भारतिय शास्त्रों में स्त्री को शांत, सौम्य बताया गया है लेकिन जब जब अत्याचार बढ़ता है तो वही स्त्री अपने क्रोधित रुप से दुष्टों का संहार करती है। इसलिए स्त्रियों की महत्वता और बढ़ जाती है। हिन्दू मान्यता में स्त्री शक्ति को प्रदर्शित करती मां काली बहुत पूज्यनीय देवी हैं। मां काली को क्रोध की देवी भी कहा जाता है जो स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हुए दुष्टों का संहार करती है। मां काली बताती है कि स्त्री कमजोर नहीं है वो जरुरत पड़ने पर अपना उग्र रुप धारण कर पापियों का सर्वनाश कर सकती है। देवी काली मां दुर्गा का ही रोद्र रुप है। जहां देवी दुर्गा यानि पार्वती शांत, कोमल स्वभाव की है वहीं मां काली अपने विकराल रुप से पापियों को भयभीत करती हैं। देवी काली शाक्ति का दिव्य रूप है। देवी काली को भयानक देवी माना जाता है, जो सर्वोच्च दैवीय शक्ति से अवतरित हुईं है। देवी काली के उत्पन होने का उद्देश्य ही राक्षसों का संहार करना था देवताओं और धर्म की रक्षा करना था। काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। काली की उत्पति काल अथवा समय से हुई है जो सबको अपना ग्रास बना लेता है। माँ का यह रूप है जो नाश करने वाला है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए हैं जो दानवीय प्रकृति के हैं जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलवाने वाला है अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों को शुभ फल देती हैं। और बुरे लोगों को दंड देकर सच्चाई की जीत का प्रतिनिधित्व करती हैं। देवी काली अपनी मजबूत विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए महिला गतिशीलता का प्रतीक है। इन्हें अक्सर इंसान के अहंकार को मारने वाली मां का स्वरुप समझा जाता है। देवी काली मृत्यु की भी देवी मानी जाती हैं। 'काली' शब्द का अर्थ काल और काले रंग से है। मां काली को देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है। भगवती दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक हैं महाकाली। जिनके काले और डरावने रूप की उत्पति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। यह एक मात्र ऐसी शक्ति हैं जिन से स्वयं काल भी भय खाता है। उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है की संपूर्ण संसार की शक्तियां मिल कर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। उनके इस क्रोध को रोकने के लिए स्वयं उनके पति भगवान शंकर उनके चरणों में आ कर लेट गए थे। शास्त्रों में वर्णित है कि कलियुग के समय हनुमान जी , काल भैरव और माँ काली की शक्तियाँ जागृत रूप में अपने भक्तों का उद्धार करने वाली होगी | कुछ मान्यताओं के आधार पर माँ काली की उपासना केवल सन्यासी और तांत्रिक तंत्र सिद्धियाँ प्राप्त करने हेतु करते है | किन्तु यह पूर्णतया सत्य नहीं है | माँ कालीकी उपासना साधारण व्यक्ति भी अपने कार्य सिद्धि हेतु कर सकते है। मां काली की पूजा यूं तो समस्त भारतवर्ष में की जाती है किन्तु मां कालिका को खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली मां के नाम से कई प्राचीन मंदिर विख्यात है। उज्जैन का गढ़ कालिका मंदिर, कोलकाता का काली मंदिर, पावागढ़ शक्तिपीठ, दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता इत्यादि। यहां मां काली भक्तों को दर्शन देकर उनका कल्याण करती हैं।
मां काली

