होली भारत का प्रमुख त्योहार है। लेकिन होली का जश्न हिमाचल प्रदेश में अलग ही होता है। होली हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। होली का त्यौहार सर्दियों के मौसम की समाप्ति और नये ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत को इंगित करता है। हिमाचल प्रदेश में होली, बहुत धूम धाम से मनाई जाती है। होली के त्योहार के आगमन पर हिमाचल के लोग खुशी से झूम उठते हैं। लोग अपनी खुशी व्यक्त करते हुए हवा में गुलाल फेंकते हैं, जिससे पूरा वातावरण रंगीन हो जाता है।

हिमाचल प्रदेश की होली


होली पर लाल,पिले, हरे, नीले रंग में रंगा पूरा माहौल मदमस्त हो जाता है।  यह वह समय है जब हर उम्र के लोग मस्ती कर सकते हैं। होली के कुछ दिन पहले, बाजार हर रंग के रंगों से भर जाते हैं। पानी की बंदूकें, विभिन्न डिजाइनों की पिचकारियों से बाजार गुलजार हो जाता है। यह वास्तविक दिन के लिए लोगों के स्वभाव को निर्धारित करता है। सड़कों पर लाल, पीले, बैंगनी, गुलाबी, हरे और नीले रंग के रंगो से ढेर सारे सुंदर दृश्य बनते हैं। रंग-बिरंगे रंगो में रंगे लोगों के चेहरों पर ग़जब की मुस्कान होती है।

हिमाचल प्रदेश में होली की परंपराएं

हिमाचली महिलाएँ (विशेषकर गाँवों में) होली के दौरान विशेष पूजा करती हैं। कमल के पेड़ की टहनियों को लाल और पीले रंगों में चित्रित किया जाता है। इन्हें बांस की टोकरियों या खट्टू में रोली, कुमकुम, गुड़, भुने हुए चने के साथ रखा जाता है। रस्म के लिए महिलाएं अपने हाथों में रंगीन पानी को टोकरी और बर्तन में ले जाती हैं। यह पहले एक बुजुर्ग व्यक्ति या दंडोच को चढ़ाया जाता है और फिर होली खेली जाती है। होली से एक दिन पहले, जब चाँद निकलता है उस रात को होलिका का निर्माण किया जाता है। पेड़ों की टहनियों, लकड़ी इत्यादि को एकत्र कर होलिका बनाई जाती है। इसे जलाकर (होलिका) में आग लगाई जाती है। युवा पुरुष पहले होली के ध्वज को छूने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, क्योंकि इसे शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष कड़ाह प्रसाद (एक पारंपरिक मिठाई) तैयार और वितरित किया जाता है।

 

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में होली का जश्न


हिमाचल प्रदेश की होली

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में होली का जश्न 40 दिन तक मनाया जाता है। यहां राज परिवार द्वारा भगवान रघुनाथ को रथ में बिठाकर पूजा-अर्चना सहित रथ की परिक्रमा की जाती है। पूजा के बाद सैकड़ों लोगों ने भगवान श्रीराम के जयकारे लगाते हुए रथ में लगी रस्सियों की से उसे खींचना शुरू करते हैं। इसके बाद रथ को थोड़ी देर बाद रोककर वहां पर भरत मिलाप करवाया जाता है। माना जाता हे कि जिसे भी हनुमान बना यह व्यक्ति छू लेता है तथा रंग उसके हाथ में लग जाता है तो वह सौभाग्यशाली माना जाता है। इसके बाद भगवान रघुनाथ का रथ अपने अस्थायी निवास स्थान पर पहुंचाया जाता है। हल्दी, मक्की के आटे व फूल से बनता है गुलाल कुल्लू में वसंत पर्व की शुरुआत के लिए उड़ाया जाने वाला गुलाल वास्तव में पीले रंग का होता है। इसका निर्माण हल्दी, एक विशेष प्रकार के पीले फूल और मक्की के आटे को मिलाकर किया जाता है। इससे बिल्कुल शुद्ध माना जाता है। हल्दी का प्रयोग इसमें सर्वाधिक होता है।


सुजानपुर, पालमपुर, बैजनाथ, घुघर, पपरोला और जयसिंहपुर में कई मेले आयोजित किए जाते हैं। सुजानपुर का मेला कटोच वंश के समय का है। यह राजा संसार चंद थे जिन्होंने अपने शासन के दौरान कलाकारों और संगीतकारों को संरक्षण दिया था। हिमाचल प्रदेश की सरकार द्वारा मेले को राजकीय त्योहार घोषित किया गया है। यह मेला चार दिनों के लिए आयोजित किया जाता है।  मेले के दौरान बहुत सारी पारंपरिक संस्कृति (भोजन और कला के संदर्भ में) का अनुभव किया जा सकता है। मेले में मिट्टी के बर्तन भी बेचे जाते हैं। स्थानिय महिलाएं लोक गीतों को गाती हैं जिससे पूरी घाटी में लोक गीतों की आवाज़ गूंजने लगती है।

चामुंडा देवी को समर्पित मंदिर पास की पहाड़ी, टीरा पर स्थित है। इस स्थान पर वर्ष के इस समय में बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है। हजारों भक्त यमुना के तट पर पोंटा साहिब के पवित्र मंदिर में भी एकत्र होते हैं। कुल्लू में होली को रंगों के साथ बर्फ मिला कर चिह्नित किया जाता है। हालांकि, मुख्य समारोह विश्व प्रसिद्ध सोलंग दर्रा में आयोजित किए जाते हैं, जो देश में सबसे भारी बर्फबारी का गवाह है। होली के दिन हिमाचल प्रदेश में विशेष रुप से स्थानिय व्यजनों और मिठाइयों को बनाया जाता है। लोग एक दूसरे को गुलाल और रंग लगाकर होली का जश्न मनाते हैं।

 

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