं

होलिका दहन

होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के पीछे मान्यता है कि राक्षस राजा हिरण्यकश्यप स्वंय को भगवान मानता था और अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था किन्तु उसका पुत्र प्रहलाद उसे भगवान ना मानकर भगवान विष्णु की अराधना करता था जिससे खफा होकर हिरण्यकश्चप ने अपनी बहन होलिका को कहा कि वो आग में प्रहलाद को लेकर बैठ जाए क्योंकि होलिका को वरदान मिला हुआ था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती। जिसके बाद होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गई किन्तु प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ उल्टा होलिका जलकर राख हो गई। होलिका ने प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने की कोशिश की। भक्त प्रह्लादॉ ने अपने स्वामी के प्रति सच्ची श्रद्धा रखी और होलिका की दुष्ट योजना से बच गए। इसी पंरपरा को मानते हुए बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतिक स्वरुप होलिका दहन किया जाता है जिसमें लकड़ी को एकत्र कर होलिका का पुतला बनाया जाता है और उसे जलाया जाता है। पवित्र अलाव लगाने की यह रस्म बुराई पर अच्छाई की जीत का संकेत देती है। हिंदू इस अलाव को पवित्र मानते हैं, इसलिए वे अग्नि के साथ-साथ पवित्र अलाव की राख को अपने घरों में ले जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि पवित्र राख उनके परिवारों में सफलता, समृद्धि और शांति लाती है।


रंग वाली होली या धुलंडी

होली

होलिका दहन की अगली सुबह, रंगों के त्योहार यानि होली का स्वागत किया जाता है। जिसे धुलण्डी यानि रंग वाली होली भी कहते हैं। बच्चे से लेकर वयस्क तक इस दिन पूरा तरह रंग में डूबकर एक दूसरे को रंग या गुलाल लगाते हैं। बच्चे एक-दूसरे पर पानी की बौछार भी करते हैं। पिचकारियों में पानी भर लोग एक-दूसरे पर फेंकते हैं उन्हें रंगीन करते हैं। इन दिनों त्योहारों के दौरान सिंथेटिक रंगों और फोम का उपयोग किया जाता है। चूंकि इन रंगों के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैली हुई है, इसलिए कई परिवारों ने घर पर रंगों को तैयार करने की पुरानी पद्धति को अपनाया है। महिलाएं आमतौर पर हल्दी, मेहंदी या चंदन पाउडर जैसी औषधीय जड़ी-बूटियों का उपयोग करके रंग तैयार करती हैं।
ज्यादातर लोग गुलाल की होली खेलना पसंद करते हैं क्योंकि यह गीले रंगों की तुलना में कम हानिकारक और आसानी से धोने योग्य होता है। गुलाल का उपयोग भारी मात्रा में विभिन्न मंदिरों में भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बरसाना की प्रसिद्ध लठ मार होली के दौरान होली खेलने के लिए लगभग 3 क्विंटल गुलाल (300 किलोग्राम) का उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक रंगों की तैयारी में टेसू और पलाश के फूलों का भी उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, शरीर पर इस्तेमाल किए जाने वाले रंगों का काफी प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि अबीर छिद्रों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। यह शरीर में आयनों को मजबूत करने का प्रभाव है इसलिए यह लोगों के स्वास्थ्य को बढ़ाता है। होली के यह रंग होली की पंरपरा में और रंग भर देते हैं।


परिवारों का मिलना

होली की परंपराएं

होली के दिन की सबसे बड़ी पंरपरा और खासियत यह है कि लोग एक-दूसरे के करीब आते हैं। घर-परिवार के लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर होली की बधाईयां देते हैं। प्रियजनों को देखना और उपहारों का आदान-प्रदान करना होली के रीति-रिवाजों का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। बच्चे आशीर्वाद के लिए अपने बढ़ों के पैर छूते हैं उन्हें सम्मान देते हैं। बदले में वयस्क बच्चों को आशीर्वाद और उपहार देने के साथ-साथ उनके चेहरे पर कुछ रंग डालते हैं। इसके बाद, परिवारजन अपने रिश्तेदारों एवं प्रियजनों को देखने जाते हैं और एक साथ होली मनाते हैं। एकता की भावना को देखते हुए होली रिश्तों के बंधन को मजबूत बनाता हैं। एक-दूसरे को करीब लाता है।