देवी काली का स्वरुप

देवी काली का स्वरूप अन्य देवियों से भिन्न अत्यंत भयानक तथा डरावना हैं, विभिन्न ध्यान मंत्रों के अनुसार देवी का स्वरूप अत्यंत विकराल हैं देवी काली को काले रंग में चित्रित किया गया है जो असीमित रूप से उसके सभी गले लगाने और अनुवांशिक प्रकृति का प्रतीक है। देवी को आमतौर पर उसके चार हाथों के रूप में चित्रित किया जाता है और अपने क्रूर महाकाली रूप में उन्हें सभी देवताओं से प्राप्त हथियार रखने वाले दस हथियारों के रूप में दिखाया जाता है। उसकी तलवार झूठी चेतना का विनाशक है। घोर काले वर्ण वाली देवी काली, अपने विकराल दन्त पंक्ति द्वारा मुंह से निकली हुए लपलपाती लाल रक्त वर्ण जैसी जिह्वा को दबाये हुए हैं, जो अत्यंत भयंकर प्रतीत होती हैं। दुष्ट दानवों का रक्त पान करने के परिणामस्वरूप इनकी जिह्वा लाल रक्त वर्ण की हैं। देवी का मुखमंडल तीन बड़ी-बड़ी भयंकर नेत्रों से युक्त हैं, जो सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि का प्रतीक हैं। इनके ललाट पर अमृत के सामान चन्द्रमा स्थापित हैं, काले घनघोर बादलों के समान बिखरे केशों के कारण देवी अत्यंत भयंकर प्रतीत होती हैं। स्वभाव से ही दुष्ट असुरों के हाल ही में कटे हुए सरो या मस्तकों कि माला इन्होंने अपने गले में धारण कर रखी हैं तथा प्रत्येक सर से रुधिर (रक्त) धारा बह रही होती हैं। काली की गर्दन पचास राक्षसों के सिर से बने माला द्वारा सजी हुई है जो संस्कृत वर्णमाला में पचास अक्षरों का प्रतिनिधित्व करती है, अनंत ज्ञान का प्रतीक है। अपने दोनों बाएँ हाथों में इन्होंने खड़ग तथा दुष्ट असुर का कटा हुआ सर धारण कर रखा हैं तथा बाएँ हाथों से यह सज्जनों को अभय तथा आशीर्वाद प्रदान करती हैं। युद्ध में मारे गए दानवों के कटे हुए हाथों की माला बनाकर करधनी के रूप में धारण करती हैं। अपने भैरव महा-काल या पति शिव के छाती में देवी प्रत्यालीढ़ मुद्रा धारण किये खड़ी हैं, जैसे स्वयं काल का भी भक्षण करने हेतु उद्धत हो। देवी ने अपने कानों में मृत शिशु देह, कुंडल स्वरूप हैं धारण कर रखा हैं, इनके चारों ओर सियार कुत्ते दिखते हैं तथा रक्त की धर बहती हैं, हड्डियाँ बिखरी हुई हैं, देवी रुधिर (रक्त) प्रिय हैं।मुखतः देवी अपने दो स्वरूपों में विख्यात हैं, 'दक्षिणा काली' जो चार भुजाओं से युक्त हैं तथा 'महा-काली' के रूप में देवी की २० भजायें हैं। कटे हुए राक्षसों के मस्तकों की माला पहनने, भूत तथा प्रेतों के साथ श्मशान भूमि में निवास करने के कारण, देवी अन्य सभी देवी देवताओं में भयंकर प्रतीत होती हैं।

देवी काली की उत्पति कथा

मार्कण्डेय पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगत जननी मां अम्बा के ललाट से हुई थी। शक्ति का यह अवतार एक रक्तबीज नामक राक्षस को मारने के लिए हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा (जिन्होंने दुर्गमासुर दैत्य का वध किया था), ने शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो महा राक्षसों को युद्ध में परास्त किया तथा तीनों लोकों को उन दोनों भाइयों के अत्याचार से मुक्त किया। चण्ड और मुंड नामक दैत्यों ने जब देवी दुर्गा से युद्ध करने का आवाहन किया, देवी उन दोनों से युद्ध करने हेतु उद्धत हुई। आक्रमण करते हुए देवी, क्रोध के वशीभूत हो अत्यंत उग्र तथा भयंकर डरावनी हो गई, उस समय उनकी सहायता हेतु उन्हीं के मस्तक से एक काले वर्ण वाली शक्ति का प्राकट्य हुआ, जो देखने में अत्यंत ही भयानक, घनघोर तथा डरावनी थी। वह काले वर्ण वाली देवी, 'महा-काली' ही थी, जिन का प्राकट्य देवी दुर्गा की युद्ध भूमि में सहायता हेतु हुई थी। कहा जाता है कि दैत्यों द्वारा आतंकित देवों को ध्यान आया कि महिषासुर के इन्द्रपुरी पर अधिकार कर लिया है, तब दुर्गा ने ही उनकी मदद की थी। तब वे सभी दुर्गा का आह्वान करने लगे। उनके इस प्रकार आह्वान से देवी प्रकट हुईं एवं शुम्भ-निशुम्भ के अति शक्तिशाली असुर चंड तथा मुंड दोनों का एक घमासान युद्ध में नाश कर दिया। चंड-मुंड के इस प्रकार मारे जाने एवं अपनी बहुत सारी सेना का संहार हो जाने पर दैत्यराज शुम्भ ने अत्यधिक क्रोधित होकर अपनी संपूर्ण सेना को युद्ध में जाने की आज्ञा दी तथा कहा कि आज छियासी उदायुद्ध नामक दैत्य सेनापति एवं कम्बु दैत्य के चौरासी सेनानायक अपनी वाहिनी से घिरे युद्ध के लिए प्रस्थान करें। कोटिवीर्य कुल के पचास, धौम्र कुल के सौ असुर सेनापति मेरे आदेश पर सेना एवं कालक, दौर्हृद, मौर्य व कालकेय असुरों सहित युद्ध के लिए कूच करें। अत्यंत क्रूर दुष्टाचारी असुर राज शुंभ अपने साथ सहस्र असुरों वाली महासेना लेकर चल पड़ा। असुरों के संहार एवं देवगणों के कष्ट निवारण हेतु परमपिता ब्रह्माजी, विष्णु, महेश, कार्तिकेय, इन्द्रादि देवों की शक्तियों ने रूप धारण कर लिए एवं समस्त देवों के शरीर से अनंत शक्तियां निकलकर अपने पराक्रम एवं बल के साथ मां दुर्गा के पास पहुंचीं। तत्पश्चात समस्त शक्तियों से घिरे शिवजी ने देवी जगदम्बा से कहा- ‘मेरी प्रसन्नता हेतु तुम इस समस्त दानव दलों का सर्वनाश करो।’ तब देवी जगदम्बा के शरीर से भयानक उग्र रूप धारण किए चंडिका देवी शक्ति रूप में प्रकट हुईं। चण्ड और मुंड के संग हजारों संख्या में वीर दैत्य, देवी दुर्गा तथा उनके सहचरियों से युद्ध कर रहे थे, उन महा-वीर दैत्यों में 'रक्तबीज' नाम के एक राक्षस ने भी भाग लिया था। युद्ध भूमि पर देवी ने रक्तबीज दैत्य पर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्रों से आक्रमण किया, जिससे कारण उस दैत्य रक्तबीज के शरीर से रक्त का स्राव होने लगा। परन्तु, दैत्य के रक्त की टपकते हुए प्रत्येक बूंद से, युद्ध स्थल में उसी के सामान पराक्रमी तथा वीर दैत्य उत्पन्न होने लगे तथा वह और भी अधिक पराक्रमी तथा शक्तिशाली होने लगा। देवी दुर्गा की सहायतार्थ, देवी काली ने दैत्य रक्तबीज के प्रत्येक टपकते हुए रक्त बूंद को, जिह्वा लम्बी कर अपने मुंह पर लेना शुरू किया। परिणामस्वरूप, युद्ध क्षेत्र में दैत्य रक्तबीज शक्तिहीन होने लगा, अब उसके सहायता हेतु और किसी दैत्य का प्राकट्य नहीं हो रहा था, अंततः रक्तबीज सहित चण्ड और मुंड का वध कर देवी काली तथा दुर्गा ने तीनों लोकों को भय मुक्त किया। देवी, क्रोध-वश महा-विनाश करने लगी, इनके क्रोध को शांत करने हेतु, भगवान शिव युद्ध भूमि में लेट गए। देवी नग्नावस्था में थीं तथा इस अवस्था में नृत्य करते हुए, जब देवी का पैर शिव जी के ऊपर आ गया, उन्हें लगा की वे अपने पति के ऊपर खड़ी हैं तदनंतर, लज्जा वश देवी का क्रोध शांत हुआ तथा जिह्वा बहार निकल पड़ी।