भोजन की तैयारी

होली के पकवान

होली के दिन विशेषरुप से मुंह में पानी ला देने वाला स्वादिष्ट भोजन बनाया जाता है। होली के दिन भोजन इस त्योहार का एक अभिन्न हिस्सा है और यह एक कारण है जो त्योहार के दिन सभी को ऊर्जा से भरपूर रखता है। विशेष रूप से घर में महिलाओं के लिए सुगंधित व्यंजनों को तैयार करना महत्वपूर्ण होता है। सुबह की शुरुआत आमतौर पर देसी घी के साथ ताजा तैयार मिठाइयों की सुगंध से होती है। उत्तर भारत में बनी सबसे प्रसिद्ध मिठाइयाँ गुझिया और मालपुआ होती है वहीं महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में पूरन पोली बनाई जाती हैं। होली के दिन ठंडाई (बादाम, दूध, चीनी, मसाले आदि के साथ एक ठंडा पेय) विशेष रुप से बनाया जाता है। जिसे बड़ी मात्रा में परोसा जाता है और अक्सर रिवाज के एक भाग के रूप में होली के दिन भांग के साथ ठंडाई को बना कर पीया जाता है। हालांकि भाँग का सेवन इसके औषधीय गुणों के लिए किया जाता है, कुछ लोग इसके अधिक सेवन के लिए लिप्त होते हैं इसमें नशा होता है।

भारत के अन्य हिस्सों में होली

भारत के कुछ हिस्सों में हली के दिन आग में भुने हुए जौ के बीज खाने का रिवाज है। यह माना जाता है कि आग की लपटों की दिशा को देखकर आगामी फसल के मौसम की उपज का अनुमान लगाया जा सकता है। जबकि उत्तर और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में हास्य-कविता की बैठकें आयोजित की जाती हैं। दक्षिणी भारत में, कृषि उपज की पहली उपज जैसे फल, नारियल आदि को सबसे पहले पवित्र अग्नि को अर्पित किया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन, लोग राख को अपने माथे पर लगाते हैं। अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए, आम के पेड़ की ताजी पत्तियों के साथ, चंदन-पेस्ट के साथ मिलाकर भी वे इसका सेवन करते हैं। मथुरा के पास नंदगाँव और बरसाना जैसी जगहें हैं, जहाँ भगवान कृष्ण और राधा रहते थे। दोनों जगहों पर होली से जुड़ी विशेष परंपरा है। लोकप्रिय रूप से बरसाने में लठमार होली खेली जाती है। यह होली एक तरह से अनूठी है क्योंकि बरसाना की महिलाएं नंदगावं के पुरुषों को लाठी या डंडे से मारती है क्योंकि वे श्री राधा मंदिर तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। पुरुष स्वंय को बचाने के लिए ढाल का प्रयोग हांलाकि कर सकते हैं।
इस त्योहार से जुड़े कुछ अन्य आवश्यक रीति-रिवाज हैं, जैसे, होली के अवसर पर हिंदू अपने दामादों और उनके परिवारों को भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं। भोजन के बाद, उसे एक प्याला दिया जाता है – कुछ नए नोट दिए जाते हैं जिसमें एक गिलास पेय के साथ पाँच रुपये से लेकर पाँच सौ रुपये तक देने का रिवाज़ होता है। इसके अलावा, एक और प्रथा है, कि विवाहित बेटियों को उनकी सास द्वारा कोथली दी जाती है। नवविवाहित दुल्हन को इस अवसर के लिए विशेष रूप से एक गीत गाना होता है, जिसके बाद बुजुर्ग उसे आशीर्वाद देते हैं।

होली की पंरपारएं इस दिन को और भी ज्यादा खास बनाती हैं। होली के विभिन्न रंग और रिवाज़ प्यार और एकता का संदेश देते हैं।

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