देवी काली

देवी काली की पूजा

देवी काली की आराधना, पूजा इत्यादि भारत के पूर्वी प्रांत में अधिकतर लोकप्रिय हैं, देवी वहां समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा पूजिता हैं, प्रत्येक श्मशान में देवी काली का मंदिर विद्यमान हैं तथा विशेष तिथियों में पूजा, अर्चना होती हैं। चांडाल जो की हिन्दू धर्म के अनुसार, श्मशान में शव के दाह का कार्य करते हैं उनकी देवी अधिष्ठात्री हैं। डकैती जैसे अमानवीय कृत्य करने वाले भी देवी की विशेष पूजा करते हैं, सामान्यतः डकैत, डकैती करने हेतु प्रस्थान से पहले देवी काली की विशेष पूजा आराधना करते थे। देवी का सम्बन्ध क्रूर कृत्यों से भी हैं, परन्तु यह क्रूर कृत्य पूर्व तथा वर्तमान जन्म में अर्जित के दुष्ट कर्म के जातकों हेतु ही हैं। हिन्दू धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर आधारित हैं, केवल मानव देह धरी या जातक को अपने नाना जन्मो के कुकर्मों के कारण कष्ट-दुःख तथा सुकर्मों के कारण सुख भोगना ही पड़ता हैं। स्कन्द (कार्तिक) पुराण, के अनुसार 'देवी आद्या शक्ति काली' की उत्पत्ति आश्विन मास की कृष्णा चतुर्दशी तिथि मध्य रात्रि के घोर में अंधकार से हुई थीं। परिणामस्वरूप अगले दिन कार्तिक अमावस्या को उन की पूजा-आराधना तीनों लोकों में की जाती हैं, यह पर्व दीपावली या दीवाली नाम से विख्यात हैं तथा समस्त हिन्दू समाजों द्वारा मनाई जाती हैं। शक्ति तथा शैव समुदाय का अनुसरण करने वाले इस दिन देवी काली की पूजा करते हैं तथा वैष्णव समुदाय महा लक्ष्मी जी की, वास्तव में महा काली तथा महा लक्ष्मी दोनों एक ही हैं। भगवान विष्णु के अन्तः कारण की शक्ति या संहारक शक्ति 'मायामय या आदि शक्ति' ही हैं, महालक्ष्मी रूप में देवी उनकी पत्नी हैं तथा धन-सुख-वैभव की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां काली की पूजा के लिए सर्वप्रथम घर के मंदिर में मां काली की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें | इस पर तिलक लगाएं और पुष्प आदि अर्पित करें|मां काली की पूजा में पुष्प लाल रंग का और कपडे काले रंग के होने चाहिए| माँ काली की पूजा मध्य रात्रि में ही की जाती है| माँ काली की पूजा में लाल और काली वस्तुओं का बड़ा महत्त्व है| इसलिए लाल फूल और चन्दन से माँ की आराधना करें| साथ ही काला कपडा बहुत पसंद होता है। आसन पर बैठकर प्रतिदिन मां काली के किसी भी मंत्र का 108 बार जप करें| काली गायत्री मंत्र या मां के बीज मंत्रों का जप करना बेहद फलदायी माना जाता है| इससे सभी दुःख दूर हो जायेंगे इसमें कोई संसय होना ही नही चाहिए | जप के बाद प्रसाद के रूप में मां काली को भोग अवश्य अर्पण करें | इसके बाद मां काली की आरती कर उनसे प्रार्थना करें औऱ मां काली का आशीर्वाद ग्रहण करें।

मां काली का मूल मन्त्र

“ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:||
“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा||

मां काली के अन्य नाम

महाकाली,
गुहय काली
भद्र काली
काम काली
दक्षिण काली
कालरात्रि
भैरवी
चामुंडाय
पाप नाशिनी

काली मातामां काली की आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी |
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी ||
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली |
दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता |
पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता ||
सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली |
दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना |
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना ||
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली |
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||

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